हाशिमपुरा की तर्ज पर मलियाना कांड के पीड़ितों को कब मिलेगा न्याय
हाशिमपुरा कांड के पीड़ितों को तो न्याय मिल गया है लेकिन मलियाना कांड के पीड़ितों को न्याय का इंतजार है।
मेरठ : हाशिमपुरा कांड के पीड़ितों को तो न्याय मिल गया है, लेकिन मलियाना कांड के पीड़ितों को 32 साल बाद न्याय कब मिलेगा? इतने साल बाद, जबकि आरोपितों और गवाहों में एक चौथाई लोग परलोक सिधार चुके हैं। मौजूद लोगों में न्याय की आस ही खत्म हो चुकी है।
वर्ष 1987 के 22 मई का दिन हाशिमपुरा के लोगों के जेहन में ताजा है। 70 वर्षीय शमशुद्दीन बताते हैं कि हाशिमपुरा को दो भागों में बांटने वाली पतली सी गली उस दिन फोर्स के जवानों के बूटों की खटपट से थर्रा रही थी। बताया कि छह ट्रकों में लोगों को भरकर ले जाया गया था। पहले उन्हें पुलिस लाइन और फिर सिविल लाइंस थाना ले जाया गया। दोनों जगह उनकी और उनके साथ गए लोगों की जमकर पिटाई हुई। अब्दुल्लापुर जेल पहुंचे तो लाइन में चल रहे थे, जबकि दोनो ओर खड़े लोग हाथ में डंडे लेकर पिटाई कर रहे थे। पिटाई में उनका हाथ भी टूट गया था। उस वाकये को याद कर आज भी सिहर उठते हैं।
आज भी कांप उठती है रूह
जेल भेजने के बाद हाशिमपुरा से गिरफ्तार किए गए 48 लोगों को ट्रक में भरकर मुरादनगर के पास गंगनहर ले जाया गया था, जहां पीएसी के जवानों ने उन पर फायरिग की थी। हाशिमपुरा इंसाफ कमेटी के अध्यक्ष जुल्फिकार नासिर ने बताते हैं कि फायरिग में 43 लोग मारे गए थे और पांच किसी तरह बच गए थे। बच गए लोगों में एक वह भी हैं। उनकी बगल से होकर गोली निकल गई थी। वह बेहोश हो गए थे। उन्हें मरा समझकर लोग चले गए थे। किसी तरह उन्होंने जान बचाई थी।
सुप्रीम कोर्ट का नोटिस मिला है
हाशिमपुरा कांड में दिल्ली हाईकोर्ट में अपील करने वाले जुल्फिकार ने बताया कि उन्हें और मामले के अन्य लोगो को सुप्रीम कोर्ट की ओर से चार नोटिस मिले हैं। यह नोटिस उम्रकैद की सजा पाए पीएसी के जवानों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में उनको हुई सजा के खिलाफ की गई अपील के क्रम में हैं। उन्होंने कहा कि न्याय तो मिला, लेकिन ऐसे जघन्य अपराध के लिए यह सजा कम है और कड़ी सजा मिलनी चाहिए। उम्र के आखिरी पड़ाव पर उन्हें सजा हुई है। अपराध करने के बावजूद उन्होंने अपनी नौकरी पूरी की है। उनकी पेंशन बंद होनी चाहिए और वेतन की रिकवरी होनी चाहिए।
मलियाना कांड की मूल एफआइआर गायब
हाशिमपुरा कांड के दूसरे दिन ही मलियाना गांव में दंगाइयों ने हमला कर दिया था। इलाके को घेर कर चारो ओर से हमला बोला गया था। शेखान का चौक में अपने पुराने मकान का जीर्णोद्धार करा रहे याकूब ने बताया कि हमले में उनके भांजे गुलफाम की मौत हो गई थी। चौक का नजारा बेहद डरावना था। हर तरफ घर जल रहे थे, कितने लोग मरे होंगे अंदाजा लगाना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि अभी तक गवाहों के बयान नहीं हो पाए हैं, इतने सालों बाद अब तो न्याय की आस भी खत्म हो चली है।
मेरठ कोर्ट में चल रही सुनवाई में पीड़ितों की ओर मुकदमा लड़ रहे एडवोकेट अलाउद्दीन सिद्दीकी ने बताया कि घटना में मारे गए 37 लोगों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट उनके पास है। 24 घायल हैं। 91 लोगों को आरोपी बनाया गया था। इस मामले में एफआइआर की मूल प्रति गायब है, जिसके आधार पर दूसरे पक्ष की ओर से सुनवाई में अड़ंगा लगाया जाता रहा है। पिछले छह माह से मामले को ऐसी कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया जहां जज ही नहीं थे। अभी तक केवल आठ लोगों की गवाही हुई है। एक चौथाई गवाह और आरोपी तो मर चुके हैं। इस मामले में जिला जज से गुजारिश है कि इसकी नियमित सुनवाई कराएं। टीपीनगर थाने के माध्यम से गवाहों को कोर्ट में बुलवाया जाए। हमारे मलियाना में झगड़ा नहीं होता
23 मई, 1987 से लगभग 10 दिन पहले मोहम्मद यामीन कानपुर गए थे। वह ग्राइंडिंग के काम आने वाले पत्थरों की सप्लाई करते थे। 22 मई को जुमे की नमाज पढ़ कर वह जाने लगे तो वहां पर लोगों ने कहा कि मेरठ में दंगा हो गया है कर्फ्यू लगा है, लेकिन यामीन यह कहते हुए ट्रेन में बैठ गए कि दंगा मेरठ में हुआ है हमारे मलियाना में कुछ नहीं होता है। 23 को हुए फसाद में उनका बेटा रईस और अमीर अहमद घायल हो गए। यामीन की पत्नी अनवरी (85) ने बताया कि दस दिन तक जब वह नहीं लौटे तो कानपुर में पता किया तो लोगों ने बताया कि वह तो 22 को ही चले गए थे। अनवरी ने बताया कि बाद में पता चला कि मलियाना आने वाले रास्ते में ही वह दंगाइयों का शिकार हो गए थे।