खेल के रास्ते मंजिल तक पहुंचेंगी ईशानी
लक्ष्य तक पहुंचने के लिए सही रास्तों का चयन बेहद महत्वपूर्ण होता है। सोफिया गर्ल्स स्कूल में क
लक्ष्य तक पहुंचने के लिए सही रास्तों का चयन बेहद महत्वपूर्ण होता है। सोफिया गर्ल्स स्कूल में कक्षा 10वीं की छात्रा ईशानी सिंह सिविल सेवा में जाना चाहती हैं। अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए उन्होंने खेलकूद का रास्ता चुना है। इसीलिए वे तरह-तरह के खेलों में प्रतिभाग करते हुए आगे बढ़ रही हैं। पिछले साल बैडमिंटन में नेशनल प्रतियोगिता तक पहुंचने के बाद ईशानी ने इस साल बास्केटबाल की नेशनल प्रतियोगिता को प्राथमिक टारगेट बना लिया है।
बंधना नहीं, बनना है आलराउंडर
ईशानी का स्पष्ट कहना है कि वे किसी एक खेल में बंध कर नहीं रहना चाहती हैं। इसीलिए ईशानी ने एथलेटिक्स में दौड़ और लंबी व ऊंची कूद के अलावा बैडमिंटन और अब बास्केटबाल भी खेलना शुरू कर दिया है। दरअसल, खेलों में ईशानी की रुचि उन्हें बेहद कम समय में खेल को समझने और बेहतर प्रदर्शन करने में मदद करता है। ईशानी के इसी जुझारू रवैये को देखते हुए उन्हें साल 2014-15 में बेस्ट एथलीट का अवार्ड मिला। पिछले साल नौ सितंबर को ईशानी ने लद्दाख में हाफमैराथन (21 किलोमीटर) की दौड़ एक घंटे 16 मिनट में पूरी कर ली थी। बैडमिंटन में अंडर-16 वर्ग में पिछले साल प्रदेश स्तर पर रजत पदक और नेशनल में चौथे स्थान पर रहीं। अब बास्केटबाल नेशनल है टारगेट
मूल रूप से उत्तराखंड के पिथौरागढ़ की रहने वाली ईशानी के पिता मेजर मनोज सेना में कार्यरत हैं। ईशनी ने करीब एक महीने पहले ही बास्केटबाल खेलना शुरू किया है। उनके कोच मिर्जा शहबाज बैग के अनुसार ईशानी में बेहतरीन बास्केटबाल खिलाड़ी बनने के सारे गुड़ मौजूद हैं। महज एक महीने में जिस तरह से ईशानी बास्केटबाल कोर्ट पर गेंद के साथ मूवमेंट करने लगी हैं उसे पकड़ने में खिलाड़ियों को महीनों लग जाते हैं। बनना है आइपीएस
एडवेंचर पसंद करने वाली ईशानी बताती हैं कि वे स्पोर्ट्स कोटे से सिविल सेवाओं में जाना चाहती हैं। वह आइपीएस अफसर बनना चाहती हैं। वह सेना में जाना चाहती हैं लेकिन सेना के इंफैंट्री में अब तक महिलाओं की भर्ती न होने के कारण ईशानी उस ओर नहीं जा रही हैं। इसमें ईशानी को उनके पिता पूरा सहयोग करते हैं जिससे वह अपने सपनों को साकार कर सकें। ईशानी की माता भी खेल से जुड़ी रही इसलिए उन्हें मार्गदर्शन घर में ही मिल जाता है। ड्डद्वद्बह्लह्लद्ब2ड्डह्मद्ब@द्वह्मह्ल.द्भड्डद्दह्मड्डठ्ठ.ष्श्रद्व