बदलते समाज को आइना दिखा रहा फैजान हत्याकांड
फैजान हत्याकांड आज हमें यह सोचने पर मजबूर कर रहा है कि बच्चे किस दिशा में जा रहा है।
मुरादाबाद : भोजपुर का फैजान हत्याकांड आज हमें यह सोचने पर मजबूर कर रहा है कि आखिरकार तीन नाबालिग दोस्तों ने कातिल बनने तक का सफर कैसे तय किया। खुद से भी छोटे बच्चे का गला रेतने में कातिलों के हाथ क्यों नहीं कांपे। वह कौन सी परिस्थिति बनी जिसके वशीभूत होकर नाबालिग मन बहसी बन बैठा। फैजान हत्याकांड से उठे इन ज्वलंत सवालों ने उन लोगों को भी सोचने पर विवश कर दिया है, जिनके कंधे पर समाज को दिशा दिखाने की जिम्मेदारी है।
पुलिस के दावे हैं कि फैजान की हत्या सोची समझी साजिश के तहत की गई? चिढ़ाने पर तीखी प्रतिक्रिया करने वाले फैजान को उसी के पड़ोसियों ने प्रतिशोध में मार डाला। सवाल यह कि नाबालिग कातिलों के दिल व दिमाग में प्रतिशोध की भावना इस कदर भड़कने का कारण क्या रहा? वह कौन सी परिस्थिति बनी, जिसके चलते छह वर्षीय फैजान को रस्सी से बांध कर मौत के घाट उतारा गया? इन सवालों का जो जवाब बाल मनोवैज्ञानिक व समाज शास्त्री देते हैं, वह न सिर्फ सोचने पर विवश करता है, बल्कि यह आंकलन करने का मौका भी देता है कि आज हमारा समाज कहां खड़ा है।
बाल मनोविज्ञानी ने अंजली महलके बताया कि बाहर वर्ष व इससे कम उम्र के बच्चों ने जिस रूप में कत्ल किया है, वह बदलते समाज को दर्पण दिखा रहा है। दो राय नहीं कि जिन बच्चों पर कत्ल का आरोप है उनकी परवरिश ठीक से नहीं हुई। उनके आचरण व हावभाव पर परिजनों ने नजर नहीं रखी। निर्ममता पूर्वक कत्ल समाज ही नहीं बल्कि उस परिवार की सोच को भी उजागर करता है, जहां बच्चे पल रहे हैं। बच्चों की परवरिश पर ध्यान देना होगा। उनकी सोहबत पर नजर रखनी होगी। उनके क्रिया कलाप को समझना होगा। तभी ऐसी घटनाएं रोकी जा सकेंगी।
समाज शास्त्री डा. विशेष गुप्ता ने बताया कि लॉकडाउन जैसी परिस्थिति में बच्चों की सहनशीलता कम हुई है। स्कूल बंद हैं। परिवार में उदासीनता है। सामाज को नियंत्रित करने वाली जो संस्थाएं हैं, वह बंद व अवसाद में हैं। इसका सीधा असर बच्चों पर पड़ रहा है। कत्ल के तीनों आरोपित साथ रहते थे। फैजान के तीखे विरोध से कत्ल के आरोपितों में असहनशीलता भरी। इसे भांपने में परिवार व आरोपितों के हम उम्र लोग विफल रहे। यही वजह रही कि बच्चों में सहनशीलता का भाव विकसित नहीं हो पाया और फैजान की हत्या हो गई।