क्या आप जानते हैं, टाइटेनिक फिल्म में जहाज की लाइटें डिजाइन करने वाले मुरादाबाद के रहने वाले हैं
दुनिया के सबसे अमीर बिल गेट्स के घर पर लगी लाइटें भी मुरादाबाद के इम्तियाज हक ने ही डिजाइन की हैं। इसके अलावा जुरासिक पार्क और टाइटेनिक फिल्म के निर्देशक स्टीवेन स्पीलबर्ग और जेम्स कैमरून के घर की लाइटें भी इन्होंने ही डिजाइन की हैं।
मुरादाबाद, जेएनएन। Moradabad connection of Titanic film ship's light। देश छोड़कर इम्तियाजुल हक अमेरिका में बस तो गए पर उनका दिल अब भी वतन के लिए वैसे ही धड़कता है। इसलिए अपना नाता देश के साथ ही शहर और नाते रिश्तेदारों से बनाए हैं। इतना ही नहीं विदेश में रहकर काम तो जुटाया, पर उसे पूरा मुरादाबाद में ही किया। अपने काम के बल पर दुनिया भर में पहचान बनाई तो मुरादाबाद का नाम भी रोशन किया। उनकी बनाई लाइट अब अमेरिका की बड़ी-बड़ी कंपनियों के साथ बिल गेट जैसे विश्व प्रसिद्ध लोगों के घर को रोशन कर रही हैं। इसके अलावा उनकी बनाई लाइटें टाइटेनिक फिल्म में भी प्रयोग की गईं।
इम्तियाजुल हक मुरादाबाद के सिविल लाइंस क्षेत्र के रहने वाले थे। यहां की गलियों में खेले-कूदे और बड़े हुए। 1980 में वे अमेरिका चले गए और वहीं बस गए। अब न्यूयार्क में उनका घर है और पूरे परिवार के पास अमेरिकी नागरिकता है। शुरुआत में उन्होंने मुरादाबाद के पीतल से जुड़ा काम किया। अमेरिका में जाकर इंटीरियर डिजाइनिंग का काम करने लगे। उन्होंने अपनी डिजाइन की हुई लाइट बनाना शुरू किया। उनकी बनाई लाइट थोक में नहीं जाती हैं। सुपर एक्सक्लूसिव आइटम नगों के हिसाब से तैयार होती हैं। इसकी कीमत चुकाना हर किसी के बस की बात नहीं है। उनके बनाए गए आइटम ग्राहक की मांग पर तैयार होते हैं। इनका कुछ हिस्सा मुरादाबाद में भी बनता है। इसके चलते वह मुरादाबाद आते-जाते रहते हैं। उनके जरिये यहां के कारीगरों को भी अच्छा खासा काम मिलता रहता है।
दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति के घर में लगीं उनकी बनाई लाइट
इम्तियाजुल हक बताते हैं कि दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति बिल गेट ने अपने घर के लिए लाइट तैयार कराई थीं। वहां केवल गिने चुने पीस ही लगे हुए हैं। इसके अलावा उनकी बनाई लाइटें टाइटेनिक फिल्म में भी प्रयोग की गईं। फिल्म के निर्देशक जेम्स कैमरून के अलावा जुरासिक पार्क फिल्म के निर्देशक स्टीवेन स्पीलबर्ग के घर के लिए भी लाइट डिजाइन कीं और बनाकर भी दीं।
आज भी दिल में बसता है मुरादाबाद
इम्तियाजुल हक ने बताया कि मुरादाबाद आज भी उनके दिल में बसता है। सभी रिश्ते-नातेदार यहीं रहते हैं। शुरुआती दिनों में मोटरसाइकिल से चलते थे और उसी से काम भी करते थे। 1979 की बात है, हम सभी दोस्त टाउन हाल पर नए खुले कॉफी हाउस में बैठे थे। वहां सभी ने काफी पीने के साथ नाश्ता किया और बर्फी भी खाई। 25 रुपये का बिल आया, तो दुकानदार से पूछा कि इतना ज्यादा बिल कैसे आया। उन्होंने बताया कि आपने काजू वाली बर्फी खाई है, जो उस समय बीस रुपये किलो मिलती थी। रुपये पूरे नहीं होने पर सभी को दुकानदार ने वहीं बैठा लिया। बाद में एक दोस्त घर जाकर रुपये लाया, तब वहां से छूटे।
बच्चों की छुट्टियां मुरादाबाद में बीतीं
इम्तियाजुल हक बताते हैं कि बच्चों का रिश्ता अपने देश और जमीन से बनाए रखने के लिए जब भी उनकी लंबी छुट्टी होती है तो मुरादाबाद में छोड़ देते हैं। ताकि वे भी अपने देश और जड़ों को न भूलें।