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देवोत्थान एकादशी आज, अब शुरू हो जाएंगे विवाह और अन्य शुभ कार्य

मुरादाबाद : चार माह के बाद देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु शयनमुद्रा से बाहर आएंगे।

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Nov 2018 06:10 AM (IST)Updated: Mon, 19 Nov 2018 06:10 AM (IST)
देवोत्थान एकादशी आज, अब शुरू हो जाएंगे विवाह और अन्य शुभ कार्य
देवोत्थान एकादशी आज, अब शुरू हो जाएंगे विवाह और अन्य शुभ कार्य

मुरादाबाद : चार माह के बाद देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु शयनमुद्रा से बाहर आएंगे। इसके साथ ही सभी देवी, देवता भी जागृत हो जाएंगे और विवाह सहित अन्य शुभ कार्यो का शुभारंभ हो जाएंगे। देव उठनी एकादशी सोमवार को है। इसमें पूजा-पाठ बेहद महत्वपूर्ण है। सोए रहेंगे सहालग इस साल में सहालग सोए ही रहेंगे, वर्ष 2018 में केवल तीन दिन ही शादियों का मुहूर्त है। उनके बाद सीधे फरवरी में सहालग शुरू होंगे। देव उठनी एकादशी के बाद पहला सहालग दस दिसंबर को है। इसके बाद 11 और 13 दिसंबर को विवाह होंगे।

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पं. केदार मुरारी देवोत्थान एकादशी व्रत और पूजा विधि प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन और उनसे जागने का आह्वान किया जाता है। प्रात:काल उठकर व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए। आगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाएं। एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल, मिठाई, बेर, सिंघाड़े, ऋतुफल और गन्ना रखकर, उसे डलिया से ढक दें। रात्रि में घर के बाहर और पूजास्थल पर दीये जलाएं। रात्रि के समय परिवार के सभी सदस्य को भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं का पूजन करें। इसके बाद भगवान को शख, घटा-घड़ियाल आदि बजाकर उठाना चाहिए और ये वाक्य दोहराना चाहिए- उठो देवा, बैठा देवा, आगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास। तुलसी विवाह का आयोजन देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम का विवाह धूमधाम से कराने की प्रथा है। तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं, इसलिए देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना तुलसी की ही सुनते हैं। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान करना। शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपती के कन्या नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें। देव उठनी की पौराणिक कथा पौराणिक मान्यता है कि लक्ष्मी जी के कहने पर भगवान विष्णु ने अपने सोने का समय निर्धारित कर दिया। तब उन्होंने कहा कि अब मैं प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु के चार माह शयन किया करूंगा। उस समय तुमको और देवगणों को अवकाश होगा। मेरी यह अल्प निद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी होगी। इस काल में मेरे जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे और शयन व उत्थान का उत्सव मनाएंगे उनके घर में तुम्हारे साथ निवास करूंगा।


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