पक्षकारों की मौत बाद पहुंचा कोर्ट नोटिस, पुराना मुकदमा बैरंग वापस
न्यायालय सिविल जज सीनियर डिविजन में 44 साल पुराने मुकदमे में फैसला आया। यह चौंकाने वाला इसलिए है क्योंकि इस मुकदमे के दोनों पक्षकार अब इस दुनिया में नहीं हैं। वर्षों पहले उनकी मौत हो चुकी है। मुकदमे के संबंध में जब न्यायालय ने नोटिस जारी की तो पक्षकारों के परिवार के लोग न्यायालय पहुंचे व पक्षकारों की मृत्यु होने की जानकारी दी। इस पर कोर्ट ने दोनों पक्ष के वारिसों को प्रति पक्षकार बनाकर मुकदमा वापस कर दिया।
जागरण संवाददाता, मीरजापुर : न्यायालय सिविल जज सीनियर डिविजन में 44 साल पुराने मुकदमे में फैसला आया। यह चौंकाने वाला इसलिए है क्योंकि इस मुकदमे के दोनों पक्षकार अब इस दुनिया में नहीं हैं। वर्षों पहले उनकी मौत हो चुकी है। मुकदमे के संबंध में जब न्यायालय ने नोटिस जारी की तो पक्षकारों के परिवार के लोग न्यायालय पहुंचे व पक्षकारों की मृत्यु होने की जानकारी दी। इस पर कोर्ट ने दोनों पक्ष के वारिसों को प्रति पक्षकार बनाकर मुकदमा वापस कर दिया।
सिविल जज सीनियर डिविजन लवली जायसवाल ने 44 वर्ष पूर्व से चल रहे मुकदमा नंबर दो सन 1975 अमरनाथ वगैरह बनाम वंशनरायन सिंह के दाखिल मुकदमे में दावा वादी बिना गुण-दोष पर कोई मत व्यक्त किए, वादी गण का वाद पत्र नियमानुसार वापस किए जाने का आदेश पारित किया। साथ ही पत्रावली दाखिल अभिलेखागार किए जाने का आदेश दिया। मुकदमे के अनुसार वादी गण अमरनाथ, रामनाथ व गोपीनाथ समस्त निवासी बरिया घाट, वासलीगंज ने प्रतिवादी वंशनरायन सिंह के विरुद्ध दुकान के हिसाब-किताब का विवरण एवं 5100 रुपये प्राप्त कराए जाने के लिए वर्ष 1975 में सिविल जज के न्यायालय में अमरनाथ व अन्य बनाम वंशनरायन सिंह वाद संख्या दो दाखिल किया था। इसमें न्यायालय द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में अपील रिट दाखिल हुई थी। जिसमें उच्च न्यायालय द्वारा चार अगस्त 1998 को अपील निरस्त कर दिया था। बावजूद इसके सिविल जज सीनियर डिविजन के न्यायालय में पत्रावली विचाराधीन चली आ रही थी। न्यायालय ने पक्षकारों को नोटिस जारी किया जिस पर पक्षकारों के वारिसों द्वारा मूल वादीगण के मृतक हो जाने की सूचना प्राप्त हुई। प्रति स्थापित वादीगण (वारिसों) द्वारा पक्षकारों के मध्य पूर्व में ही मुकदमे में सुलह हो जाने तथा विवाद समाप्त हो जाने का कथन किया गया। साथ ही न्यायालय से मांग किया कि वाद की कार्रवाई को बिना गुण-दोष के आधार पर वापस किया जाए। न्यायालय ने वारिसों की याचना स्वीकार करते हुए दावा वादीगण का वादपत्र बिना गुण-दोष के वापस किए जाने का आदेश पारित किया।