रामपुर के शहीद बलजीत सिंह ने कारगिल में दुश्मनों को दिया था मुंहतोड़ जवाब
Kargil Day पूरा ट्रेनिग सेंटर बॉर्डर पर जाने के लिए तैयार था। शत्रु ऊंचाई पर था और जवान नीचे। उसके निशाने पर होते हुए भी जवानों ने आतंकवादियों का जमकर मुकाबला किया।
रामपुर (अनमोल रस्तोगी)।कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे। नवाबगंज के बलजीत सिंह भी कई दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे। बहादुरी से मुकाबला करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। आज भी नवाब गंज में उनकी शहादत को पूरा गांव नमन करता है।
शहीद बलजीत के बड़े भाई रणजीत सिंह के अनुसार बलजीत के अंदर बचपन से ही देशभक्ति का जज्बा था। उनका यह सपना तब पूरा हुआ जब वर्ष 1996 में वह सिख रेजीमेंट में भर्ती हुए। तब उन्होंने संकल्प लिया कि जैसे मैं अपने माता-पिता की सेवा करता हूं, उस तरह ही देश की सेवा करूंगा। आर्मी में भर्ती हुए तीन साल ही हुए थे, कि भारत और पाकिस्तान के बीच जंग शुरू हो गई। कारगिल की इस लड़ाई में बलजीत सिंह ने बहादुरी के साथ दुश्मनों का सामना किया। शत्रु को आगे बढ़ने से रोकने के साथ ही उन्होंने दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया। नौ जुलाई 1999 को आतंकवादियों का सामना करते हुए वह वीरगति को प्राप्त हो गए। उनकी शहादत को 21 वर्ष बीत गए हैं। लेकिन, उनकी यादें आज भी ताजा है। रणजीत सिंह बताते हैं कि शहीद होने से पहले बलजीत ने दर्जन भर दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया था।
शहीद के परिजन प्रत्येक वर्ष डलवाते हैं भोग
शहीद बलजीत सिंह के बड़े भाई रणजीत सिंह के अनुसार वह अपने भाई की याद में प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को शहीदी दिवस पर गुरुद्वारे में भोग डलवाते हैं। उनका कहना है कि सरकार ने उस समय विभिन्न योजनाओं की घोषणा की थी। लेकिन वे योजनाएं आज तक पूरी नहीं हुई है। सरकार की घोषणाएं मात्र घोषणाएं बनकर रह गई हैं।
फौजियों के गांव के नाम से मशहूर है नवाबगंज
यह गांव क्षेत्र में फौजियों के गांव के नाम से प्रसिद्ध हो चुका है। इसका कारण यह है कि यहां पर दो दर्जन रिटायर्ड फौजी हैं और इतनी ही संख्या में वर्तमान में सीमा पर देश की सेवा कर रहे हैं। कहते हैं कि आज जब भी जंग का जिक्र होता है, तो यहां के रिटायर्ड फौजी भी हर समय बॉर्डर पर जाने के लिए तैयार रहते हैं। ओनररी लेफ्टिनेंट के पद से रिटायर हुए त्रिभुवन सिंह नेगी के अनुसार उनकी तीसरी पीढ़ी देश की सेवा कर रही है। बताया कि सबसे पहले उनके पिता श्याम सिंह नेगी आर्मी में भर्ती हुए थे। उसके बाद वह स्वयं 1976 में आर्मी में भर्ती हुए और एक जनवरी 2009 को रिटायर हुए। बताते हैं कि जिस समय कारगिल का युद्ध चल रहा था, उस समय वह महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित ट्रेनिग सेंटर में मौजूद थे। उच्चाधिकारियों ने सेंटर में मौजूद सभी जवानों को अलर्ट कर दिया था।