हे मां विध्यवासिनी! घर-गांव में सभी की खुशहाली बनी रहे
चिड़ियों की चहचहाहट से भोर में ही नागरिक की आंखें खुलीं तो पुरवइया हवा की ताजगी ने उसके तन-मन को झंकृत कर दिया। सबसे पहले वह जागरण के पन्ने पलट देश-दुनिया की खबरों से रूबरू हुआ और फिर मार्निंग वॉक पर निकल गया। सिविल लाइन से रमईपट्टी व फतहां होते हुए आगे विसुंदरपुर की ओर बढ़ गया। वहां गांव की पुलिया पर बैठा पुरवइया हवा का आनंद लेता संजय पाल मिलते ही यह कहने से नहीं चूकता कि महानगरों में अपनापन नहीं है।
चिड़ियों की चहचहाहट से भोर में ही नागरिक की आंखें खुलीं तो पुरवइया हवा की ताजगी ने उसके तन-मन को झंकृत कर दिया। सबसे पहले वह 'जागरण' के पन्ने पलट देश-दुनिया की खबरों से रूबरू हुआ और फिर मार्निंग वॉक पर निकल गया। सिविल लाइन से रमईपट्टी व फतहां होते हुए आगे विसुंदरपुर की ओर बढ़ गया। वहां गांव की पुलिया पर बैठा पुरवइया हवा का आनंद लेता संजय पाल मिलते ही यह कहने से नहीं चूकता कि महानगरों में अपनापन नहीं है। वह मुंबई के पनवेल में एक ज्वैलरी दुकान पर सुरक्षाकर्मी का काम करता था। मालिक उसे अपने बेटे की तरह मानता था लेकिन लॉकडाउन ने संजय को मालिक का वह रूप दिखा दिया जिसे वह जिदगी भर नहीं जान पाता। ऐसे अकेले संजय ही नहीं बल्कि देशभर के शहरों से लौटे तीस हजार लोग हैं जो अब गांव की शरण में हैं।
संजय की व्यथा सुन नागरिक की आंखें नम हो गईं तो उसने मुंबई से लौटे अपने अन्य साथियों से भी मुलाकात कराई। मुंबई में ही पांच सितारा होटल में कार्यरत बृजेश व लौह अयस्क की फैक्ट्री में काम करने वाले देवेंद्र, दिल्ली में आटो चलाकर परिवार पालने वाले बलवंत या अहमदाबाद में शिक्षण कार्य करने वाले सुमन सिंह की भी मनोदशा कमोबेश ऐसी ही है। हर सख्श ने शहरों की बेरुखी को महसूस किया है। कटरा कोतवाली क्षेत्र में रहने वाले बृजेश बताते हैं कि पहले 21 दिन तक तो मालिक ने तनख्वाह दी और भरोसा भी देते रहे लेकिन दूसरा लॉकडाउन शुरू होने के बाद वे बार-बार यही कहते कि अब घर चले जाओ। अपने पास जो रुपये थे, वह उपयोग करने लगे तो 15 दिन में ही बैंक अकाउंट खाली हो गया। फिर घर से रुपये मंगाने शुरू किए और किसी तरह ट्रक से वापस आए। मुंबई से आई सुमन तो अपनी दुर्दशा बताते-बताते रोने लगती हैं। उन्होंने कहा कि मकान मालिक ने लॉकडाउन शुरू होने के बाद से ही धमकी देना शुरू कर दिया और जब उसे पता चला कि वेतन भी नहीं मिला है तो उसने सामान बाहर फेंक दिया। उस कठिन समय को किसी तरह से पार किया और कुछ लोगों के साथ आटो से घर आईं। इसी तरह कोई आटो से कोई बस से, कोई ट्रक से तो कोई ट्रेन से जूझता, लड़ता अपने-अपने गांव पहुंचा। बलवंत कहते हैं कि यहां भले ही कुछ न हो लेकिन मानसिक तनाव नहीं है। सभी मदद कर रहे हैं, साथ भरोसा भी देते हैं। अपने बचपन के साथियों की आपबीती सुन मन व्यथित हो उठा।
नागरिक सभी की दास्तां सुन मन ही मन विचलित होने लगा तभी सूरत से आए नंदा ने उगते सूरज की ओर देख आत्मविश्वास जगाने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि अब हम अपने घर में हैं सो कोई दिक्कत नहीं है। बताया कि घर पर सभी के राशन कार्ड बने हैं, राशन मिल रहा है और पर्याप्त है। नए राशन कार्ड भी बन रहे हैं इसलिए अब यह चिता नहीं कि हम क्या खाएंगे। किसान राजबली पटेल ने बताया कि सरकारी पेंशन के दम पर ही रोजमर्रा की जरूरतें पूरी हो रही हैं। किसान नागेंद्र ने बताया कि पीएम मानधन की राशि लॉकडाउन के दौरान खाते में आई तो महीनेभर की सामान्य जरूरतें पूरी हुईं। महिला श्रमिक फूलवती यादव ने बताया कि जनधन खाते में मिले पांच सौ रुपये मददगार साबित हुए। हर महीने मिली इस रकम से कुछ जरूरत तो पूरी हुई, किसी के सामने हाथ फैलाने की जरुरत नहीं पड़ी। नागरिक ने देखा कि अब गांवों में चहल-पहल बढ़ गई है। लोग रोजाना एक-दूसरे के साथ बैठ खिलखिला रहे हैं। उसने मां विध्यवासिनी से मन्नत मांगते हुए बोला- हे मां! घर-गांव में इसी तरह सभी की खुशहाली बनी रहे।
- नागरिक