देश में तंबाकू से हर रोज तीन हजार लोग तोड़ देते हैं दम
बीड़ी-सिगरेट व अन्य तंबाकू उत्पादों का सेवन करने वाले लोग न केवल अपने जीवन से खिलवाड़ करते हैं बल्कि घर-परिवार की जमा पूंजी को भी इलाज पर फूंक देते हैं। इस पर काबू पाने के लिए सरकार और स्वास्थ्य महकमें के साथ ही विभिन्न संस्थाएं भी लोगों को जागरूक
जागरण संवाददाता, मीरजापुर : बीड़ी-सिगरेट व अन्य तंबाकू उत्पादों का सेवन करने वाले लोग न केवल अपने जीवन से खिलवाड़ करते हैं बल्कि घर-परिवार की जमा पूंजी को भी इलाज पर फूंक देते हैं। इस पर काबू पाने के लिए सरकार और स्वास्थ्य महकमें के साथ ही विभिन्न संस्थाएं भी लोगों को जागरूक करने में जुटी हैं। यह समस्या केवल भारत की नहीं बल्कि पूरे विश्व की समस्या बन चुकी है। इसी को ध्यान में रखते हुए हर साल 31 मई को विश्व तम्बाकू निषेध दिवस मनाया जाता है, जिसके जरिये लोगों को तम्बाकू के खतरों के प्रति सचेत किया जाता है।
इस बार कोरोना के संक्रमण को देखते हुए जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन संभव नहीं है, इसलिए सोशल मीडिया, फेसबुक लाइव, रेडियो/वीडियो प्रसारण व विज्ञापनों के जरिये धूम्रपान के खतरों के बारे में लोगों को जागरूक किया जाना है। इस बार कार्यक्रम की थीम युवाओं पर आधारित है- “प्रोटेक्टिग यूथ फ्रॉम इंडस्ट्री मैनिपुलेशन एंड प्रिवेंटिग देम फ्रॉम टोबैको एंड निकोटिन यूज, स्टेट टोबैको कंट्रोल सेल के सदस्य व किग जार्ज चिकित्सा विश्विद्यालय के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत का कहना है कि बीड़ी-सिगरेट व अन्य तंबाकू उत्पादों के सेवन से आज हमारे देश में हर साल करीब 12 लाख लोग यानि करीब तीन हजार लोग हर रोज दम तोड़ देते हैं। सरकार और स्वास्थ्य विभाग द्वारा इन आंकड़ों को कम करने का हरसंभव प्रयास किया जा रहा है ।एसीएमओ डा. नीलेश श्रीवास्तव ने इन्हीं विस्फोटक स्थितियों को देखते हुए सार्वजनिक स्थलों और स्कूलों के आस-पास बीड़ी-सिगरेट व अन्य तम्बाकू उत्पादों की बिक्री पर रोक के लिए केंद्र सरकार सन 2003 में सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम (कोटपा) ले आई है, जिस पर सख्ती से अमल की जरूरत है, तभी स्थिति में सुधार देखने को मिल सकता है। इनसेट
धूम्रपान करने या अन्य किसी भी रूप में तंबाकू का सेवन करने वालों को करीब 40 तरह के कैंसर और 25 अन्य गंभीर बीमारियों की चपेट में आने की पूरी संभावना रहती है। इसमें मुंह व गले का कैंसर प्रमुख हैं। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर पड़ जाती है, जिससे संक्रामक बीमारियों की चपेट में भी आने की पूरी सम्भावना रहती है। यही नहीं धूम्रपान करने वालों के फेफड़ों तक तो करीब 30 फीसद ही धुँआ पहुँचता है बाकी बाहर निकलने वाला करीब 70 फीसद धुँआ उन लोगों को प्रभावित करता है जो कि धूम्रपान नहीं करते हैं । यह धुँआ (सेकंड स्मोकिग) सेहत के लिए और खतरनाक होता है ।