अमरोहा में पहली बार बराती बनकर पहुंचे थे अटल
आसिफ अली, अमरोहा : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का अमरोहा की धरती से पुराना नाता
आसिफ अली, अमरोहा : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का अमरोहा की धरती से पुराना नाता रहा है। पहली बार वह अमरोहा में बाराती बनकर पहुंचे थे। यहां एक रात रुके तथा अगले दिन लौट गए थे। उसके बाद अटल जी छह बार और अमरोहा आए। चुनावी सभाओं को संबोधित किया। उनकी खास बात यह थी कि एक बार जिस से मिल लिए, फिर सालों बाद भी उस व्यक्ति को नाम से पहचान लेते थे।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी अमरोहा की धरती पर एक नहीं बल्कि सात बार आए हैं। सबसे पहले 12 दिसंबर 1960 को वह बराती बनकर अमरोहा पहुंचे थे। मुहल्ला कूंचा खत्रियान निवासी नरेंद्र टंडन ने बताया कि उनकी बहन पुष्पा टंडन की बरात मथुरा से आई थी। अटल विहारी बाजपेयी मेरे जीजा रामभरोसे कपूर के करीबी मित्र थे। उस समय वह आरएसएस के राष्ट्रीय प्रचारक के रूप में काम कर रहे थे। 12 दिसंबर की शाम को बरात बड़ा बाजार स्थित सारस्वत धर्मशाला में ठहरी थी। अटल जी व मेरे जीजा साथ ही रहे थे। अगले दिन 13 दिसंबर को वह बरात के साथ लौटे थे। इससे पहले वह विष्णु स्वरूप टंडन से मिले थे। विष्णु के मित्र रहे जगदीश ने अटल जी के विचार सुनने की इच्छा जताई थी तो मुहल्ला कटरा में संक्षिप्त सभा का आयोजन कर सभी ने उन्हें सुना था। उसके बाद वाजपेयी दोबारा वर्ष 1972 में अमरोहा पहुंचे थे। यहां पर उन्होंने रामलीला मैदान में सभा को संबोधित किया। फिर तो उनका अमरोहा से नाता जुड़ गया। वह सक्रिय राजनीति में रहते हुए चुनावी सभाओं को संबोधित करने के लिए वर्ष 1991, 1996, 1998, 1999 व 2004 में अमरोहा की धरती पर आए थे। इसमें वर्ष 1999 व 2004 में वह प्रधानमंत्री रहते हुए अमरोहा में चुनावी सभा को संबोधित करने पहुंचे थे।
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जब ठहाके मार कर हंसे थे अटल जी
वर्ष 1972 में अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार अमरोहा पहुंचे थे। इस बारे में अनिल टंडन ने बताया कि सभा में आरएसएस के साथ ही संगठन से जुड़े अन्य लोग भी थे। अटल जी ने मंच से संबोधन शुरू किया तो उन्होंने अमरोहा में अपना पहली बार आगमन बताया। तभी सभा में मौजूद जगदीश ने खड़े होकर उन्हें बताया था कि आप पहली बार नहीं बल्कि दूसरी बार अमरोहा में आए हैं। आप लोगों को दावत खाने वाली बात बताना नहीं चाह रहे। इस पर अटल जी मंच पर ही ठहाके मार कर हंसे थे। फिर उन्होंने इस बारे में विस्तार से बताया था।
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गजब की याददाश्त के धनी थे
अटल जी गजब की याद्दाश्त के धनी थे। वह एक बार किसी व्यक्ति से मिल लेते थे तो उसे सालों बाद भी पहचान लेते थे। इस बारे में मुहल्ला कूंचा खत्रियान निवासी विनोदकांत जैन बताते हैं कि अटल जी वर्ष 1972 में सम्भल आए थे। तब मेरी उनसे चंद मिनट की भेंट हुई थी। एक साल बाद वर्ष 1973 में अपने निजी काम से मैं दिल्ली गया और अटल जी से भेंट करने की इच्छा जताई थी। जब उनसे मिला तो अटल जी ने मेरा नाम लेकर मुझे पहचान लिया। यहां तक बता दिया था कि हमारी भेंट कहां हुई थी।