साहब की कृपा से चार्ज पर हैं इंस्पेक्टर साहब, खेल में हैं माहिर Moradabad News
पुलिस अफसर इस मामले पर खुल कर कुछ भी कहने से कतरा रहे हैं। तू डाल डाल और मैं पात पात का खेल अभी जारी है। अंत इसका रोचक और दिलचस्प होगा ही।
मुरादाबाद (श्रीश चंद्र मिश्र राजन)। कटघर थाने के इंस्पेक्टर साहब अभी साहब की कृपा से चार्ज पर हैं। उनके क्षेत्र में डकैती पड़ी थी। सिपाही डकैतों को पीठ दिखा कर भाग निकले थी। इसका वीडियो वायरल हुआ। सुर्खी बना, इसके बावजूद डकैती को चोरी का रूप दे दिया। इतना ही नहीं 36 घंटे तक जीडी पर कुंडली मार कर बैठे रहे। भला हो कप्तान साहब का, जिन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया और पूरे मामले में मातहतों के खेल को भांप लिया। उन्होंने कार्रवाई करते हुए चौकी प्रभारी समेत दो पुलिस कर्मियों को लाइन हाजिर कर दिया। अंगद के पांव बने इंस्पेक्टर साहब उन लोगों की आंख की किरकिरी बने हुए हैं, जिनकी जेब में वह शासनादेश है, जिसके तहत डाका प्रभावित क्षेत्र के थानेदार को तत्काल प्रभाव से हटाने का आदेश है। हालांकि विभागीय जांच इंस्पेक्टर के खिलाफ चल रही है। अब महकमे में उनके खिलाफ कार्रवाई का इंतजार है।
सिसकती बेटी, तड़पता पिता
महानगर में चौमुखा पुल के समीप रहने वाली 16 वर्षीय मोनी कुपोषण के चंगुल में फंसी है। बीते छह माह से मौत उसके इर्दगिर्द मंडरा रही है। पापा की परी अभी जीना चाहती है। जीवन की पथरीली राह में पापा और बड़े भाई के साथ चलना चाहती है। फिलहाल तो वह चारपाई से उठ भी नहीं पा रही है। कुपोषण उसके पांव की बेड़ी है। इसे तोडऩे में गरीबी बाधा है। पिता की जेब खाली और बड़े भाई की मजदूरी चूल्हे तक सिमट कर रह गई है। वह तो अपनों के आंख के आंसू भी नहीं पोंछ सकती। बर्बाद हो रहे पिता के कुनबे को चुपचाप तिनके की भांति बिखरते देखना उसकी नियति बन गई है। बेटी जीवन से जंग लडऩे को तैयार है। इंतजार कोई मददगार मिले। चेहरा चमकाने वाले और सहारा देने वाले भी अभी तक उन तक नहीं पहुंचे हैं।
मुकदमे और जांच के रेट अलग
बात पांच दिन पुरानी है। एसपी देहात उदय शंकर सिंह अपने कार्यालय में बैठे थे। तभी एक कुनबा उनके सामने हाजिर हुआ। बताया कि बीए में पढऩे वाली उनकी बेटी का फर्जी तरीके से निकाह करा दिया गया। सरकारी योजना का लाभ दिलाने के नाम पर सादे पेपर पर दस्तखत कराए गए। फिर उसी पेपर पर फर्जी निकाहनामा लिखाया गया। दिसंबर में पुलिस ने मुकदमा लिखा। मुकदमा लिखने के लिए 20 हजार रुपये लिए। विवेचना करने के लिए दारोगा को 15 हजार फिर देने पड़े। फिर भी नतीजा सिफर है। वह अभिलेख मुकदमे में अब तक नहीं लगे, जो पीडिता को संबल देंगे। यह सुनते ही साहब तमतमा उठे। मौके पर मौजूद विवेचक से पूछ बैठे कि यह कौन सा खेल हो रहा मेरे भाई। इस पर दारोगा जी पसीना-पसीना हो गए। सिर झुकाए विवेचक निरुत्तर बैठे रहे। उनके पास जवाब ही नहीं था।
तू डाल डाल, मैं पात पात
सरकारी अंगरक्षक को लेकर मुरादाबाद पुलिस और एक आरटीआइ कार्यकर्ता के बीच चूहे और बिल्ली का खेल चल रहा है। चार दिन पहले दो बार दरवाजे पर दस्तक देने वाले अंगरक्षक को आरटीआइ कार्यकर्ता पवन अग्रवाल ने इसलिए बैरंग लौटा दिया कि उसके पास अपनी ही तैनाती की कोई पत्रावली अथवा उच्चाधिकारी का आदेश नहीं था। अंगरक्षक मुहैया कराने वाले आरआइ से जब इस बावत पूछताछ हुई तो उन्होंने दो टूक कहा लिखित आदेश नहीं मिलेगा। अंगरक्षक भी वापस नहीं लौटा। आरटीआइ कार्यकर्ता ने बताया कि अंगरक्षक उसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश और डीजीपी के निर्देश पर मिलना तय हुआ था। स्थानीय प्रशासन की अरुचि के कारण देर हो रही है।