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रामपुर में गाय के गोबर से मिला युवाओं को रोजगार

एक गाय इंसान को काफी सारे फायदे पहुंचाती है। इसे हम ही नहीं विज्ञान ने भी माना है। गाय के दूध मूत्र और गोबर काफी उपयोगी होते हैं।

By Narendra KumarEdited By: Published: Tue, 11 Jun 2019 02:28 PM (IST)Updated: Tue, 11 Jun 2019 05:15 PM (IST)
रामपुर में गाय के गोबर से मिला युवाओं को रोजगार
रामपुर में गाय के गोबर से मिला युवाओं को रोजगार

भास्कर सिंह, (रामपुर) : एक गाय इंसान को काफी सारे फायदे पहुंचाती है। इसे हम ही नहीं विज्ञान ने भी माना है। गाय के दूध, मूत्र और गोबर काफी उपयोगी होते हैं। यही कारण है कि गाय को ङ्क्षहदू धर्म में मां का दर्जा दिया जाता है। गाय के दूध से बनने वाले घी की बात करें या मूत्र की यह कई बीमारियों में साधक बने हैं। ऐसे ही गोबर है, यह रोजगार भी देता है। गोबर अब कमाई का जरिया बन गया है। रामपुर के छह युवाओं ने इसे रोजगार के तौर पर अपनाया है। इन युवाओं ने गोबर से धूपबत्ती, अगरबत्ती, मच्छर भगाने की बत्ती आदि को बेचकर आमदनी का जरिया बनाया है। इसके अलावा खुद भी गाय के गोबर से उपले, मूर्तियां, दंत मंजन, फेसपैक, दवाएं आदि बना रहे हैं। सिर्फ उपले बेचकर ही इनकी सालाना करीब 40 हजार रुपये की आमदनी हो जाती है। 

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गाय के गोबर से बनी मूर्तियों की सबसे ज्यादा डिमांड 

गोसेवा परिवार से जुड़े प्रांजल अग्रवाल बताते हैं कि गाय के गोबर से लक्ष्मी-गणेश और लड्डू गोपाल की मूर्तियों की सबसे ज्यादा डिमांड है। लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा दीपावली के समय सबसे ज्यादा बिकती हैं। पिछले साल दीपावली के समय करीब तीन हजार मूर्तियां बिकी थीं। अभी तो गोबर की बनी मूर्तियां मध्य प्रदेश से मंगा रहे हैं और यहां इन्हें पेंट करने के बाद पैकिंग करके बेचते हैं। यह मूर्तियां तीन साइज में बनी हैं। इनकी कीमत 50 से 250 रुपये तक है। इस बार दीपावली पर यहीं पर मूर्तियां तैयार करने की योजना है। इसके अलावा चारकोल दंतमंजन, फेसपैक आदि भी यहां बनाए जा रहे हैं। 

कैसे मिली युवाओं को प्रेरणा

गाय के गोबर से बेरोजगारी दूर करने वाले इन युवकों में रोशन बाग के रजत मेहरोत्रा, मिस्टन गंज के शोभित बंसल, सराफा बाजार के प्रांजल अग्रवाल, ज्वालानगर के आदित्य शर्मा, सेंट्रल बैंक की गली के कार्तिक भटनागर और चौकी हजियानी के चंद्रिका चौरसिया हैं। ये सभी दोस्त हैं। करीब तीन साल पहले ये सभी गो सेवा परिवार से जुड़े और गोशाला में जाकर गायों की सेवा करने लगे। सुबह गोशाला जाकर गायों को चारा खिलाना और जख्मी गायों की मरहम पट्टी करना इनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया। गायों की सेवा के लिए पहले तो ये सभी अपनी जेब से पैसे खर्च करते थे। फिर धीरे-धीरे बेरोजगारी के चलते पैसों की कमी सेवा मेें बाधा बनने लगी। तब गायों के गोबर से उत्पाद बनाकर बेचने का ख्याल आया। फिर क्या था सभी दोस्तों ने इंटरनेट की मदद ली और गाय के गोबर से बनने वाले उत्पादों की जानकारी की। इसके बाद मध्य प्रदेश और राजस्थान से माल मंगाने लगे। उत्पाद मंगाकर बेचने शुरू कर दिए। इसके बाद गोबर के उपले बनवाकर हवन सामग्री वाली दुकानों पर सप्लाई करने लगे। धीरे-धीरे समझ आने लगी और गाय के गोबर से अन्य उत्पाद जैसे मूर्तियां, फेसपैक, दवाएं आदि बनाने लगे। समय के साथ काम चलने लगा और अब इतनी आमदनी होने लगी कि गोसेवा करने में दिक्कत नहीं आती है और अच्छी बचत भी हो रही है। अब इनके साथ अन्य युवा भी जुड़कर गोसेवा करने लगे हैं।

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