आजादी की जंग में जमालपुर के लाल ने दी ¨जदगी की कुर्बानी
महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे स्वतंत्रता आंदोलन से ग्रामीण क्षेत्र का युवा वर्ग तेजी के साथ जुड़ रहा था। शहरी क्षेत्रों के साथ ही साथ ग्रामीण क्षेत्रों मे भी अंग्रेजों की घेराबंदी शुरू हो गई थी। आजादी की इस जंग में जब जमालपुर का नाम आता है तो उसमें भदावल गांव निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चौधरी बृजनाथ ¨सह का नाम बड़े सम्मान एवं आदर के साथ लिया जाता है।
जागरण संवाददाता, जमालपुर (मीरजापुर) : महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे स्वतंत्रता आंदोलन से ग्रामीण क्षेत्र का युवा वर्ग तेजी के साथ जुड़ रहा था। शहरी क्षेत्रों के साथ ही साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी अंग्रेजों की घेराबंदी शुरू हो गई थी। आजादी की इस जंग में जब जमालपुर का नाम आता है तो उसमें भदावल गांव निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चौधरी बृजनाथ ¨सह का नाम बड़े सम्मान एवं आदर के साथ लिया जाता है।
चौधरी बृजनाथ ¨सह का जन्म भदावल गांव के जमींदार परिवार मे बाबू चौधरी गया ¨सह एवं श्रीमती कौशिल्या देवी के घर में 1904 में हुआ था। दो भाइयों के बीच इकलौती संतान होने के बाद भी गांधी जी के आंदोलनों से प्रेरित होकर देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने के लिए नमक आंदोलन 1930 के समय 26 वर्ष की आयु में स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई में कूद पड़े। उन्होंने तत्कालीन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ मिलकर आंदोलन को गति देने का कार्य किया। सत्याग्राहियों के बीच चौधरी जी के नाम से मशहूर रहे। अपनी काबिलियत एवं योग्यता के कारण संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। 1941 में पिडखीर गांव में व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने पर तीन माह की कारावास एवं 50 रूपए के जुर्माने की सजा सुनाई गई।
1942 में भारत छोड़ों आंदोलन के समय अंग्रेजों ने चौधरी जी को छह माह के लिए नजरबंद कर दिया। अंग्रेजों द्वारा दिए गए कठोर यातनाओं का इनके उपर असर नहीं पड़ा। बार-बार जेल जाने के बाद भी इनके उत्साह में कमी नहीं आई बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई में कई युवाओं को प्रेरित कर जोड़ दिया। गांव-गिरांव में स्वतंत्रता आंदोलन की अलख बड़े लगन एवं हौसले के साथ जगाई। स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी सक्रियता के कारण अंग्रेजी हुकूमत के लिए हमेशा मुसीबतें खड़ी करते रहे।