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आइए रामगंगा को स्वच्छ बनाने में निभाएं जिम्मेदारी

दसवां घाट पर रामगंगा नदी में इस तरह पसरी है गंदगी।

By Narendra KumarEdited By: Published: Sun, 26 May 2019 10:19 AM (IST)Updated: Sun, 26 May 2019 10:19 AM (IST)
आइए रामगंगा को स्वच्छ बनाने में निभाएं जिम्मेदारी
आइए रामगंगा को स्वच्छ बनाने में निभाएं जिम्मेदारी

तरुण पाराशर, मुरादाबाद : पीतलनगरी की चमक के पीछे छिपी कालिख ने नदी के पानी को जहरीला बनाकर उसका पारिस्थितिकी तंत्र बिगाड़ दिया है। रामगंगा के पानी में आक्सीजन की मात्रा मानक से कम हो चुकी है। प्रकृति का वरदान ही है कि मुरादाबाद नदी के किनारे बसा है। यहां के लोगों को जल संकट का सामना नहीं करना पड़ता। प्रदेश के कई जिले ऐसे भी हैं जहां हर साल लोग जल संकट की मार झेलते हैं। देश और दुनिया में जल संरक्षण के साथ ही नदियों को पुनर्जीवन देने की आवाज उठ रही है तो ऐसे में दैनिक जागरण भी अपने सामाजिक सरोकार का निवर्हन करते हुए जीवनदायिनी रामगंगा, बूंद-बूंद संवारेगा मुरादाबाद अभियान शुरू करने जा रहा है। हम सभी रामगंगा संरक्षण के लिए आगे आएं और उसे कल-कल बहती धारा वाला स्वरूप प्रदान कर मिसाल पेश करें।

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अतिक्रमण ने बिगाड़ा नदी का स्वरूप

महानगर के कई मुहल्ले नदी के किनारे बसे हुए हैं। समय के साथ जनसंख्या विस्तार हुआ तो लोगों ने नदी किनारों पर कब्जा करना शुरू कर दिया। स्थिति यह है कि नदी सिकुड़ गई है।

गंदे नाले और ई-कचरा ने बनाया जहरीला

रामगंगा को प्रदूषित करने में शहर भर की नालियों और नालों का गिरने वाला पानी है। महानगर के इस गंदे पानी लेकर अलग-अलग जगहों पर 13 बड़े नाले नदी में समाहित हो जाते हैं। इनसे प्रति लाखों लीटर गंदा पानी गिरता है। दूसरी ओर ई-कचरा जलाने के बाद उसकी राख नदी किनारों पर फेंक दी जाती है। पिछले दिनों एनजीटी के आदेश पर हजारों टन राख नगर निगम और एमडीए ने मिलकर हटवाई है। दूसरा ई-कचरा जलाने के बाद राख को नदी किनारे ले जाकर उसमें कीमती धातुएं निकालने के लिए नदी किनारे जाकर धोते हैं, जिससे घातक रासायनिक पदार्थों के अपशिष्ट नदी के पानी मिलकर उसे विषैला बनाते हैं। इसके अलावा नदी के आसपास के पशु पालने वाले भी गोबर और कूड़ा नदी में फेंकते हैं। इस सब पर रोक लगनी चाहिए।

धातु कण ने भी पहुंचाया नुकसान

मुरादाबाद पीतलनगरी के नाम से विश्वविख्यात है। महानगर में होने वाले धातु कर्म के कारण विभिन्न धातुओं के महीन कण पानी के माध्यम से नदी में पहुंचते हैं। इसका दुष्प्रभाव महानगर के लोगों के स्वास्थ्य पर सीधा पड़ता है। पर्यावरणविदों की शोध में रामगंगा के किनारों पर लैड और आर्सेनिक जैसे विषैली धातु मिली हैं।

एसटीपी बना पर नहीं मिला लाभ 

नगर निगम ने गुलाबबाड़ी में 158 एमएलडी शोधन क्षमता वाला सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाया है, जो बनने के बाद कई साल बाद शुरू हुआ। अभी वह एक चौथाई क्षमता पर ही चल रहा है। इसके चलते नालों का पानी नदी में गिरना बदस्तूर जारी है।

आज होगी श्रमदान संकल्प सभा

हम सभी नदी के प्रदूषित होने से बचा सकते हैं। इसके लिए सभी को जिम्मेदारी उठानी होगी। हम सब मिलकर शपथ लें कि रामगंगा संरक्षण में पूर्ण रूप से सहयोग करेंगे। इसके लिए रविवार शाम पांच बजे से सैनी धर्मशाला नवाबपुरा में श्रमदान संकल्प सभा का आयोजन किया जा रहा है। महानगर के नागरिक अपनी जिम्मेदारी समझते हुए इसमें शामिल होकर रामगंगा स्वच्छ रखने में सहयोग की शपथ लेंगे।

यह उठाएं जिम्मेदारी

-रामगंगा में न कूड़ा फेंकेंगे और न ही किसी को डालने देंगे।

- नदी के घाटों पर स्वच्छता में सहयोग करेंगे।

चार मिलीग्राम प्रति लीटर कम हो चुकी ऑक्सीजन

रामगंगा पर शोध कर चुके ङ्क्षहदू कालेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. जेके पाठक ने बताया कि रामगंगा के पानी में लेड, कैडमियम, क्रोमियम, निकिल और आयरन जैसी धातुओं के तत्व पाए जाते हैं। यह खतरनाक स्तर पर पहुंच चुके हैं। नदी के  जल में ऑक्सीजन की मात्र चार मिलीग्राम प्रति लीटर से कम हो चुकी है। जबकि यह चार से अधिक होनी चाहिए।

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