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भक्ति के उल्लास में सराबोर नजर आया विध्यधाम

जागरण संवाददाता विध्याचल (मीरजापुर) शारदीय नवरात्र के छठवें दिन गुरुवार को विध्यवासिनी ध

By JagranEdited By: Published: Thu, 22 Oct 2020 06:21 PM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2020 02:05 AM (IST)
भक्ति के उल्लास में सराबोर नजर आया विध्यधाम
भक्ति के उल्लास में सराबोर नजर आया विध्यधाम

जागरण संवाददाता, विध्याचल (मीरजापुर) : शारदीय नवरात्र के छठवें दिन गुरुवार को विध्यवासिनी धाम भक्ति उल्लास में सराबोर नजर आया तो वहीं गंगा घाटों पर आस्था का अद्भुत रंग दिखाई दिया। देश के विभिन्न प्रांतों से आए श्रद्धालुओं ने मां विध्यवासिनी के कात्यायनी स्वरूप का दर्शन-पूजन किया। वहीं कालीखोह व अष्टभुजा माता का दर्शन कर त्रिकोण परिक्रमा की।

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मंगला आरती के बाद से मंदिर पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। मां विध्यवासिनी के जयकारे से वातावरण गुंजायमान होता रहा। मां का तरह-तरह के पुष्पों व आभूषणों से श्रृंगार किया गया था। मंदिर पहुंचने के बाद किसी ने गर्भगृह में जाकर तो किसी ने झांकी से मां का दर्शन कर सुख-समृद्धि की कामना की। मंदिर की छत पर जहां पाठ चल रहा है, वहीं विध्य क्षेत्र के जगह-जगह बैठकर लोग साधना कर रहे हैं। मां विध्यवासिनी देवी का दर्शन-पूजन करने के बाद भक्तों ने अष्टभुजा पहाड़ पर त्रिकोण परिक्रमा कर पुण्य के भागी बने। सुरक्षा-व्यवस्था के मद्देनजर पुलिस और पीएसी के जवान मुस्तैद रहे। श्रीविध्य पंडा समाज के पदाधिकारी भी भक्तों की सेवा में तल्लीन रहे। देव दीपावली मनाने की तैयारी शुरू

देवों की दीपावली यानी देवदीपावली मनाने के लिए विध्य क्षेत्र अभी से तैयार है। विध्यधाम के गंगा तट पर अलौकिक छटा का अद्भुत नजारा अभी से दिखने लगा है। अब सभी को इंतजार है कार्तिक पूर्णिमा की शाम सूर्य के डूबने और चांद के निकलने का। घाटों पर दीपों की ऐसी रोशनी जगमगाती है, मानों पृथ्वी पर स्वर्ग उतर आया हो। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवताओं की विनती पर भगवान शिव ने तीनों लोक में आतंक का पर्याय बने त्रिपुरासुर का वध किया था। भगवान शिव के इस कृत्य से उपकृत देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीपोत्सव मनाया था। तब से कार्तिक पूर्णिमा को देवदीवाली मनाने की प्रथा लोक चलन में आई। पूर्णिमा पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है। अष्टभुजा पहाड़ी पर श्रद्धालु से अधिक दिखे बंदर

विध्याचल के अष्टभुजा पहाड़ी पर नवरात्र के छठवें दिन भक्तों से अधिक बंदर देखने को मिले। जहां इक्का-दुक्का भक्त दिखे तो कुछ खाने-पीने के इरादे से उसके पीछे कई बंदर लग जाते थे। वहीं दुकानदार भी श्रद्धालुओं की भीड़ कम होने की वजह से जिस श्रद्धालु को देखते उसे बुलाने लग जाते थे।


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