किसानों का हौसला तोड़ रही कोसी नदी, लहरें बरपाती हैं कहर
नदी की तलहटी में बसे 15 गांवों की करीब एक लाख आबादी बेचैन है। इनमें से ही एक ग्राम सभा भीतखेड़ा का मजरा हिरनखेड़ा अपने मददगार की तलाश कर रहा है।
मुरादाबाद (श्रीशचंद्र मिश्र राजन)। मुरादाबाद व रामपुर की सीमा रेखा खींचने वाली कोसी नदी की लहर फिलहाल खामोश हैं। पानी का प्रवाह नदी तल में है। इसके बावजूद नदी की तलहटी में बसे 15 गांवों की करीब एक लाख आबादी बेचैन है। इनमें से ही एक ग्राम सभा भीतखेड़ा का मजरा हिरनखेड़ा अपने मददगार की तलाश कर रहा है। महज ढाई माह बाद ही कोसी की कहर बरपाती लहरें हिरनखेड़ा समेत 15 गांवों को अपने आगोश में लेने की कोशिश करेंगी। खरीफ की फसल ही नहीं बल्कि तिनका तिनका बटोर कर खड़े हुए गरीब किसानों का आशियाना भी बाढ़ अपने साथ बहा ले जाएगी। यही वजह है कि ग्रामीण भयभीत हैं। रात बेचैनी में और दिन बाढ़ से बचाव का तानाबाना बुनने में कट रहा है। उधर कीचड़ से सने संपर्क मार्ग मुरादाबाद सिर्फ कोसी की बाढ़ ही हिरनखेड़ा के लिए अभिशाप नहीं है, बल्कि विकास कार्यों की कच्छप गति भी यहां के ग्रामीणों को कचोटता है। गांव में ऐसे कई संपर्क मार्ग हैं, जो आज भी पक्के नहीं बन सके हैं। गरीबी से जूझते हुए खेती करना और गाढ़ी कमाई पानी में बर्बाद होते देखना हमारी नियति है। बाढ़ के कारण हिरनखेड़ा की 70 फीसद आबादी पैसों से कमजोर है।
खेतों में महीनों तक भरा रहता है पानी
राजेश का कहना है कि बाढ़ के कारण खेतों में महीनों तक पानी जमा रहता है। रवि की फसल भी प्रभावित होती है। कोसी का पानी जून व जुलाई में अभिशाप बन कर पूरे गांव को घेर लेता है।
अब तक नहीं बना नदी किनारे बांध
कोसी की तलहटी में मूंढापांडे विकास खंड क्षेत्र के कुल 15 गांव ऐसे हैं जो प्रति वर्ष बाढ़ की चपेट में आते हैं। इसमें दीपखेड़ा, मिलक, हीरापुर, रनियाखेड़, चकरमपुरा, बिसैड़ा, रजौड़ा, कन्नड़देव आदि गांव शामिल हैं। ग्राम प्रधान भीतखेड़ा संदीप कपूर बताते हैं कि खरीफ की फसल में जो लागत लगती है, उसका दस फीसद भी किसान को वापस नहीं मिलता। किसानों के साथ कोसी का खेल और रहनुमाओं की उपेक्षा वर्षो से जारी है। उन्होंने बताया कि रामपुर की सीमा में कोसी पर तटबंध बना है। ऐसे में नदी के पानी का पूरा दबाव मुरादाबाद जिले पर होता है। पूर्व में कई बार जन प्रतिनिधि व प्रशासनिक अफसरों ने बाढ़ प्रभावित गांवों का भ्रमण किया। बांध बनाने का आश्वासन भी दिया। इसके बावजूद अब तक बांध का निर्माण नहीं हो सका है। रमेश पाल का कहना है कि कोसी में बाढ़ आते ही दिल बैठ जाता है। चाह कर भी अपनी फसल हम नहीं बचा पाते। प्रति वर्ष हमारी गाढ़ी कमाई नदी की धारा में विलीन हो जाती है।
वादों और दावों से सीना हो गया छलनी
जगदीश सिंह का कहना है कि वादे व दावों ने हमारा सीना छलनी कर दिया है। सब्र का तटबंध अब टूटने लगा है। नदी पर तटबंध बनाने का सिर्फ कोरा आश्वासन मिला। इसे पूरा नहीं किया गया।
पीडि़त महिला ने बताई बाढ़ की विभीषिका
लहरों से दशकों तक जूझना, बाढ़ में घर और खेती बर्बाद होते देखना। सपने टूटते व अरमानों को लुटते देखना किसी भी इंसान के हौसले को पस्त कर देगा। ऐसी ही वेदना के शिकार मूंढापांडे विकास खंड क्षेत्र के 15 गांवों में निवास करने वाले सैकड़ों गरीब किसान परिवार हैं, जिनका कोई मददगार नहीं। इन परिवारों को अब तक वह मसीहा मिला ही नहीं, जो कोसी की खतरनाक लहरों से उन्हें उबार सके।
अरमान भी लूट रही कोसी
कोसी की धार सिर्फ किसानों के अरमानों पर ही पानी नहीं फेर रही, बल्कि ग्रामीणों का सपना भी तोड़ रही है। मासूमों का जीवन निगल रही है। हिरनखेड़ा के रहने वाले रतिभान ने बताया कि आठ जून 2013 को उनका दस वर्षीय पुत्र हिमांशु नदी की धारा में समा गया। उसके साथ गांव का एक और लड़का भी नदी में डूब गया था। तभी से गांव के बच्चों ने नदी से किनारा कस लिया है।