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घाटे का सौदा बन गई सब्जियों की खेती, किसान मायूस

सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की मुहिम चला रही है लेकिन धरातल की तस्वीर अन्नदाता के लिए शुभ संकेत नहीं दे रही है। यहां तक कि सब्जियों की खेती करने वाले किसान लागत मूल्य भी नहीं जुटा पा रहे हैं। सब्जी का दाम मंडियों में कम मिलने से अन्नदाता मायूस है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 31 Jan 2019 08:16 PM (IST)Updated: Thu, 31 Jan 2019 11:11 PM (IST)
घाटे का सौदा बन गई सब्जियों की खेती, किसान मायूस
घाटे का सौदा बन गई सब्जियों की खेती, किसान मायूस

जागरण संवाददाता, अदलहाट (मीरजापुर) : सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की मुहिम चला रही है लेकिन धरातल की तस्वीर अन्नदाता के लिए शुभ संकेत नहीं दे रही है। यहां तक कि सब्जियों की खेती करने वाले किसान लागत मूल्य भी नहीं जुटा पा रहे हैं। सब्जी का दाम मंडियों में कम मिलने से अन्नदाता मायूस हैं। उन्हें उपज का लाभ मिलने को कौन कहे, लागत मूल्य भी निकालने में जद्दोजहद करनी पड़ रही है।

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अदलहाट क्षेत्र के बरी जीवनपुर ग्राम के किसान ¨रकू ¨सह ने बताया कि दो बीघा फूल गोभी की खेती करने के साथ ही पालक, मटर, लहसुन, धनियां, आलू की खेती करते हैं। फूल गोभी के खेत में मेड़ बनाकर नेनुआ की भी खेती की गई है। फूल गोभी के कटने के बाद गर्मी में नेनुआ की सब्जी तैयार करते हैं। बताया कि खेत की जोताई-बोआई, निराई, ¨सचाई, उर्वरक देने के बाद एक फूल गोभी तैयार होने में लगभग पांच रुपये खर्च आता है, मंडी में एक फूल गोभी दो रुपये में बेचा जा रहा है। किसान को लागत से कम दाम मिलने पर किसानों में मायूसी छाई हुई है। किसानों का कहना है कि कभी-कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि खेत से मंडी फूल गोभी ले जाने में दाम को कौन कहे किराया तक निकलना मुश्किल हो जाता है। किसान समरजीत ¨सह, राजेंद्र प्रसाद, राजमणि, अमरजीत आदि किसानों का कहना है कि फूल गोभी की मांग खिचड़ी (मकर संक्रांति) पर होता था, लेकिन पर्व पर भी मांग न होने से स्थिति ज्यों की त्यों बनी रह गई। यही स्थिति पालक का है, मंडी में पालक का दाम दो से तीन रुपये किलो मिलने से किसान पालक को खेत से काटकर मंडी ले जाना मुनासिब नहीं समझ रहे हैं। जब मंडी में पालक दस रुपये किलो था, तो बाजार जाता था। दाम कम मिलने पर मंडी नहीं जा पा रहा है। पालक खेत में उसी तरह पड़ा है। एक तरफ सरकार किसानों के आय को दोगुना करने की बात करती है, वहीं पर किसानों को लागत भी नहीं मिल रहा है।


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