नाम सुनते ही उछल पड़ते हैं हाकिम, कहते हैं प्याज खाना जरूरी है क्या Moradabad News
प्याज की महंगाई ने जायका खराब किया तो जिम्मेदारों के भी मिजाज बिगड़ गए। दामों पर नियंत्रण के सवाल पर कहते हैं कि प्याज खाना जरूरी है क्या।
मुरादाबाद, (प्रांजुल श्रीवास्तव)। इन दिनों राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन चुके प्याज के दाम तो ऐसे बढ़ रहे हैं कि क्या प्याज और क्या अनार। इन दिनों प्याज खाना फीलिंग प्राउड जैसा हो गया है। सोशल मीडिया पर तो दर्जनों मीम्स और वीडियो ऐसे हैं जिन्होंने प्याज को लग्जरी आइटम घोषित कर दिया है। ऐसा लगता है कि कुछ दिन बाद प्याज खुद-ब-खुद अपने को राष्ट्रीय सब्जी घोषित करवाकर रहेगा। इस बीच जब मंडी के हाकिम जिन पर आपूर्ति और दाम पर नियंत्रण करने का जिम्मा है वह प्याज का नाम सुनते ही अपनी कुर्सी से उछल पड़ते हैं। अब वे नीम हकीम खतरा-ए-जान बन चुके हैं। लोगों को सस्ती दर पर प्याज उपलब्ध कराने के बजाय वे सभी को प्याज न खाने की ही सलाह दे रहे हैं। कहते हैं कि प्याज खाकर क्या अपनी अमीरी दिखाओगे. अब उनको कौन बताए ये अमीरी-गरीबी का नहीं आपकी सुस्ती और नाकामी का विषय है।
दर्द है, चिल्लाते नहीं मूंछे हों तो नत्थू लाल जैसी
एक व्यापारी नेता की मूंछ भी कुछ ऐसी ही हैं। सफेद लिबास और मूंछों पर ताव तो उनकी पहचान है। जरा सी मूंछ नीचे क्या हुई, मोम लगाकर रगड़ देते हैं। पिछले दिनों जीएसटी और नोटबंदी की मार से व्यापार पटरी से उतर गया। महंगाई ने भी व्यापार की गाड़ी के चीथड़े उड़ा दिए। दर्द व्यापारियों का था तो सब दौड़े-दौड़े नेता जी के पास पहुंचे और दर्द सुनाया। इस बीच हम भी इन व्यापारियों के बीच पहुंच गए। नेता जी ने पूछा क्या हुआ तो मौन साध गया। किसी ने कुछ और कुरेदा तो नजरें नेता जी से टकरा गईं। आख जैसे डबडबा गई, मूंछ भी कुछ नीचे हो गई, सफेद लिबास में पीलापन आ गया। कड़क रहने वाली जुबान भी लड़खड़ा कर बोल उठी.भाई हम पार्टी के कार्यकर्ता हैं और फिर क्या आखों ही आखों में सब इशारा भी समझ गए।
तो पोल नहीं खुल जाएगी
दबी जुबान बहुत कुछ कहती है. इतना कि कभी-कभार बगावत पर उतर आती है। छोटी तालीम वाले विभाग में ऐसा ही है। अभी बगावत तो नहीं हुई है लेकिन, सुर तो फूटने ही लगे हैं। विभाग में सबकुछ चकाचक करने के लिए मोबाइल पर एप लाच किया गया.। सुबह स्कूल आते समय और जाते समय सेल्फी लेकर इस एप पर डालनी थी। स्कूल के समय में चाय की दुकान और साहब के दफ्तर में नेतागिरी झाड़ने वाले नेताओं को ये रास नहीं आया.. आता भी कैसे भई उनकी पोल नहीं खुल जाएगी। भाई, खूब नेतागिरी हुई। इतनी कि बात कार्य बहिष्कार तक पहुंच गई। इस बीच संगठन के ही कुछ शिक्षक दबी जुबान से एप को जायज ठहराने लगे, कहते हैं कि इनको तो बस नेतागिरी करनी है, करने दो। जुबान तो अभी दबी है लेकिन, वह दिन दूर नहीं जब बगावत भी होगी और सेल्फी भी ली जाएगी।
जानते सब हैं, मानते नहीं
माध्यमिक शिक्षा परिषद की ओर से यूपी बोर्ड की परीक्षाएं शुरू होने में कुछ दिन ही बचे हैं। परीक्षाओं से पूर्व प्रयोगात्मक परीक्षाओं को सिलसिला जारी है। अब माध्यमिक शिक्षा के स्कूल में प्रयोगात्मक परीक्षाओं का हाल कैसा होगा यह किसी से छुपा नहीं है। भाई, जिन राजकीय व सहायता प्राप्त विद्यालयों में प्रयोगशाला ही नहीं, जहा आज तक बच्चों ने परखनली नहीं पकड़ी, वहा तो सब राम भरोसे ही है। प्रयोगात्मक परीक्षा की तिथि घोषित होने के बाद जब प्रयोगशालाओं की खबर अखबारों में भी छपी तो बड़े साहब ने गुपचुप प्रधानाचायरें की बैठक बुलाई और बोले, थोड़ी बहुत परखनली, बीकर और फ्लास्क खरीद कर रख लो.. लेकिन, मंझली तालीम वाले बड़े साहब मानते ही नहीं हैं। साहब कहते हैं सब चंगा है। इससे इतर अगर प्रधानाचायरें से पूछो तो हकीकत कुछ और ही सामने आती है। साफ है कि जानते सब हैं, मानते कुछ नहीं।