मनरी बजते अंतरप्रांतीय बेचूवीर मेला का समापन
कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर एकादशी तक चलने वाले बेचूवीर के ऐतिहासिक मेले में प्रसाद रूपी अक्षत का एक दाना पाने की चाह में लाखों भक्तों का जमावड़ा हुआ। एकादशी की निशा में अक्षत पाते ही खेलती हबुआती महिलाओं की जिजीविषा शांत हुई।
जागरण संवाददाता, अहरौरा (मीरजापुर) : कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर एकादशी तक चलने वाले बेचूवीर के ऐतिहासिक मेले में प्रसाद रूपी अक्षत का एक दाना पाने की चाह में लाखों भक्तों का जमावड़ा हुआ। एकादशी की निशा में अक्षत पाते ही खेलती हबुआती महिलाओं की जिजीविषा शांत हुई। वहीं भोर में शुक्रवार की मनरी बजते ही मेला का समापन हुआ। बेचूवीर बाबा की चौरी परिसर के चारों लाखों भक्तों का जमावड़ा लगा हुआ था। मेला का सकुशल समापन होते ही प्रशासन ने भी राहत की सांस लिया।
सन्नाटे में डूबे इस बियावान जंगल की तन्मयता लाखों श्रद्धालुओं के कोलाहल और वाहनों की चीत्कार से भंग हो गई। अंतरप्रांतीय भक्तों को एक जगह इकट्ठा करने वाले बाबा के धाम में गुरुवार की रात मानों तिल रखने की भी जगह नहीं बची। नौनिहालों को गोद में लिए हुए पैदल यात्रा में शामिल महिलाओं की दशा दयनीय रही। श्रद्धा पर नतमस्तक वृद्ध औरतें भी किसी तरह लाठी टेकते हुए तो कुछ ट्रैक्टर सवार होकर बाबा के धाम में पहुंच ही गई थी। मेला धाम में श्रद्धालु खुले आसमान के नीचे बेसहारा की तरह अपनी मनोकामना पूर्ति की इच्छा संजोए मनरी बजने का इंतजार करते रहे। वीरान स्थल पर विद्यमान नीम के पेड़ के नीचे स्थित बेचूवी बाबा की चौरी को आकर्षक रूप से सजाया गया था। संतान प्राप्ति की इच्छा व प्रेत बाधा से ग्रसित महिलाओं के ऊल-जुलूल कारनामों से भय-दहशत एवं रोमांच का माहौल पूरे मेला क्षेत्र में कायम था। दर्शनार्थियों की आस्था और विश्वास का केंद्र वह चौरी है, जिसे आने वाला हर पीड़ित सजल नेत्रों से नतमस्तक हो एकटक देखता ही जा रहा था। परंपराओं के अनुसार बजी मनरी
परंपराओं के अनुसार बेचूबीर के इस मेले में मनरी नामक वाद्य यंत्र के बजते ही पुजारी की विशेष पूजा के बाद भीड़ का कोलाहल ठहर गया था। खुले आसमान के नीचे तीन दिनों तक रात गुजारने वाली खेलती हबुआती महिलाओं की लालसा प्रसाद रूपी अक्षत के महज एक दाना पाने से पूर्ण हो गई। बाबा के प्रति समर्पण और उत्साह की झलक भक्तों के चेहरे पर साफ झलक रहा था। श्रद्धालुओं के आस्था और विश्वास के इस पर्व को अश्रुपूरित नजरों से विदा कर दिया जाता है। -चिघाड़ते हुए चौरी पर पहुंचे पुजारी
बेचूवीर बाबा के पुजारी बृजभूषण यादव पटपर नदी पर विधिवत स्नान करने के बाद हाथ में लाठी लेकर चिघाड़ते हुए दौड़ लगाते चौरी पर पहुंचे। पुजारी के बाबा की चौरी पर पहुंचते ही घंटा घड़ियाल, नगाड़ा और मनरी नामक वाद्य यंत्र बजना शुरू हो गया। लाखों की संख्या में चौरी के चारों ओर खड़े आस्थावान सजल नयन से बाबा की विशेष पूजा को टकटकी लगाए निहारते रहे। इस दौरान पूरा परिसर बेचू बाबा के जयकारे से गूंज उठा। आधा घंटा तक चले इस विशेष पूजा को देखने के लिए तीन दिनों से भक्त बेचूवीर की चौरी के पास जुटे रहे। पूजा संपन्न होने के बाद अक्षत रूपी प्रसाद का वितरण किया गया। - दुख दर्द बांटने वाला नहीं दिखाई दिया
अंतर प्रांतीय बेचूवीर के मेला में अधिक भीड़ के चलते इस पहाड़ी और जंगली क्षेत्र में श्रद्धालुओं के दुख-दर्द बांटने की फुर्सत किसी को नहीं थी। रोज कमाने-खाने वालों ने इस पर्व पर रास्ते चाय-पान की कई दुकानें लगा रखी हैं, जिससे यातायात में दुर्व्यवस्था नजर आई। मेला क्षेत्र में उड़ने वाली धूल से वातावरण प्रदूषित नजर आया। गंदगी के चलते गर्भवती महिलाओं व नवजात शिशुओं की हालत बद से बदतर हो गई थी। शुक्रवार की तड़के सुबह से मेला में श्रद्धालुओं की वापसी शुरू हो गई। अपने अपने वाहनों से लोग निकलना शुरू कर दिए।