आदिवासी अधिकारों की मुखर आवाज बनीं जीरा
जनपद के पटेहरा ब्लाक रेक्सा खुर्द गांव की रहने वाली जीरा भारती आदिवासियों के समानता के अधिकार की लड़ाई लड़ रही हैं। उन्होंने वनाधिकार कानून को लेकर जिले में बड़ा आंदोलन चलाया और वर्तमान में भी वे जंगलों में रहने वाले आदिवासी समुदाय की बेहतरी के लिए जी-जान से जुटी हैं। बीते वर्ष हलिया क्षेत्र में वन भूमि से उजाड़े गए 450 गरीबों के घरों की लड़ाई को आज तक जारी रखा है और अब वे आदिवासियों की मुखर आवाज बन चुकी हैं।
मनोज द्विवेदी, मीरजापुर :
जनपद के पटेहरा ब्लाक रेक्सा खुर्द गांव की रहने वाली जीरा भारती आदिवासियों के समानता के अधिकार की लड़ाई लड़ रही हैं। उन्होंने वनाधिकार कानून को लेकर जिले में बड़ा आंदोलन चलाया और वर्तमान में भी वे जंगलों में रहने वाले आदिवासी समुदाय की बेहतरी के लिए जी-जान से जुटी हैं। बीते वर्ष हलिया क्षेत्र में वन भूमि से उजाड़े गए 450 गरीबों के घरों की लड़ाई को आज तक जारी रखा है और अब वे आदिवासियों की मुखर आवाज बन चुकी हैं।
जीरा भारती मानती हैं कि गरीब, किसान, मजदूरों को जितना हक संविधान में दिया गया है, उतना उन्हें हासिल नहीं हो पाता। सरकारें योजनाएं तो बनाती हैं लेकिन उनका क्रियान्वयन ठीक से नहीं होता और योजनाओं की कमाई सिर्फ अधिकारियों व नेताओं की जेब में जाती हैं। जीरा बताती हैं कि उन्होंने युवावस्था से गरीबों की लड़ाई लड़ने का मन बना लिया था जिसे वे जारी रखे हुए हैं। वे जंगल, पहाड़, नदियों को पार कर उन गांवों तक पहुंचती हैं जहां अभी प्रशासन की पहुंच नहीं बन पाई है। मड़िहान, हलिया लालगंज जैसे जंगली क्षेत्र में जीरा को आम लोगों की आवाज माना जाता है। आदिवासियों की समानता के लिए उनका यह अभियान काफी सफल भी रहा। जीरा भारती ने बताया कि वे गांव की महिलाओं को जागृत करने के लिए गांव-गांव जाती हैं क्योंकि जिस परिवार की महिलाएं जागरूक हैं, वहां सभी लोगों को इसका लाभ मिलता है। गरीबों की लड़ाई के लिए नहीं की परवाह
पिछले वर्ष की ही बात है हलिया क्षेत्र में जंगलों में रहने वालों ने झोपड़ियों का अपना आशियाना बना लिया जो प्रशासन की नजर में अखर रहा था जबकि पूरे जिले में वन माफिया, भू माफिया, खनन माफिया ने हजारों एकड़ जमीन पर कब्जा जमाया है। वन विभाग ने जब आदिवासियों के घर ढहाए तब जीरा भारती ने आवाज बुलंद की और वन विभाग को घुटनों के बल ला दिया। आज भी जब कोई सरकारी विभाग गरीबों, आदिवासियों को परेशान करता है तो जीरा उनकी मदद के लिए पहुंच जाती हैं। नहीं किसी का डर, परिवार का साथ
जीरा बताती हैं कि इंसान की ¨जदगी एक बार मिली है और छीनने का हक उपरवाले पर है, इसलिए वे किसी से नहीं डरतीं। उनके जुझारुपन से कई बार उन्हें व परिवार को मुसीबतों का भी सामना करना पड़ता है लेकिन परिवार उनके साथ हर वक्त कंधे से कंधा मिलाकर डटा रहता है। जीरा भारती कहती हैं कि परिवार ही उनका संबल है और अपनी आखिरी सांस तक आदिवासियों को समानता का हक दिलाने के लिए लड़ाई लड़ती रहेंगी।