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पापा कउनौ बात नाही, हम सबै पैदले धीरे-धीरे चल चलल जाई..

मजबूरी और पेट की आग लोगों से कुछ भी करवा दे कम ही है। कमोबेश ऐसा ही ²श्य बुधवार की दोपहर तकरीबन 12 बजे राष्ट्रीय राजमार्ग पर दिखा। जब चिलचिलाती धूप में हाथों में सामान लिए दो छोटे-छोटे बच्चों व अपनी पत्नी के साथ एक युवक पैदल ही चुनार से करीब साठ किलोमीटर दूर मीरजापुर के जिगना गांव के लिए चल पड़ा।

By JagranEdited By: Published: Fri, 27 Mar 2020 06:14 PM (IST)Updated: Fri, 27 Mar 2020 08:51 PM (IST)
पापा कउनौ बात नाही, हम सबै पैदले धीरे-धीरे चल चलल जाई..
पापा कउनौ बात नाही, हम सबै पैदले धीरे-धीरे चल चलल जाई..

गुरुप्रीत सिंह शम्मी, चुनार (मीरजापुर)

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मजबूरी और पेट की आग लोगों से कुछ भी करवा दे तो कम ही है। कमोबेश ऐसा ही दृश्य बुधवार की दोपहर तकरीबन 12 बजे राष्ट्रीय राजमार्ग पर दिखा। जब चिलचिलाती धूप में हाथों में सामान लिए दो छोटे -छोटे बच्चों व पत्नी के साथ एक युवक पैदल ही चुनार से करीब साठ किलोमीटर दूर मीरजापुर के जिगना गांव के लिए चल पड़ा। वहीं दूसरी ओर बच्चे भी मां-बाप का हौसला बढ़ाते हुए कह रहे थे कि पापा कउनौ बात नाहीं, हम सबै पैदले धीरे-धीरे चल चलल जाई..।

युवक से जब पूछा कि पहले ही घर क्यों नहीं चले गए तो उसने बताया कि कल रात में लॉकडाउन की घोषणा के साथ ही आने वाले कुछ दिनों के लिए रोजगार खत्म होने के बाद घर वापस जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। यहां पर कोई भी अपना नहीं है जिसके सहारे 21 दिन काटे जाएं। उनके पास न ही कुछ खाने को है और न ही आगे की जिदगी काटने के लिए एक धेला। घर पहुंच जाएंगे तो जैसे -तैसे कुछ जुगाड़ तो परिवार वालों के साथ हो ही जाएगा।

दो नन्हे बच्चे हाथ में पानी की बोतल लेकर गला तर करते हुए खड़ी दोपहरी में छोटे-छोटे कदमों से आगे बढ़ते जा रहे हैं। इसे देखकर हर कोई दांतों तले अंगुली दबा ले रहा था। मीरजापुर जनपद के जिगना गांव निवासी सुखदेव चुनार सीमेंट फैक्ट्री में श्रमिक के तौर पर अपनी सेवाएं देते हैं। कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बाद लॉकडाउन की घोषणा हुई तो साथियों ने उन्हें बताया कि अब यहां पर 14 अप्रैल तक प्लांट की बंदी है। हाईवे पर बच्चों व पत्नी के साथ पैदल ही घर जाने के सवाल पर आंखों में बेबसी के आंसू लिए उन्होंने कहा कि उनके पास और कोई विकल्प नहीं है। हां रास्ते में कोई ट्रक या टैंकर से लिफ्ट मिल जाएगी तो शायद उन्हें पहुंचने में आसानी होगी। बच्चों के लिए उसने झोले में बिस्कुट व कुछ खाने-पीने की सामग्री रखी हुई थी। साथ ही हाथों में पानी की बोतल। अब इसी आसरे सुखदेव बीवी व दो बच्चों के साथ अपने गांव की ओर कदम बढ़ाते चल पड़ा है। उन्हें उम्मीद है कि वे लोग चंद दिनों में कम से कम अपने घर तो जरूर पहुंच जाएंगे। इसके बाद उन लोगों को कम से कम दाना-पानी तो नसीब हो जाएगा।


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