Independence day: अमरोहा में महात्मा गांधी और डा. भीमराव आंबेडकर ने सुनाए थे आजादी के किस्से
Stories of Freedom खादगुर्जर चौराहे पर रानी सरला का आम का बाग और पड़ोस में रेलवे स्टेशन। जिक्र छेड़ा तो धन सिंह के दिमाग में यादें ताजा हो गईं। बोले देश आजाद होने के कुछ महीने बाद नवंबर या दिसंबर में पहले ट्रेन से महात्मा गांधी यहां आए।
बरेली, (साैरव प्रजापति)। Stories of Freedom: बात 1947 के नवंबर या दिसंबर की है। जब गजरौला की धरती पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) व संविधान निर्माता डा. भीमराव आंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) आए थे। दोनों महापुरुषों ने न सिर्फ जातियों के बीच होने से छुआछूत (अस्पृश्यता) को खत्म करने के लिए लोगों को जागरूक किया था बल्कि देश की आजादी के किस्से भी सुनाए थे।
शनिवार को दैनिक जागरण संवाददाता जब 95 वर्षीय बुजुर्ग धन सिंह से मिले, जिन्होंने इन दोनों महापुरुषों की पंचायत में हिस्सा लिया था। तब उन्होंने उस समय का पूरा दृश्य उकेर कर रख दिया। उस समय वह मुहल्ला आंबेडकर नगर में रहते थे। वर्तमान में चौहानपुरी में रहकर जिंदगी गुजार रहे हैं। धन सिंह बताते हैं कि उन्होंने न सिर्फ गोरों का दौर देखा है बल्कि उन दो सभा के गवाह भी रहे हैं, जिनमें महात्मा गांधी और बाबा साहेब थे।
खादगुर्जर चौराहे पर रानी सरला का आम का बाग और पड़ोस में रेलवे स्टेशन। जिक्र छेड़ा तो धन सिंह के दिमाग में यादें ताजा हो गईं। बोले, देश आजाद होने के कुछ महीने बाद नवंबर या दिसंबर में पहले ट्रेन से महात्मा गांधी यहां आए। बाग में सभा सजी और उसमें लगभग 100 लोगों की भीड़ जुटी थी।
भीड़ में सभी जातियों के लोग थे। उस दौरान गांधी जी ने सभी जातियों को एक मंच पर लाने के लिए छुआछूत (अस्पृश्यता) दूर करने का आह्वान किया था। उन्होंने बताया कि बापू के द्वारा कई लोगों को कुर्ते, पजामे और टोपियां भी भेंट की गई थी। तकरीबन दो से तीन घंटे तक रूके गांधी जी ने आजादी के बारे में भी विस्तार से बताया था।
कहा था, खून बहाकर देश को आजाद कराया है। इसलिए इस को अब हर गुलामियत से मुक्त कराना है। उनके आगमन के 15 से 20 दिन बाद फिर संविधान निर्माता डा. भीमराव आंबेडकर आए। कई अन्य लोग भी उनके साथ थे। जहां पर महात्मा गांधी की सभा हुई थी। उसी स्थान पर डा. भीमराव आंबेडकर की पंचायत हुई। उन्होंने भी छुआछूत (अस्पृश्यता) को दूर करने के साथ-साथ शिक्षा पर जोर दिया था। करीब ड़ेढ़ से दो घंटे तक पंचायत में रहने के बाद आगे के लिए रवाना हो गए थे।
...वो मास्टर भी अंग्रेजों जैसा ही था
धन सिंह बताते हैं कि वह छोटे थे और कक्षा एक में दाखिला लिया था। मुहल्ले में चौपाल पर शिक्षा की शुरूआत हुई। पूरे इलाके में सरकारी की बात तो दूर निजी स्कूल भी नहीं था। चौपाल पर लगने वाली क्लास में पढ़ाने आने वाले शिक्षक भी अंग्रेजों के जैसे ही थे। बिना गलतियों पर बच्चों के साथ मारपीट के साथ यात्नाएं देते थे। मुझे भी दी। उसी दिन शिक्षक से विवाद हो गया और फिर पढ़ाई छोड़ दी।