आजादी की जंग में अमरोहा के दो दोस्तों की कहानी, कैसे अंग्रेजों की नाक में कर दिया था दम
Independence Day 2022 अमरोहा जनपद में गंगा के किनारे रहने वाले चंद्रदत्त त्यागी और उत्तम सिंह त्यागी वो दो दोस्त थे जिन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। भारत छोडो आंदोलन में अंग्रेजों ने इनके घरों में तोड़फोड़ करते हुए सामान भी लूटा था।
अमरोहा, (सौरव प्रजापति)। Independence Day 2022 : गंगा की गोद में बसा अमरोहा का गांव तिगरी और यहां पर जन्मे चंद्रदत्त त्यागी और उत्तम सिंह त्यागी। ये उन दो दोस्ती की जोड़ी थी। जो, आजादी के दिवाने थे और गोरो के लिए सिरदर्द बने हुए थे। समय-समय पर अंग्रेजों के मंसूबों पर न सिर्फ पानी फेरा बल्कि देश को आजाद कराने में भी योगदान देकर स्वतंत्रता सेनानी बन गए। भारत छोड़ो आंदोलन में भी प्रताड़ित किए गए थे।
अंग्रेजों ने घर में घुसकर तोड़फोड़ और लूटपाट की थी मगर, तिरंगा फहराने का हौसला फिर भी नहीं टूटा था। स्वतंत्रता सेनानी चंद्रदत्त त्यागी के 88 वर्षीय भतीजे रमेश चंद्र त्यागी भले ही बुजुर्ग हो गए और शरीर भी झुक गया। आंखों की रोशनी भी ओझल हो गई मगर, याददाश्त बरकरार है।
भारत छोड़ो आंदोलन का जिक्र छेड़ा तो बोले, अरे भैया। उस समय लगभग 13 साल की उम्र रही होगी। चाचा चंद्रदत्त त्यागी और उनके दोस्त उत्तम सिंह त्यागी की अंग्रेजों को तलाश रहती थी। जब भी गांव में अंग्रेज आते तो सिर्फ इन दोनों को ही पूछते और कहते जहां भी मिले, तुरंत गिरफ्तार करें। ऐसे ही दो बार जेल भी गए।
एक बार चंदाैसी से और दूसरी बार मंडी धनौरा के पत्थरकुटी मंदिर से। लगभग तीन साल जेल में बिताए। जब भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था तो अंग्रेजों ने हौसला तोड़ने के लिए दोनों के घर पर तोड़फोड़ करते हुए सामान भी लूटा था। मगर, आजादी का जुनून जिंदा रहा।
दोनों दोस्त एक साथ रहते थे, दिन-रात घर से बाहर दुबके रहते थे। ताकि अंग्रेजों के हाथ न लगे सके। बोले, गांव के लोगों को पता रहता था कि वह कहां छिपे हैं मगर, वह अंग्रेजों को नहीं बताते थे। ग्रामीण को पीटते थे मगर, फिर भी मुंह नहीं खाेलते थे। बोले, अंग्रेजों ने चाचा को रोज 25 कोड़ों की सजा देने का आदेश किया था। इसके बाद देश के प्रति वफादारी कम नहीं हुई। आखिर में आजादी मिली तो आसपास के गांव के लोग तिगरी में आ गए और फिर जश्न मनाते हुए तिरंगा फहराया गया था।
फूंकी गई थी अंग्रेजों की पीली कोठी
ग्राम पीपली स्थित पीली कोठी अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की गवाह है। ब्रिटिश काल में इस कोठी में अंग्रेज आकर रुकते थे। अंग्रेजी अफसरों की यहां कोर्ट भी चलती थी। अंग्रेजों के दमन से परेशान आजादी के मतवालों ने इस कोठी पर हमला बोलकर लूटपाट की थी और फिर इसे आग के हवाले भी कर दिया था।
ब्रिटिश शासन काल में अंग्रेजों की दमनकारी नीति से क्षेत्रीय लोग परेशान थे। क्षेत्र के गांव पीपली तगां में अंग्रेजों ने यहां आलीशान कोठी का निर्माण किया था। बड़े बुजुर्गों की मानें तो ब्रिटिश अधिकारी अक्सर यहां आकर रुकते थे। साथ ही उनकी कोर्ट भी यहां लगा करती थी।
कोठी के आसपास से गुजरने वाले लोगों को अंग्रेजी अधिकारी जबरदस्ती रोककर उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया करते थे। जिसको लेकर आजादी के मतवालों में प्रतिशोध की ज्वाला भड़क रही थी। वर्ष 1942 में जब पूरे देश में अंग्रेज भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया गया तो आजादी के मतवालों ने मौका पाकर इस कोठी पर चढ़ाई कर इसे आग के हवाले कर दिया था। साथ ही कोठी में रखे कीमती सामान को लूट लिया था।
इस मामले में ब्रिटिश अधिकारियों ने स्थानीय क्रांतिकारियों पर मुकदमे भी दर्ज कराए थे। हालांकि 1947 में देश को आजादी मिलने के बाद भारत सरकार ने इन सभी मुकदमों को वापस ले लिया था। एक बीघा भूमि में बनी इस ऐतिहासिक धरोहर की देखरेख वर्तमान में सिंचाई विभाग द्वारा की जा रही है।
कोठी लगभग एक बीघा में स्थित है, एक भवन बना हुआ है। जो, खंडहर बन चुका है। शहर के बुजुर्ग विजेंद्र शर्मा ने बताया कि अंग्रेजी शासन काल में बनी पीली कोठी अंग्रेज भारत छोड़ो आंदोलन की गवाह है। अंग्रेजों की दमनकारी नीति के चलते स्थानीय लोगों ने कोठी पर चढ़ाई कर इसे आग के हवाले कर दिया था।