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वन विभाग के गले की फांस बने 12 लाख रुपये

डियर पार्क के जीर्णोद्धार में मुरादाबाद ने जो मोटी रकम डियर पार्क समिति ।

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 May 2020 03:53 AM (IST)Updated: Sat, 23 May 2020 06:04 AM (IST)
वन विभाग के गले की फांस बने 12 लाख रुपये
वन विभाग के गले की फांस बने 12 लाख रुपये

मुरादाबाद, जेएनएन। डियर पार्क के जीर्णोद्धार में मुरादाबाद ने जो मोटी रकम डियर पार्क समिति को सौंपी थी, उसमें से 12 लाख रुपये की वर्षों बाद भी कोई जानकारी नहीं है। रकम खर्चने को लेकर वन विभाग ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक अमला भी मौन है। रुपये की निगरानी व जवाबदेही का ठीकरा जिम्मेदार एक दूसरे के सिर फोड़ रहे हैं।

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बात वर्ष 1990-93 के काल खंड की है। तब मुरादाबाद के डीएम संजीव कुमार थे। वाइल्ड लाइफ में गहरी रुचि से डीएम को शहर के समीप डियर पार्क स्थापित करने की प्रेरणा मिली। जिलाधिकारी के प्रयासों का प्रतिफल रहा कि डियर पार्क में घडि़याल, हिरन, बत्तख आदि रखे गए। योजनाबद्ध तरीके से आम लोगों के लिए डियर पार्क खोला गया। रेस्टोरेंट के अलावा दर्शकों के लिए वाहन स्टैंड आदि की व्यवस्था की गई। इसके पूर्व ही डियर पार्क के सफल संचालन के लिए डीएम ने 12 सदस्यीय टीम का गठन किया। इसमें प्रशासनिक अफसरों व वन विभाग के अलावा बसंतपुर रामराय गांव के प्रधान और अन्य ग्रामीण भी शामिल थे। समिति पर ही पार्क संचालन का दायित्व था। ऐसे में आय व्यय का लेखा जोखा समिति के ही पास था। डीएम समिति के अध्यक्ष थे। डियर पार्क करीब सात साल तक अपनी पूरी रंगत में रहा। इसके बाद पार्क पर वक्त की नजर लग गई। तब तक जिलाधिकारी का भी तबादला हो चुका था। सन 2000 में पार्क आम लोगों के लिए बंद कर दिया गया। भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के उत्तर प्रदेश प्रभारी जय प्रकाश सक्सेना का दावा है कि जिस समय डियर पार्क आम लोगों के लिए बंद हुआ, तब डियर पार्क समिति के खाते में 12 लाख रुपये जमा थे। इस रकम का पता वर्षों बाद भी नहीं चला। प्रशासनिक अफसर व वन विभाग रुपये की निगरानी का जवाबदेह और जिम्मेदार एक दूसरे को बता रहा है। इस बावत डीएफओ कन्हैया पटेल बताते हैं कि पूरा प्रोजेक्ट प्रशासन का था। समिति में तत्कालीन ट्रेजरी अफसर तक शामिल थे। समिति का रुपया कहां है, यह जवाब जिला प्रशासन ही दे सकता है।


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