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अमेरिका से मुरादाबाद में आ रहा कोयला, पसंद नहीं आ रहा स्‍वदेशी

Foreign coal demand अमेरिकी कोयले की जीसीवी 70 फीसद तक होती है। ग्रास कैलोरिफिक वैल्यू बताती है कि कोयला में कितनी ज्वलनशीलता है और कितनी राख है।

By Narendra KumarEdited By: Published: Tue, 30 Jun 2020 05:05 PM (IST)Updated: Tue, 30 Jun 2020 05:05 PM (IST)
अमेरिका से मुरादाबाद में आ रहा कोयला, पसंद नहीं आ रहा स्‍वदेशी
अमेरिका से मुरादाबाद में आ रहा कोयला, पसंद नहीं आ रहा स्‍वदेशी

मुरादाबाद (रितेश द्विवेदी)।  बिहार और झारखंड की खदानों से भी कोयला निकलता है मगर जिले में तीन सालों से आपूर्ति नहीं हो पा रही। इसके अलावा देश के अलग राज्यों की खदानों में लगभग तीन सौ अरब टन कोयले का भंडार है। इसके बावजूद जिले में अमेरिका से आने वाले कोयले का प्रयोग किया जा रहा है।

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देश की खदानों से निकलने वाले कोयले का प्रयोग न होने के पीछे भट्ठा मालिक कई कारण बताते हैं। कहते हैं कि सरकार इन खदानों से निकलने वाले ए ग्रेड (ज्यादा ज्वलनशीलता) का कोयला भट्ठों के लिए नहीं बेचती है। बी, सी और ई ग्रेड का कोयला अलग राज्यों में सप्लाई किया जाता है। इस कोयले में ज्वलनशीलता कम और राख की मात्र अधिक होने के कारण भट्टा मालिकों ने प्रयोग बंद करना शुरू कर दिया। देश से निकलने वाला कोयला जनपद तक सप्लाई होने में महंगा पड़ता है, जबकि अमेरिका से आने वाला कोयला सस्ता पड़ता है।

जिले में यह है स्थिति

कुछ साल पहले तक जिले में पहले प्रति माह एक हजार ट्रक कोयले की सप्लाई देश की खदानों से निकलने वाले कोयले से होती थी। मौजूदा समय में अमेरिका के साथ ही इंडोनेशिया और अफ्रीका से भी कोयले का कुछ आयात किया जा रहा है। कोयला आयात होने का सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। स्वदेशी पर जोर दिया जा रहा मगर अलग कारणों से अपने देश के कोयले से किनारा कर अमेरिका से आने वाले माल को पसंद किया जा रहा है।

गुजरात से हो रही आपूर्ति

अमेरिका का कोयला पूरे देश में गुजरात से सप्लाई किया जा जाता है। साल 2014 में अमेरिका से कोयला आने की शुरुआत हुई थी। गुजरात के कांडला बंदरगाह से अमेरिकी कोयले को देश के सभी स्थानों में भेजा जाता है।

व्यापारियों का कहना है कि अमेरिकी कोयला जिले में ट्रक आने के साथ ही साढ़े तीन लाख रुपये में 35 टन मिल जाता है, जबकि बिहार और झारखंड से आने वाला कोयला मंगाने पर उन्हें साढ़े चार लाख से पांच लाख रुपये देने पड़ते हैं। वहीं भारत की खदानों से निकलने वाले कोयले की जीसीवी (ग्रास कैलोरिफिक वैल्यू) 50 फीसद तक होती है।

गुजरात से अमेरिकी कोयले की सप्लाई होती है। इसे मंगाने में ज्यादा प्रशासनिक परेशानी नहीं होती है। सरकार अगर नीतियों में सुधार लाएं तो शायद हमें विदेशी कोयला मंगाने की जरूरत ही नहीं होगी।

-गजराज कुंवर जैन, कोयला व्यापारी

अमेरिका से आने वाला कोयला सस्ता मिलता है, दूसरे राज्यों से आने वाले कोयले की जीसीवी कम होने के साथ ही समय पर आपूर्ति भी नहीं होती। इसी कारण से विदेशी कोयले की मांग बढ़ी है

-नितिन गुप्ता, अध्यक्ष, भट्ठा एसोसिएशन।


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