पढ़ाई के घंटे भले ही कम हों, विषय पर पकड़ मजबूत होनी चाहिए
कोविड महामारी शुरू होने के बाद पहली बार दैनिक जागरण का यूथ कनेक्ट कार्यक्र
मेरठ,जेएनएन। कोविड महामारी शुरू होने के बाद पहली बार दैनिक जागरण का यूथ कनेक्ट कार्यक्रम मंगलवार को स्कूल में आफलाइन मोड में हुआ। केएल इंटरनेशनल स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने सीनियर कक्षाओं के छात्र-छात्राओं का मार्गदर्शन किया। एसएसपी ने बच्चों से कहा कि माता-पिता या किसी अन्य को दिखाने के लिए 12-15 घंटे पढ़ने के बजाए, हर दिन स्कूल के बाद तीन-चार घंटे गंभीरता से की गई पढ़ाई ही पर्याप्त होती है, लेकिन पढ़ाई पूरी एकाग्रता के साथ विषय पर पकड़ बनाने के लिए होनी चाहिए। पकड़ ऐसी कि भविष्य की किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में उस बिंदू से संबंधित प्रश्न पूछा जाए तो उसके जवाब को विस्तार से लिख सकें या बता सकें।
उत्तर में केवल किताबी नहीं, अनुभवों को भी जोड़ें
एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने छात्रों को केवल किताबी उत्तर लिखने की बजाए विषय से जुड़े आसपास के अनुभवों को भी जोड़ने के लिए प्रेरित किया। बताया कि स्कूल स्तर के बाद जब उच्च शिक्षा में जाएंगे या प्रतियोगी परीक्षाओं में उत्तर लिखेंगे तो वहां किताबी नहीं, व्यवहारिक जवाब से अधिक अंक मिलते हैं। इससे अभ्यर्थी के ज्ञान और व्यक्तित्व दोनों का परिचय मिलता है। पढ़ाई करते समय उत्तर को लिखकर तैयारी करें। आसपास के दृश्य की कल्पना करें और उन्हें शब्दों में पिरोने की कोशिश करें। इससे 10 साल बाद भी किसी परीक्षा में उस बिंदू से जुड़ा प्रश्न पूछा गया, तो उत्तर लिख सकेंगे। शिक्षकों और माता-पिता में विश्वास रखें। उनकी बात मानें और सीखें।
लक्ष्य निर्धारित करें..फिर करें तैयारी
आइपीएस प्रभाकर चौधरी ने छात्रों को अभी से लक्ष्य निर्धारित कर उस दिशा में अपनी तैयारी को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े होने के कारण उन्हें शिक्षा और करियर की अधिक जानकारी नहीं थी। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बीएससी करने पहुंचे तो वहां के माहौल में डाक्टर या इंजीनियरिग के अलावा करियर की अन्य संभावनाओं के बारे में जान सके। पिता शिक्षक बनते देखना चाहते थे, लेकिन एसएसपी को यूनिफार्म आकर्षित करने लगी। लक्ष्य मिला तो तैयारी की और धीरे-धीरे सफल होकर आगे भी बढ़ते गए। 21 वर्ष की आयु में पीसीएस परीक्षा उत्तीर्ण की। आइपीएस की तैयारी के दौरान हर प्रतियोगी परीक्षाएं दीं और उनमें सफल होकर आगे बढ़ता रहे।
खेलकूद, अनुशासन और नैतिक
मूल्य ही जीवन आधार
स्कूल के प्रिंसिपल सुधांशु शेखर ने छात्र-छात्राओं को एसएसपी प्रभाकर चौधरी से मिली सीख को आत्मसात करने को प्रेरित करते हुए कहा कि हमें कभी जीवन में हार नहीं माननी चाहिए। जीवन में कितने ही संघर्ष आएं, सदैव डटकर उनका मुकाबला करना चाहिए। खेलकूद, अनुशासन व नैतिक मूल्य हमारे जीवन का आधार हैं। इनमें संतुलन बनाकर आगे बढ़ते जाना चाहिए। किताबों को पढ़ने की आदत को हमें जीवन का एक अहम हिस्सा बनाना चाहिए। किताबें केवल पढ़ें नहीं, बल्कि उनसे सीखें भी। कार्यक्रम से पहले स्कूल के वाइस चेयरमैन तेजिंदर खुराना, प्रबंधक मनमीत खुराना और निदेशक हरनीत खुराना ने एसएसपी का स्वागत व सम्मान किया। स्कूल की छात्राओं ने स्वागत गीत व महाभारत में भगवान कृष्ण की भूमिका पर शानदार प्रस्तुति दी। दैनिक जागरण परिवार की ओर से महाप्रबंधक विकास चुघ, संपादकीय प्रभारी जय प्रकाश पांडेय भी मौजूद रहे। छात्रों के सवाल और एसएसपी के जवाब
पुलिस अफसर के तौर पर आपकी सबसे बड़ी चुनौती और कठिनाई क्या है?
-अर्चना सिंह, कक्षा 10वीं
पुलिस के जवान पहले जज होते हैं। छोटी-छोटी समस्याओं को यदि वे ईमानदारी से सुनकर निपटारा करें तो वह मामले न्यायालयों तक नहीं जाएंगे। व्यक्तिगत जीवन में हमें समय कम मिल पाता है। प्रोफेशन में ईमानदारी से काम करने पर भी पुलिस से 50 फीसद लोग नाराज ही रहते हैं। पुलिस का काम सामान्य जांच-पड़ताल ही होती है, लेकिन रास्ते पर किसी को रोककर जांच करने से भी लोग नाराज हो जाते हैं। -खेल ने आपके करियर को किस तरह से प्रभावित किया?
- प्रगति, कक्षा 12वीं
म ं छोटी उम्र से ही खेल में बढ़चढ़कर हिस्सा लेता था। ज्यादा खेलने के कारण घर में पिटाई भी हुई। फिटनेस के कारण ही वर्ष 2014 में एनएसजी ट्रेनिंग ली। सुबह 10 किलोमीटर की दौड़ और शाम को बैडमिंटन, तैराकी या अन्य खेल खेलता हूं। तैराकी में पहले मैंने पदक भी जीते हैं। खेल से मन खुश रहता है। शरीर चुस्त रहता है। एकाग्रता बढ़ती है। कार्यक्षमता बढ़ी है। अब लगता है कि एक्सरसाइज नहीं किया तो काम नहीं कर सकूंगा। -मेरठ की कानून व्यवस्था पर आपका क्या कहना है?
-मयंक वशिष्ठ, कक्षा 12वीं
मैं वर्ष 2012 से अब तक 13 जिलों में एसपी, एसएसपी रहा और अब यहां से जाने पर यह मेरा 26वां ट्रांसफर होगा। मेरठ में ला एंड आर्डर की समस्या नहीं है, लेकिन यहां हत्याएं अधिक होती हैं। आपसी पारिवारिक विवाद या जमीन को लेकर हत्याएं अधिक हैं। मुझसे मिलने 90 फीसद महिलाएं घरेलू विवाद से पीड़ित आती हैं। छेड़छाड़ व दुष्कर्म के 90 फीसद मामले परिवार, दोस्त, रिश्तेदार और जानकारों के जरिए ही होते हैं। पूरी तरह से अनजान व्यक्ति ऐसा कम करता है। इसलिए विशेष तौर पर बालिकाओं को परिवार व रिश्तेदारी में सावधान रहना चाहिए और दोस्तों के चयन में सावधानी बरतना व जागरूक रहना चाहिए। -आपने यह करियर क्यों चुना? आपको प्रेरणा कहां से मिली?
- हिमांशु चौधरी, कक्षा 10वीं
ग्रामीण परिवेश में जागरूकता नहीं थी। शुरुआत में केवल एक नौकरी पाने के लिए पढ़ाई करते रहे। सेना में जाने के लिए भी आइएमए की परीक्षाएं दीं और उसी दौरान धीरे-धीरे यूनिफार्म के प्रति आकर्षण महसूस होने लगा। तैयारी भी उसी दिशा में आगे बढ़ने लगी। -हमने सुना है कि आपने शहर में ड्यूटी ज्वाइन करने से पहले दो-तीन दिन शहर को घूमकर देखा था, ऐसा क्यों?
-कुणाल राजवंशी, कक्षा 12वीं
शहर घूमकर देखने की बात सही नहीं है। मुरादाबाद से यहां आने पर मैं ड्यूटी ज्वाइन कर घर गया था। वहां से परिवार के साथ कार से आने पर बाईपास कंकरखेड़ा होकर एसएसपी आवास पहुंचा। उसी दौरान किसी ने देख लिया होगा, जिससे शहर घूमकर देखने की बात फैल गई होगी। -पुलिस को देखकर युवा अक्सर डरते हैं और बचते हैं। ऐसा क्यों?
-विदुषी राघव, कक्षा 12वीं
पुलिस हर विभाग से ज्यादा काम करती है। हर एक अफसर और जवान पर अतिरिक्त काम का बोझ होता है। इसीलिए कभी-कभी चिड़चिड़े भी हो जाते हैं। जो पुलिस को नहीं जानते, वे भी नकारात्मक विचार रखते हैं। यह फिल्मों के कारण धारणा बन गई है। 18 से 20 साल के युवाओं में हर तरह की स्वतंत्रता की चाहत ज्यादा होती है। नियमों में नहीं बंधना चाहते हैं। इसीलिए जब उन्हें हेलमेट पहनने, बेल्ट पहनने आदि के लिए कड़ाई का सामना करना पड़ता है तो वह डरते हैं या बचते हैं। पुलिस बदल रही है, आगे और भी सुधार होगा। -थानों में अधिकारियों व आम लोगों की सुनवाई में समानता किस तरह बना पाते हैं?
-सृष्टि, कक्षा 11
संविधान में हर किसी को समान अधिकार हैं। पुलिस के पास विभिन्न विभागों के बड़े अधिकारी या सामाजिक तौर पर बड़े लोग नहीं आते हैं। उनके ज्यादातर काम फोन पर हो जाते हैं। पुलिस थानों तक बेहद सामान्य व जरूरतमंद लोग ही आते हैं, इसलिए हम लोग सभी अफसरों व जवानों को हर किसी की सुनवाई करने के लिए प्रेरित करते हैं। परेशान व्यक्ति की थाने में ठीक से सुनवाई भर से लोग संतुष्ट हो जाते हैं। -ला इंफोर्समेंट एजेंसियां युवा पीढ़ी को किसी तरह सशक्त कर रही हैं?
-रिया गर्ग, कक्षा 11वीं
सेना को छोड़कर पुलिस सहित सभी एजेंसिया ला एंफोर्समेंट एजेंसी हैं। इनमें सबसे अधिक अधिकार पुलिस के पास ही होता है। दैनिक जागरण के यूथ कनेक्ट जैसे कार्यक्रमों के जरिए पुलिस से नई पीढ़ी का जुड़ाव बनाए रखने से नई पीढ़ी के युवा पुलिस फोर्स में आने को प्रेरित होंगे। पुलिस के प्रति सकारात्मक जागरूकता बढ़ेगी। -कोविड के दौरान पुलिस को किस तरह की चुनौतियों व कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?
- अर्जुन नागपाल, कक्षा 12वीं
कोविड के लाकडाउन की शुरुआत में वाराणसी में था। अपराध या कानून व्यवस्था की समस्या तो नहीं थी, लेकिन कुछ दिनों बाद हमारे 112 नंबर पर खाने की समस्या को लेकर हर दिन करीब चार घंटे फोन आते थे। हमने रसोई शुरू कराई और लोगों को घर तक खाना पहुंचाया। उसके बाद प्रवासी मजदूरों के आगमन पर दूर से आने वालों के लिए खाने व उन्हें घर पहुंचाने की व्यवस्था करना चुनौतीपूर्ण रहा। दूसरी लहर में आक्सीजन की समस्या हुई तो आक्सीजन प्लांटों को संभालना पड़ा। अब स्थिति में सुधार है और आशा है कि तथाकथित तीसरी लहर का उतना असर नहीं होगा। नाम : प्रभाकर चौधरी
जन्म : आंबेडकर नगर
एजुकेशन : बीएससी मैथमेटिक्स, एलएलबी
बैच आइपीएस : 2010
एनएसजी कमाडो कोर्स : 2014
हॉबी : रनिंग और स्वीमिंग
इन जनपद में रही तैनाती : ललितपुर, देवरिया, बलिया, कानपुर देहात, बिजनौर, मथुरा, सीतापुर, बुलंदशहर, सोनभद्र, बनारस, मुरादाबाद, एसपी एटीएस, एसपी इंटेलिजेंस।