Kargil Vijay diwas Story: पाकिस्तान के बंकर में दुश्मन के राशन से भारतीय फौज ने उड़ाई जीत की दावत
कुछ यादें ऐसी होती हैं जो जींवत भर याद रहती हैं और अगर कारगिल से जुड़ा हो तो इसकी बात ही निराली होगी। ऐसी एक याद तब की है जब दुश्मन के राशन से भारतीय फौज ने चखी थी जीत की दावत।
रवि प्रकाश तिवारी, मेरठ। यूं तो दुश्मन से जीतकर ही पेट भर जाता है, लेकिन दुश्मन को जहन्नुम में पहुंचाने के बाद अगर उन्हीं के राशन से जठराग्नि भी बुझ जाए तो बात ही कुछ और है। देखने-सुनने में तो यह किसी फिल्म का दृश्य जैसा लगता है, लेकिन सरहद के रखवाले वीर सैनिकों ने आज से 21 साल पहले कुछ ऐसी ही जांबाजी का परिचय दिया था।
कारगिल युद्ध के दौरान द्रास सेक्टर में पाकिस्तानी लड़ाकों से प्वाइंट 4875 का कब्जा छीनने के बाद 2 नागा के जवानों ने जीत की ऐसी दावत चखी कि वह इतिहास बन गई। आज भी उस गौरवमयी क्षण को याद करते हुए कारगिल युद्ध में 2 नागा को कमांड कर रहे तत्कालीन कर्नल दिनेश वडोला रोमांचित हो उठते हैं। दैनिक जागरण से फोन पर बातचीत में वे कहते हैं, च्पाकिस्तान के बंकर में उन्हीं के राशन की पूडिय़ां तलना और सहभोज का वह पल मेरी जिंदगी का सबसे सुखदायी पल बन गया।
बड़ा अहम था प्वाइंट 4875 को जीतना
दिनेश वडोला मेरठ छावनी स्थित चार्जिंग रैम डिविजन में डिप्टी जीओसी रह चुके हैं। डीएससी (डिफेंस सर्विसेज कोर) के डिप्टी डायरेक्टर जनरल पद से रिटायर होने के बाद उन्होंने सीमा सुरक्षा बल के लिए भी सेवाएं दीं। कारगिल युद्ध की यादों के पन्ने पलटते हुए रि. ब्रिगेडियर वडोला बताते हैं कि जब 13 जैक राइफल्स और 17 जाट रेजीमेंट के साथ मिलकर दो दिन की जंग के बाद दुश्मन को खदेड़ते हुए सात जुलाई की सुबह हम दुश्मन के मोर्टार पोजिशन पर पहुंचे तो भारी मात्रा में हथियार, कंप्यूटर, किताबें, धर्मिक पुस्तकें, नक्शे और लगभग एक सप्ताह का राशन हमारे हाथ लगा। यहां पाकिस्?तान की 12 नार्दर्न लाइट इंफेंट्री का कब्जा था। इस चोटी पर भारतीय फौज ने चढ़कर पाया कि यहां से एक ओर मुगलपुरा तो दूसरी ओर कारगिल का 25 किलोमीटर तक का क्षेत्र आसानी से दिखता है। यहां भारतीय फौज ने 20 पाकिस्?तानी घुसपैठियों को मार गिराया था।
जीत की भूख मिटी, पेट की जगी
चूंकि दो दिन से सैनिकों को जीत की भूख थी, जो अब मिट चुकी थी। जैसे ही उन्हें आटा, मक्?खन, चिकन, सूप क्यूब्स आदि दिखे तो उनकी जठराग्नि धधक उठी। राशन इतना था कि एक सप्ताह तक पूरी पलटन का खाना बन जाए। बस फिर क्या था। एम्युनेशन बॉक्स में ही पूडिय़ां तली गईं और भूख मिटाने के साथ ही ऑन द स्पॉट जीत की दावत पूरी यूनिट ने चखी। इसकी बड़ी वजह यह भी थी कि हमारा राशन खत्म हो गया था और आपूर्ति 48 घंटे पीछे थी। ब्रि. वडोला को इस जंग में जांबाजी के लिए युद्ध सेवा पदक से नवाजा गया था।