जिया की क्यारी में संवर रहा बचपन moradabad news
मां उस भाव का नाम है जो बिना कहे ही हर बात को समझ लेती है। बच्चों को तकलीफ हो तो दोगुना दर्द मां को ही होता है।
मुरादाबाद : मां उस भाव का नाम है, जो बिना कहे ही हर बात को समझ लेती है। बच्चों को तकलीफ हो तो दोगुना दर्द मां को ही होता है। एक ऐसी ही मां का नाम है जिया शादमा, जिन्होंने अपने बच्चों की दर्द को महसूस तो किया ही साथ ही अन्य बच्चों की भी जिंदगी संवारने का बीड़ा उठा लिया।
ऑटिज्म पीडि़त बच्चों के लिए काम करने वाली जिया का कहना है कि ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं होता कि उनके बच्चों को ऑटिज्म नामक बीमारी है। मुरादाबाद के डिप्टी गंज निवासी जिया शादमा के तीन बच्चे हैं। उनके बेटे और एक बेटी ऑटिज्म से ही पीडि़त हैं।
वह बताती हैं कि उनको इसका पता चला तो मुरादाबाद के डॉक्टरों से मिलीं लेकिन, इस बीमारी का विशेषज्ञ डॉक्टर न होने के कारण उन्हें दिल्ली का रुख करना पड़ा। दिल्ली में उन्होंने ऑटिज्म पीडि़त बच्चों के इलाज व उनके साथ रहने की ट्रेनिंग भी ली।
वह बताती हैं कि उन्होंने अहसास किया कि कई बच्चे इसी बीमारी से पीडि़त हैं लेकिन, जानकारी न होने के कारण उन्हें इलाज नहीं मिल पाता।
लोगों को जागरूक करने का किया काम
2010 में जिया ने डॉक्टरों के क्लीनिक व अन्य जगहों पर पम्फलेट लगवाना शुरू किए। इसमें उन्होंने ऑटिज्म बीमारी पहचानने के लक्षण लिखे साथ ही इलाज के लिए अपना पता भी दिया। वह बताती हैं कि इसके बाद उनसे कई लोगों ने संपर्क किया, जिसके बाद धीरे-धीरे उन्होंने हैंड इन हैंड संस्था बनाकर मानसिक रोगों व ऑटिज्स से पीडि़त बच्चों पर काम करना शुरू किया। इसी संस्था के तहत संचालित होने वाले क्यारी की स्थापना भी की गई, जहां इस समय 60 से 70 बच्चों का इलाज किया जाता है।
समाज से कट जाते हैं बच्चे
जिया बताती हैं कि ऑटिज्म पीडि़त बच्चे समाज से कट जाते हैं, साथ ही लोगों से घुलना मिलना छोड़ देते हैं। वे बताती हैं कि जब उनकी बेटी साढ़े तीन साल की थी तो उन्होंने अहसास किया कि बेटी न तो किसी बात पर कोई प्रतिक्रिया देती है और न ही कुछ बोलती है। क्यारी सेंटर में बच्चों को अलग ढंग से पढ़ाया जाता है साथ ही उन्हें लोगों से घुलना मिलना सिखाया जाता है।