सुगंधित धान से महक उठेगा नक्सल प्रभावित इलाका
जासं, मीरजापुर : ¨सचाई की समस्या व बढ़ रही लागत को देखते हुए नक्सल प्रभावित क्षेत्र के किसान अब सुगं
जासं, मीरजापुर : ¨सचाई की समस्या व बढ़ रही लागत को देखते हुए नक्सल प्रभावित क्षेत्र के किसान अब सुगंधित धान की सीधी खेती करने का मन बना रहे हैं। यह ऐसा धान होता है जो दो पानी में भी उत्पादन दे देता है। सीधी बोआई से लागत घटकर आधी हो जाएगी। यदि खरपतवार का नियंत्रण कर दिया जाए तो सीधी खेती से अच्छा उत्पादन किया जा सकता है।
नक्सल प्रभावित मड़िहान तहसील का पटेहरा व राजगढ़ में गोष्ठी आयोजित कर साउथ कैंपस बरकछा के कृषि विशेषज्ञों द्वारा सीधी बोआई की जानकारी दी जा चुकी है। यह इलाका पहाड़ी व उबड़ खाबड़ क्षेत्र है। इसलिए यहां ¨सचाई के पानी की बराबर समस्या रहती है। पानी न मिलने से प्राय: किसानों की फसल सूख जाती है। फसल सूखने से किसानों की कमर टूट जा रही है। वे कर्ज के बोझ व समस्याओं से जूझ रहे हैं।
देवपुरा के किसान राम कृत मौर्य ने कहा कि पहले देशी धान की खेती होती थी। देशी धान की खासियत है कि यदि दो पानी भी मिल जाए तो सूखा में भी उसका कुछ न कुछ उत्पादन हो जाता है। बाजार में हाइब्रीड छाया हुआ है। इस धान की कीमत आसमान छू रही है। 160 रुपये तीन सौ रुपये तक इसका बीज मिल रहा है । किसान राजकुमार व राजेश पटेल ने कहा कि यह हाईब्रीड महंगा बीज किसानों के लिए भारी पड़ रहा है। इस बीज के लिए पानी की अधिक जरूरत होती है इसलिए किसान अब देशी बीज की खेती को अपना रहे हैं। खेती में बढती लागत और पानी की कमी को देखते हुए अधिक से अधिक उपज और लाभ लेने के लिए इस बार किसानों ने सुगंधित धान की खेती करने का मन बनाया है।
पहले भी होती रही सुगंधित धान की खेती.. चार दशक पूर्व नक्सल क्षेत्र पूरा इलाका सुगंधित धान से गमकता था। किसानों ने उस जरुरत को पुन: महसूस किया और खुसबूदार धान की खेती कर अपनी दशा सुधारने की कोशिश कर रहे है। कई वर्षो से कम बरसात व नहर में पानी कम होने से किसानों की फसल तैयार नही हो सकी। भावा, देवपुरा, डढि़या, विसुनपुर, मटिहानी, रैकरी रैकरा व आसपास के दर्जनों गांवों में किसान सुगंधित धान की सीधी खेती शुरू कर दिए है। किसान रविशंकर, विजय प्रताप रामकुमार ने बताया कि हाईब्रीड या इससे संबंधित धान की रोपाई करने पर पंद्रह से सत्रह कुन्तल प्रति बिघा के दर से पैदावार होती है लेकिन उसमें रोपाई व रोग का रिश्क होता है जबकि देशी महीन प्रजातियां दस से बारह कुन्तल प्रति बिघा की दर से पैदा हो जाती है। इसमें रोग का रिश्क और रोपाइ का खर्च नहीं आता तथा अनाजों के बेचने में कोई परेशानी नहीं आती इसलिए किसान इसको अपना रहे हैं।
वर्जन..
धान की कम लागत में सीधी बुवाई की जा सकती है। इसके लिए नक्सल प्रभावित इलाका पूरी तरह उपयुक्त है। यदि किसान छिटकवा विधि को त्यागकर जीरो ट्रील, शीड ड्रिल या हल के पीछे बीज गिराकर सीधी बुवाई करते है तो निश्चित रूप से किसानों को कम लागत में अच्छा उत्पादन मिलेगा। इस बुआई से कम खाद में फसलों का लाभ लिया जा सकता है। रोपाई व नर्सरी के खर्च से बचा जा सकता है। ऐसे बीजों का नीचे से जमाव होता हैं इसलिए उनकी जड़े भी नीचे होती है।उपरी परत सूख भी जाएगी तो धान नहीं सूखेगा। कम ¨सचाई पानी में इसका उत्पादन किया जा सकता है। किसानों को जगह जगह गोष्ठी आयोजित कर धान के सीधी बुआई की जानकारी भी दी जा चुकी है। यदि किसान इस विधि को अपना रहे है तो निश्चित रूप से वे फायदे में रहेंगे।
- श्रीराम ¨सह, कृषि विशेषज्ञ, साउथ कैम्पस बरकछा मीरजापुर।