संवाद हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा : माहेश्वर तिवारी
नवगीतकार डॉ. माहेश्वर तिवारी ने बताया कि संवाद हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है।
मुरादाबाद : नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने बताया कि संवाद हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। इसे पहले विमर्श कहा जाता था। आज भी कई क्षेत्रों में इसी शब्द का प्रयोग किया जाता है। संस्कृति हमारे संस्कारों का समुच्चय है। जिस तरह से दूध को मथकर मक्खन निकालते हैं, उसी तरह जो संस्कारों के मथने से प्राप्त होता है, उसे संस्कृति कहते हैं। यह व्यापक रूप से क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्वरूप को ग्रहण करती है।
संवादी मंथन और विमर्श का स्वरूप
दैनिक जागरण का संवादी इसी मंथन और विमर्श का स्वरूप है। जिसमें संगीत, साहित्य, विचार प्रक्रिया, वैचारिक पक्षधरता सभी को लेकर जनता के साथ एक संवाद किया जाता है और इस तरह जनता और संवाद करने की कला के बीच एक रिश्ता कायम होता है। जो कालांतर में समाज के हित चिंतन में काम आती है। पिछले साल संवादी में शामिल होना मेरे लिए नया अनुभव था। भाग दौड़ भरी इस जिंदगी में अपने भीतर झांकने जैसा कुछ पल निकालने जैसा था। संवादी में अवध की संस्कृति, भोजपुरी संस्कृति, क्षेत्रीय संस्कृतियों के साथ ही विभिन्न पक्षों से एक अलग तरह का साक्षात्कार होता है। ये सबसे बड़ी बात है।
राय देने की होती है आजादी
आज के दौर में बहुत कम ऐसे अवसर आते हैं, जहां एक मंच पर इतना सब कुछ देखने और समझने को मिल जाता है। सभी को अपने विचारों को व्यक्त करने और राय देने की आजादी होती है। मौजूदा समय में साहित्य क्षेत्र, उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत, लोक संगीत से लोगों का संवाद क्षीण होता जा रहा है। ऐसे में संवादी को देखकर ऐसा लगा जैसे उसे फिर से स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। विशेष रूप से जो साहित्य के क्षेत्र में नई हलचल, युवा रचनाकारों के किए जा रहे प्रयास से रूबरू होने का अवसर प्राप्त हुआ था।
अलग-अलग क्षेत्रों में आयोजित होने चाहिए कार्यक्रम
मेरे विचार से इस तरह के कार्यक्रम किसी एक केंद्र में सीमिति न होकर अलग-अलग क्षेत्रों में आयोजित होने चाहिए, जिससे बड़ी सरलता से देश की संस्कृति, साहित्य, संगीत, प्रश्नात्मक लेखन आदि से लोगों को जोड़ा जा सकता है। संवादी कार्यक्रम के लिए दैनिक जागरण परिवार को मैं बधाई देता हूं कि उनके माध्यम से इस बेहतर पहल की शुरुआत हुई है। यह हलचल आगे भी होती रहनी चाहिए।