अपने नाम को सार्थक करके चले गए डॉ. नामवर सिंह
डॉ. नामवर सिंह ने मंगलवार रात 93 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली, जिससे साहित्य जगह शोक की लहर में डूब गया।
मुरादाबाद, जेएनएन। यह हिंदी के प्रतिमानों के लिए यह त्रासदी का समय है। उसके फलक से एक और सितारा जुदा हो गया है। जिसका नाम है डॉ. नामवर सिंह। हिंदी साहित्य का ऐसा समालोचक जिससे लोग या तो सहमत होते थे या असहमत, लेकिन उपेक्षा करने वाला कोई नहीं होता था। दशकों तक हिंदी साहित्य के प्रतिमान बने रहे डॉ. नामवर अपने नाम को सार्थक करते हैं। वे खुद कहते थे कि मैं इस पीढ़ी का आलोचक हूं। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है। मुरादाबाद के साहित्यकारों ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी।
मंगलवार की रात ली अंतिम सांस
हजारी प्रसाद द्विवेदी के शिष्य, प्रगतिवादी समालोचना को स्थापित करने वाले डॉ. नामवर का नाम हिंदी के उन साहित्यकारों में सबसे पहले लिया जाता था, जिनकी दृष्टि अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य भी समग्र और विहंगम थी। मंगलवार रात 93 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली, जिससे साहित्य जगह शोक की लहर में डूब गया। मुरादाबाद के साहित्यकारों का कहना है कि उनका जाना हिंदी समालोचना के सबसे अग्रिम पंक्ति को शून्य कर गया है, इस पीढ़ी में अब कोई दूसरा नामवर नहीं होगा।
उनके साथ कई बार मंच साझा किया : माहेश्वर तिवारी
वरिष्ठ नवगीतकार माहेश्वर तिवारी का कहना है कि समकालीन हिंदी आलोचना के शिखर पुरुष डॉ. नामवर का जाना आलोचना के परिसर को गहरे शून्य से भर गया है। उनकी आलोचना देशज शब्दों में बतकही और शुद्ध हिंदी में विमर्श की पद्धति की आलोचना थी। कविता के नए प्रतिमान और दूसरी परंपरा की खोज उनके कृतित्व के आयाम कहे जा सकते हैं। उनके साथ मंच साझा करने के कई अवसर मिले। नामवर जी के गद्य की तरह उनकी बतकही परक आलोचना भी महत्वपूर्ण रही। वे कुशल अध्यापक, वक्ता और अपने जीवन के प्रथम अध्याय में एक कुशल गीतकार भी रहे। हिंदी के सृजनात्मक फलक से उसका आइना खो गया है, जिसमें झांक कर सृजनधर्मी अपना अक्स देखा करते थे।
नामवर का जाना भारी क्षति : मंसूर उस्मानी
मशहूर शायर मंसूर उस्मानी का कहना है कि नामवर जी का जाना केवल सृजनात्मक साहित्य की ही नहीं, साहित्यिक आलोचना की भी महान क्षति है। इस कमी का पूरा होना बहुत मुश्किल नजर आता है। इस ज्ञान सागर को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि। इस पीढ़ी में अब कोई दूसरा नामवर नहीं होगा, उनका जाना हिंदी साहित्य को शून्य से भर गया है।
एक युग का हो गया अवसान : अजय अनुपम
साहित्यकार अजय अनुपम का कहना है कि हिंदी साहित्य के एक युग का अवसान हो गया है। शीर्ष पंक्ति का शून्य बड़ा हो गया है। अब नये पत्ते तेज धूप सहने का साहस बटोर कर आगे बढऩा सीखेंगे।
कई बड़े साहित्यकार कह गए अलविदा : योगेंद्र वर्मा व्योम
नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम का कहना है कि डॉ. नामवर सिंह का जाना ङ्क्षहदी साहित्य में आलोचना के पक्ष की बड़ी क्षति है। बीते साल और इस साल के आरंभ से ही साहित्य के बड़े-बड़े हस्ताक्षरों का जाना भीतर तक झकझोरता है। कुमार रवींद्र, पुष्पेंद्र वर्णवाल, ज्ञानवती सक्सेना, शंकर सुल्तानपुरी, डॉ. अर्चना वर्मा, डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी और अब डॉ. नामवर सिंह जैसे बड़े साहित्यकार अलविदा कह गए। समय आखिर क्या चाहता है?
डॉ. नामवर के समय में समृद्ध हुआ हिंदी साहित्य : शिशुपाल मधुकर
साहित्यकार शिशुपाल मधुकर का कहना है कि बिरले लोगों ने ही ङ्क्षहदी साहित्य में आलोचक के रूप में काम किया है। डॉ. नामवर सिंह उनमें से ही एक थे, ङ्क्षहदी साहित्य उनके समय में समृद्ध हुआ है। उन्होंने बहुत सारे साहित्यकारों को मांजा है। वे गुरुदेव के नाम से जाने जाते थे। ङ्क्षहदी का गुरु चला गया।
उन्होंने शिष्य का कर्तव्य निभाया : डॉ. रामानंद शर्मा
हिंदू कालेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. रामानंद शर्मा का कहना है कि डॉ. नामवर ने माक्र्सवादी समालोचना को स्थापित किया और प्रगतिवादी समालोचना को उन्होंने आगे बढ़ाया था। हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के अंतिम समय तक साथ रहे और अपने गुरु पर दूसरी परंपरा की खोज पुस्तक लिख कर उन्होंने शिष्य का कर्तव्य निभाया। अपभ्रंश साहित्य पर उनका काम वास्तव में सबसे समृद्ध है।
बेबाकी से कहते थे थे अपनी बात : डॉ. मीना कौल
एमएच कॉलेज की प्राचार्या डॉ. मीना कौल का कहना है कि बनारस में हुई रिफ्रेशर में डॉ. नामवर जी से मेरी मुलाकात हुई थी। कार्यक्रम का उद्घाटन उन्होंने ही किया था। अपना व्यक्तव्य रखने पर उन्होंने मेरी प्रशंसा भी की थी। डॉ. नामवर ऐसे व्यक्ति थे जो अपनी बात बेबाकी से कहते थे। ङ्क्षहदी साहित्य में उनके जैसा आलोचक दोबारा नहीं होगा।
उनके जैसा कोई आलोचक नहीं होगा : मीना नकवी
शायरा मीना नकवी का कहना है कि नामवर जी ने कहा था मैं इस पीढ़ी का आलोचक हूं और इस बात में कोई शक नहीं है कि इस पीढ़ी में क्या अगली पीढ़ी में भी उनके जैसा कोई आलोचक नहीं होगा। मेरी उनसे मुलाकात रामपुर में हुई थी। वे नए लोगों को सम्मान देते थे।
कविता की एक नई समझ विकसित हुई : डॉ. उन्मेष कुमार सिन्हा
हिन्दू कालेज के हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर और कथाकार डॉ. उन्मेष कुमार सिन्हा का कहना है कि प्रो. नामवर सिंह का समय हिन्दी आलोचना के इतिहास मे नामवर युग के नाम से जाना जायेगा। कविता के नये प्रतिमान के माध्यम से जिन काव्य मूल्यों पर उन्होने बल दिया, उससे कविता की एक नई समझ विकसित हुई। उन्होंने कथा समीक्षा के नये औजार दिये। जनपक्षधर रचनाशीलता के पैरोकार नामवर सिंह ने ङ्क्षहदी में बहस की एक संस्कृति विकसित की। उन्हें अपनी स्थापनाओं से मोह नहीं था, इसलिए स्वयं उसे खारिज करने की सामथ्र्य रखते थे। कविता के नये प्रतिमान, पंत और अज्ञेय के संबंध में कालांतर मे दिये गये उनके वक्तव्य इस बात के प्रमाण हैं और यही नामवर होने का अर्थ है।