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विश्व रेडियो दिवस 2021: इंटरनेट मीडिया के जमाने में भी रेडियो की तरंगों से झंकृत हो उठता है मन

रेडियो सीलोन से बिनाका गीतमाला पर अमीन सयानी की आवाज जैसे ही रेडियो सेट पर सुनाई देती थी लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे। विविध भारती पर हवामहल की नाटिकाएं और जयमाला में सैनिकों की पसंद के फिल्मी गीतों की यादें आज भी लोगों के जहन में ताजा होंगी।

By Himanshu DwivediEdited By: Published: Sat, 13 Feb 2021 10:02 AM (IST)Updated: Sat, 13 Feb 2021 10:02 AM (IST)
विश्व रेडियो दिवस 2021: इंटरनेट मीडिया के जमाने में भी रेडियो की तरंगों से झंकृत हो उठता है मन
मेेेेरठ के लोगों के मन में आज भी झंकृत होता है रेडियों की तरंगे।

[विनय विश्वकर्मा] मेरठ। रेडियो सीलोन से बिनाका गीतमाला पर अमीन सयानी की आवाज जैसे ही रेडियो सेट पर सुनाई देती थी, लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे। विविध भारती पर हवामहल की नाटिकाएं और जयमाला में सैनिकों की पसंद के फिल्मी गीतों की यादें आज भी लोगों के जहन में ताजा होंगी। इंटरनेट मीडिया के इस दौर में भी रेडियो अपनी पहुंच और लोकप्रियता के कारण बुलंद आवाज के साथ सीना तानकर खड़ा है। शहर में आकाशवाणी समेत चार एफएम स्टेशन के चाहने वालों की बढ़ती तादाद इस माध्यम की लोकप्रियता की गवाही देती है।

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सुदूर इलाकों तक पहुंची ‘मन की बात’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुदूर इलाकों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए आकाशवाणी को चुना। आकाशवाणी की पहुंच आज भी किसी और माध्यम की तुलना में कहीं ज्यादा है। किसान, मजदूर, आदिवासी समेत समाज के हर वर्ग से संवाद स्थापित करने का इससे अच्छा माध्यम कोई और नहीं।

विषम परिस्थितियों में रेडियो ही सहारा: उमाशंकर

सोफीपुर निवासी 60 वर्षीय उमाशंकर देखने व चलने में अशक्त हैं। उनका कहना है कि उनके लिए मनोरंजन व सूचना पाने का एकमात्र माध्यम रेडियो ही है। वह पुराने गीत सुनने के शौकीन हैं। जीवन के अंतिम पड़ाव में अब रेडियो ही सहारा है। शहर में आकाशवाणी समेत चार एफएम स्टेशनों के चाहने वालों की कोई कमी नहीं

बिनाका गीतमाला की बात ही अलग: अनिल अग्रवाल

रुड़की रोड निवासी अनिल अग्रवाल बताते हैं कि बिनाका गीतमाला की बात ही निराली थी। अमीन सयानी के मनमोहक अंदाज के दीवाने रहे। बिना कार्यक्रम को सुने नींद नहीं आती थी। आज भी अनिल रेडियो पर पुराने गीत सुनने के शौकीन हैं।

रेडियो सेट के लिए होती थी बुकिंग: ओमप्रकाश

आबूलेन पर नेशनल म्यूजिक होम्स के संचालक ओमप्रकाश बताते हैं कि 1967 में प्रतिदिन पांच से सात रेडियो सेट बिकते थे। इसमें सर्वाधिक फिलिप्स, मर्फी, बुश कंपनी के सेट की मांग थी। बाद में देशी कंपनी रामसंस ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए। उस समय लोग सेट के लिए कई दिन पहले बुकिंग करते थे। उस दौर में 90 से 250 रुपये तक रेडियो बेचते थे। आज इनकी कीमत 800 से 1500 रुपये तक हो चली है। अब एक माह में पांच रेडियो सेट ही बिकते हैं।

सीढ़ी लगाकर सुनते थे रेडियो: राधेश्याम

डाक विभाग से सेवानिवृत्त बेगमबाग निवासी 93 वर्षीय राधेश्याम बताते हैं कि 1944 में उनके आसपास केवल एक ही रेडियो सेट था। शाम को वह सीढ़ी लगाकर छत पर बैठ जाते थे और रेडियो पर प्रसारित गीतों के कार्यक्रम को सुनते थे। 1975 में उन्होंने पहला रेडियो सेट खरीदा। आज भी उनके पास तीन अलग-अलग कंपनियों के रेडियो सेट हैं। इसे वह अपनी पोती के साथ बैठकर सुनते हैं। बिनाका गीतमाला, विविध भारती उनके पसंदीदा कार्यक्रम रहे। 


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