राम मंदिर के गुलाबी पत्थरों पर दिखेगी मीरजापुर की प्रस्तर कला
यह सुखद संयोग है कि राम मंदिर के ऐतिहासिक निर्णय के बाद भव्य मंदिर निर्माण में मीरजापुर की प्रस्तर कला की बारीकियां भी दिखेंगी। मीरजापुर के कारीगरों की बारीक नक्काशी व महीन जालियों की कारीगरी राम मंदिर की प्राचीरों पर परिलक्षित होगी। प्रस्तर कला में निपुण जिले के करीब सवा सौ कारीगरों ने बीते 2
मनोज द्विवेदी, मीरजापुर :
यह सुखद संयोग है कि राम मंदिर के ऐतिहासिक निर्णय के बाद भव्य मंदिर निर्माण में मीरजापुर की प्रस्तर कला की बारीकियां भी दिखेंगी। मीरजापुर के कारीगरों की बारीक नक्काशी व महीन जालियों की कारीगरी राम मंदिर की प्राचीरों पर परिलक्षित होगी। प्रस्तर कला में निपुण जिले के करीब सवा सौ कारीगरों ने बीते 28 वर्षों के दौरान इस काम को अंजाम दिया है। इस संकल्प लक्ष्य में मीरजापुर सहित अलावा आगरा, राजस्थान, गुजरात प्रांत से आए कारीगरों ने भी अपनी अछ्वुत कला की आहुति दी है।
1990 में राम मंदिर आंदोलन चरम पर रहा और उस समय 250 कारीगरों को विशेष रुप मंदिर निर्माण में लगने वाले पत्थरों को तराशने के लिए बुलाया गया। इनमें आगरा सहित गुजरात, राजस्थान के कारीगर शामिल रहे लेकिन सबसे ज्यादा संख्या मीरजापुर के प्रस्तर कला विशेषज्ञों की रही जिनकी संख्या 125 थी। बाद के वर्षों में जैसे-जैसे काम पूरा होता गया, कारीगर वापस लौटते गए। 1992 में मंदिर आंदोलन के दौरान वे राम जन्मभूमि थाने के प्रभारी रहे कछवां थानाक्षेत्र के दुनाई गांव निवासी प्रियंबदा नाथ शुक्ल बताते हैं कि उस दौरान जनपद के कई कारीगरों से मुलाकात हुई थी। वे बताते हैं कि आज भी उस समय के हालात चलचित्र की भांति घूम जाते हैं। इन्हीं कारीगरों में एक पड़री निवासी अमरनाथ ने बताया कि हमें विशेष रूप से वहां बुलाया गया था और करीब दस वर्षों तक वे नक्काशी का काम करते रहे। बाद में कुछ कारीगर वापस लौट आए। दर्जनों कारीगर ऐसे रहे जो बीच-बीच में अयोध्या जाकर पत्थरों की नक्काशी करते थे। अमरनाथ ने बताया कि गुलाबी पत्थरों की जालियां ज्यादातर जिले के कारीगरों ने ही बनाई हैं। बेजोड़ है मीरजापुर की प्रस्तर कला
जिले का चुनार क्षेत्र ऐतिहासिकता के साथ प्रस्तरकला (गुलाबी पत्थरों की कारीगरी) के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। इस बारीक कारीगरी ने पूरी दुनिया में धाक जमाई है। अब राम मंदिर की प्राचीरों पर भी यह कारीगरी दिखेगी। प्राचीन समय में गुलाबी पत्थरों की बनी जालियां राजाओं के राजमहल की शान हुआ करती थी। मुगल काल से लेकर अंग्रेजी शासनकाल तक जिले की यह कला दमकती रही और आज भी देश की कई ऐतिहासिक इमारतों में यह कारीगरी दिख जाएगी।
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