डैडी हमें नाना के यहां जाना है, ले चलो ना..प्लीज!
गर्मी के दिनों में नानी और दादी के यहां खुले आसमान व बागीचों में बीतने वाली बच्चों की छुट्टियां इस बार घर में ही कैद हो गई। लॉकडाउन के चलते इस बार बच्चे घर में ही रहकर प्राकृतिक सौंदर्य को महसूस करते नजर आए।
कमलेश्वर शरण, मीरजापुर :
गर्मी के दिनों में नानी और दादी के यहां खुले आसमान व बागीचों में बीतने वाली बच्चों की छुट्टियां इस बार घर में ही कैद हो गई। लॉकडाउन के चलते इस बार बच्चे घर में ही रहकर प्राकृतिक सौंदर्य को महसूस करते नजर आए।
कोरोना नाम की वैश्विक महामारी ने देश ही नहीं पूरी दुनिया को घरों में कैद कर दिया। इस महामारी से दुनिया भर में लाखों लोगों ने अपनी जान गवां दी। इससे बचने का मात्र एक उपाय कारगर रहा और वो है शारीरिक दूरी। माना जाता है कि यह बीमारी संक्रमित इंसान के संपर्क में आने से होती है। इसी के कारण देश को लॉकडाउन करने की नौबत आ गई। लगभग तीन माह तक देश में कर्फ्यू जैसा माहौल रहा। यह वही समय था जब बच्चों की गर्मियों की छुट्टियों का समय आता है और बच्चे अपनी नानी-दादी के घर इन छुट्टियों को मनाने जाते थे। अब एक बार फिर 55 घंटों के लिए प्रदेश सरकार ने प्रतिबंध का एलान कर दिया। हालांकि विध्यवासियों ने इसका पूरा समर्थन किया।
नगर के तरकापुर स्थित फुलवरिया निवासी मनीष मिश्रा के पुत्र शौर्य की जिद ने पूरे घर में हलचल पैदा कर दी है। लॉकडाउन के चलते नानी के यहां न जा पाने का मलाल उसे सता रहा है। परिजनों तथा चाचा से नानी के यहां ले चलने की जिद करता रहता है, पर कोरोना से उपजे माहौल के कारण परिजन खुद घर से बाहर निकलने से कतरा रहे हैं। इसके बाद भी वह जिद करता है कि डैडी हमें नाना के यहां जाना है, ले चलो ना.. प्लीज।
वैसे तो आधुनिक युग की ओर बढ़ रहे भारत में मोबाइल ऐसा साधन बन गया है जिसमें किसी तरह का खेल खेला जा सकता है। इसके बाद भी नानी के यहां के दोस्तों के साथ आम के बगीचे में पकड़म-पकड़ाई खेलना, छुपा-छुपाई खेलना, पेड़ों में चढ़कर खेलना आज भी बच्चे पसंद करते हैं। इस बार कोरोनाकाल ने बच्चों के उन सपनों को तोड़ दिया, जो वह पढ़ाई करते वक्त गर्मियों की छुट्टियों के आने का इतंजार किया करते थे।
नानी-दादी के घर होती है मस्ती
इस वक्त बच्चों के वजन से ज्यादा उनके कंधों पर कॉपी किताबों का बोझ रहता है। इतनी प्रतियोगिता हो गई हैं कि बच्चों में छोटे से ही जिम्मेदारी का बोझ भी आ जाता है। इसी बोझ को कम करने के लिए बच्चे गर्मी की छुट्टियों का इंतजार करते हैं। यह इंतजार तब खत्म हो जाता है जब नानी के यहां के बागों में आम तोड़ने को मिलते हैं। दादी-दादा रात में खुले आसमान में राजा-रानी की कहानियां सुनाते हैं। यह वह वक्त होता है, जब बच्चे पढ़ाई को भूलकर मस्ती में लग जाते हैं। लॉकडाउन में न तो बच्चों ने आम के बागीचे देखें न ही नानी से कहानियां सुनी।