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सावधान, न चेते तो कोयल की कूक सुनने को तरसेंगे कान

वसंत का मौसम हो और कोयल की कूक का जिक्र न हो तो शायद बात अधूरी ही होगी। वसंत बीत गया चिंता की बात यह है कि शहर में कोयल की कूक यदा-कदा ही सुनने को मिली।

By Narendra KumarEdited By: Published: Mon, 22 Apr 2019 02:01 AM (IST)Updated: Mon, 22 Apr 2019 05:15 PM (IST)
सावधान, न चेते तो कोयल की कूक सुनने को तरसेंगे कान
सावधान, न चेते तो कोयल की कूक सुनने को तरसेंगे कान

मुरादाबाद (अनुज मिश्र)। वसंत का मौसम हो और कोयल की कूक का जिक्र न हो, तो शायद बात अधूरी ही होगी। वसंत बीत गया, चिंता की बात यह है कि शहर में कोयल की कूक यदा-कदा ही सुनने को मिली। पक्षियों की कई जातियों की संख्या लगातार घट रही हैं। इसमें कोयल का नाम भी शामिल है। यह कह रही है इंटरनेशनल यूनियन फॉर कनवरसेशन आफ नेचर (आइयूसीएन) की रेड बुक रिपोर्ट। ऐसे में सचेत होने की जरूरत है, नहीं तो आने वाले समय में कोयल की कूक सुनने के लिए भी कान तरसेंगे।

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पर्यावरण संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल को मनाया जाता है। अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने 1970 में पर्यावरण शिक्षा के रूप में इसकी शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना है। जानकार कहते है कि पक्षियों की घटती संख्या ही पर्यावरणीय संतुलन बिगडऩे का सबसे बड़ा कारण है।

जानवरों को दिए जा रहे इंजेक्शन

जानवरों को दिए जा रहे डायक्लोफेमिक इंजेक्शन से जानवरों को भले ही लाभ मिल जा रहा हो लेकिन पक्षियों के लिए यह घातक है। जब जानवर की मृत्यु होती है तब उसमें इंजेक्शन का अंश रहता है। मरे जानवरों को जब पक्षी खाते हैं तो इसका अंश उनमें भी पहुंचता है। इससे उनकी भी मौत हो जाती है। पक्षियों के लिए यह जहर है। यही कारण है कि मरे जानवरों को खाने वाले पक्षी चील, गिद्ध और कौए की संख्या भी घट रही है।

घट रहा वनक्षेत्र

लगातार वनक्षेत्र घट रहा है। वन विभाग के मुताबिक मुरादाबाद में कोई वन क्षेत्र नहीं है। कंकरीट के बढ़ते जंगलों से पेड़ पौधों की संख्या लगातार घट रही है। ऐसे में अपने आशियाने कीतलाश के लिए पक्षी भटक रहे हैं।

ध्वनि और रेडियोएक्टिव प्रदूषण

शहर में प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है। वायु प्रदूषण के साथ-साथ ध्वनि और रेडियोएक्टिव प्रदूषण भी बढ़ रहा है। मुरादाबाद शहर की बात करें तो केवल बीएसएनएल के ही दो सौ के करीब टावर लगे हैं। ई-कचरा भी सबसे बड़ी समस्या है। इससे पक्षियों की प्रजनन क्षमता कमजोर हो रही है। साथ ही उनके अंडे पतले बन रहे हैं, जिससे वह फूट जाते हैं।

रेड बुक में शामिल हैं यह पक्षी

रेड बुक में प्रदेश का राजकीय पक्षी सारस समेत चील, गिद्ध, कौआ, तीतर, गौरेया शामिल हैं। कोयल का नाम भी इस बुक में दर्ज है।

घने और लंबे पेड़ पर बैठती है कोयल

कोयल सामान्य तौर पर घने और लंबे पेड़ पर बैठती है। इसमें नीम, यूकेलिप्टस और पीपल प्रमुख हैं। कीट और फल कोयल का भोजन है। नर कोयल कूक करता है।

वर्ष 2019 में मुरादाबाद के प्रदूषण पर एक नजर

तारीख एक्यूआइ

13 जनवरी 407

20 जनवरी 410

5 फरवरी 424

2 मार्च 402

नोट : जनवरी से मार्च तक तीन महीनों में 25 दिन शहर का एक्यूआइ तीन सौ से ऊपर और चार सौ के करीब दर्ज किया गया। जबकि 50 एक्यूआइ सामान्य स्थिति है। यह आंकड़े केंद्रीय प्रदूषण नियत्रंण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक हैं।

हवा की गुणवत्ता का यह है पैमाना

0-50 अच्छा

51-100 संतोषजनक

101-200 औसत

201-300 खराब

301-400 बहुत खराब

401-450 गंभीर

451-500 खतरनाक

बढ़ते प्रदूषण की वजह से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है। इससे पक्षियों का व्यवहार प्रभावित हो रहा है। साथ ही उनकी प्रजनन क्षमता प्रभावित हो रही है। इसके चलते कई पक्षियों की संख्या घट रही है।

- डॉ. अनामिका त्रिपाठी, ङ्क्षहदू कॉलेज, प्रोजेक्ट कोआर्डिनेटर, नेशनल एअर मॉनीटिङ्क्षरग प्रोग्राम

जानवरों को दिए जा रहे इंजेक्शन से पक्षी प्रभावित हो रहे हैं। मरे जानवरों को चील, गिद्ध और कौए खाते हैं, इससे उनकी मौत हो रही है। एक पूरी चेन होने के चलते इससे सभी पक्षी प्रभावित हो रहे हैं।

-निकेत मिश्रा, पक्षी विशेषज्ञ


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