खोदाई के बाद भी नहीं जान पाए थे शिवलिंग की गहराई, खास है सादातवाड़ी का पातालेश्वर महादेव मंदिर
दूरदराज के लोग धार्मिक गीतों और भजनों को प्रस्तुत करते हुए शिव भक्तों को आकर्षित करते हैं। शिवरात्रि पर कावडिय़ों का लगता है जमावड़ा।
सम्भल, जेएनएन। जिले के बहजोई में आजादी के पूर्व से महादेव का एक ऐसा मंदिर जो पातालेश्वर महादेव प्राचीन मंदिर के नाम से जाना जाता है। बहजोई क्षेत्र के गांव सादातवाड़ी में स्थित 118 सालों से इस मंदिर में शिवभक्तों की अटूट आस्था है। प्रत्येक वर्ष सावन और फागुन माह में आने वाली महाशिवरात्रि के दौरान यहां लगने वाला मेला अद्भुत छटा बिखेरता है। स्थानीय संस्कृति और धार्मिक आस्था को संजोए हुए इस पातालेश्वर मंदिर का इतिहास भी कुछ अनोखा है।
यह है धार्मिक मान्यता
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर के निर्माण से पूर्व कुछ अजीबोगरीब घटना घटित हुई और भक्तों के मन में तभी से महादेव की ऐसी आस्था बस गई जो आज तक अटूट बनी है। यहां न केवल महाशिवरात्रि या फिर प्रत्येक माह की तेरस तिथि पर जलाभिषेक किया जाता है बल्कि प्रत्येक सोमवार को शिव भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है। आने वाली 21 फरवरी को यहां विशाल मेला का आयोजन होगा। जिसमें हजारों कांवडिय़ा हरिद्वार समेत अन्य स्थानों से गंगाजल लेकर आएंगे और अपनी साधना करते हुए यहां जलाभिषेक करेंगे।
शिवलिंग की खुदाई के वक्त घटित हुई थी अजीब घटना
सात सितंबर 1902 को स्थापित सादातवाड़ी गांव के प्राचीन श्री पातालेश्वर महादेव शिव मंदिर के इतिहास को 118 साल से अधिक पुराना माना जाता है। ग्राम प्रधान कृष्ण कुमार बिट्टन का दावा है कि मंदिर निर्माण से पूर्व बहजोई के जमींदार साहू भिखारी दास को भगवान शिव ने स्वप्न दिया और कहा कि मैं किसी खेत में दबा हुआ हूं। जहां घास छीलने वाले कुछ लोग अपनी खुरपी की धार बनाते हैं। जिसके बाद साहू भिखारी दास ने अपने एक गुरु से सलाह लेकर स्वप्न में बताए गए स्थान को तलाश किया जोकि बहजोई नगर से सात किलोमीटर दूर स्थित सादातवाड़ी गांव में मिला। जैसे ही साहू भिखारी दास को पत्थर दिखाई दिया तो उन्होंने वहां के स्थान की खोदाई कराकर उसकी गहराई जानने का प्रयास किया।
जैसे-जैसे खोदाई का कार्य चलता वैसे वैसे शिवङ्क्षलग भी जमीन में बैठता गया। जानकारों का मानना है कि शिवलिंग के नीचे की खुदाई करते करते जब पानी की मात्रा अधिक बढ़ गई तो उसकी खोदाई कर पाना संभव नहीं था। इसके बाद साहू भिखारी दास ने शिवङ्क्षलग की गहराई को देखने के लिए उन्होंने सीढ़ी के जरिए गड्ढे में उतरने का प्रयास किया तो उनकी आंखों की रोशनी अचानक चली गई। उन्होंने और उनके पिता तुलाराम ने भगवान भोलेनाथ से क्षमा याचना की। जिसके बाद उनकी आंखों की रोशनी वापस आ गई और तभी से उन्होंने मंदिर निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर दी।
गांव के लोगों ने मंदिर के निर्माण में सहयोग किया, जिसमें लोगों ने अंशदान, समय दान आदि का सहयोग करते हुए भगवान भोलेनाथ में अपनी आस्था जताई और तभी से यहां के मंदिर पर सावन व फागुन मास की शिव तेरस को मेले का आयोजन होने लगा।
राम लीला, रासलीला और विशाल भंडारे का आयोजन
आस्था के केंद्र बने सादात बाड़ी के पातालेश्वर महादेव मंदिर पर महाशिवरात्रि के दौरान आस्था का समंदर उमड़ता है। एक के बाद एक यहां पर बनी धर्मशाला और परिसर में लगातार हुए विकास के बाद इस धार्मिक स्थल की भव्यता बढ़ती जा रही है। मुख्य मंदिर के अलावा अलग-अलग देवी-देवताओं के मंदिर और पशुपतिनाथ का प्रमुख मंदिर भी यहां की भव्यता को बढ़ाता है। यहां की अलग-अलग धर्मशालाओं में भंडारे के के साथ कथा, संगीत, श्रीमद् भागवत कथा, रासलीला, रामलीला और भजन कीर्तन का बड़े स्तर पर आयोजन किया जाता है।