हर कदम चलो ऐसे कि निशान बन जाए, जिदगी ऐसे जियो की मिसाल बन जाए..
हर कदम चलो ऐसे कि निशान बन जाए यह जिदगी तो सब काट लेते हैं जिदगी ऐसे जियो कि मिसाल बन जाए।
अमित तिवारी, मीरजापुर
हर कदम चलो ऐसे कि निशान बन जाए, यह जिदगी तो सब काट लेते हैं, जिदगी ऐसे जियो कि मिसाल बन जाए। उक्त पंक्ति नगर के बसंत इंटर कालेज में तैनात दृष्टि बाधित हिदी शिक्षक अर्जुन सिंह राठौर पर अक्षरश: साबित होती है। जहां आज स्वस्थ्य व्यक्ति अपने कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी और निष्ठापूर्वक ससमय नहीं कर रहा है। वहीं दूसरी तरफ दृष्टि बाधित हिदी शिक्षक अर्जुन सिंह राठौर पूरे समाज के लिए एक मिसाल बने हुए हैं।
बचपन में परिजनों की छोटी सी भूल के चलते आंखों की रोशनी खोने के बावजूद नगर के बसंत इंटर कालेज में हिदी के दृष्टि बाधित शिक्षक अर्जुन सिंह राठौर ने सफलता की नई मिसाल पेश की है। कई दुश्वारियां आने के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के चलते सफलता की ऊंचाईयों को छुआ। हांलाकि उनकी जज बनकर लोगों को न्याय दिलाने की आशा आज भी मन में दबी हुई है। अपनी पुरानी स्मृतियों को याद करते हुए बताया कि चार वर्ष की अवस्था में नाना के घर गए थे, उस समय आंख की बीमारी फैली थी। परिजनों द्वारा वैध से इलाज कराया, जिसके चलते उनके आंखों की रोशनी जाती रही। हांलाकि 10 वर्ष की अवस्था में उन्होंने पठन-पाठन एक बार फिर आरंभ किया। नई दिल्ली स्थित राजकीय दृष्टि बाधित बाल विद्यालय कैंप से शिक्षा-दीक्षा आरंभ की। इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक और 1998 में बीएड की परीक्षा उर्त्तीण की। दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्नातक व बीएड करने के बाद कड़ी मेहनत और दृढ़ इच्छा शक्ति के चलते वर्ष 2005 में प्रथम प्रयास में ही माध्यमिक सेवा चयन बोर्ड के माध्यम में चयनित होकर हिदी विषय के प्रवक्ता बने। सात नवंबर 2006 से बसंत इंटर कालेज में बच्चों को ब्रेल लिपि की किताब से हिदी और संस्कृत पढ़ा रहे हैं। बताया कि इस अंधकारमय जीवन में जीवन की नई रोशनी प्राथमिक शिक्षक जेडी गर्ग ने दी। उनसे ही शिक्षक बनने की प्रेरणा मिली। बताया कि विद्यालय में शिक्षक धर्मराज सिंह, मनोज सिंह सहित सभी शिक्षकों द्वारा पठन-पाठन के दौरान पूरा सहयोग किया जाता है।
-----------
बड़े ध्यान से पढ़ते हैं बच्चे
दृष्टि बाधित होने के बावजूद अर्जुन सिंह राठौर पूरे मनोयोग से बच्चों को पढ़ाते है। कक्षा की घंटी बजते ही वह अपने आप कक्षा की तरफ चल पड़ते है। बच्चे उनको देखते ही स्वत: हाथ पकड़कर कक्षा तक पहुंचाते है। कक्षा में पहुंचते ही बच्चे पूरे मनोयोग उनकी बातों को सुनते हैं। प्रधानाचार्य लालजी शास्त्री द्वारा उनको ब्लैक बोर्ड पर लिखने और डायरी से छूट प्रदान की गई है।
------
शिक्षक की बातों को रिकार्ड कर सुनते थे अर्जुन
पढ़ाई के दौरान ब्रेल लिपि की पुस्तके काफी कम उपलब्ध होती थी, जिसके चलते काफी परेशानी होती थी। शिक्षक जेडी गर्ग ने एक अनोखा तरीका खोजा। कक्षा के दौरान वह पढ़ाई की बातों को रिकार्ड करते थे और अर्जुन सिंह राठौर को दे देते थे, जिसको सुनकर वह पाठ को अच्छे से याद करते थे।
---------
ब्रेल लिपि में नई पुस्तके नहीं होने से होती है परेशानी
माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा नई पुस्तकों को जारी किया जाता है। ये पुस्तकें ब्रेल लिपि में नहीं आ पाती हैं, जिसके कारण अर्जुन सिंह राठौर को नई पुस्तकों की जानकारी होने में असुविधा होती है। उन्होंने कहा कि ब्रेल लिपि में भी पुस्तकों को जारी किया जाए।
------------
अधूरा रह गया जज बनने का सपना
दृष्टि बाधित शिक्षक अर्जुन सिंह राठौर पढ़ लिखकर जज बनना चाहते थे, लेकिन स्थितिवश नहीं बन पाए। वह अब शिक्षक के रूप में ही समाज की सेवा करते हुए बच्चों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।