मेरठ के किसान ग्रुप बनाकर कर रहे हैं यह खेती, बीस गुना लाभ के लिए आप भी करें शुरूआत
पश्चिमी उप्र में किसान जैविक खेती के प्रति जागरूक हुए हैं। सुखद यह है कि मेरठ धीरे-धीरे इसके उत्पादों के बाजार के रूप में तब्दील होता जा रहा है।
By Taruna TayalEdited By: Published: Sun, 10 Feb 2019 05:16 PM (IST)Updated: Sun, 10 Feb 2019 05:30 PM (IST)
मेरठ, [संदीप शर्मा]। स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन और आत्मा निवास करती है। लेकिन आज के दौर में शरीर और मन को स्वस्थ रखना किसी चुनौती से कम नहीं रह गया है। पहले डॉक्टर सलाह देते थे कि घर का बना खाना खाइए तो सेहतमंद रहेंगे। लेकिन आज घर का बना खाना जिन अनाज और सब्जियों से तैयार होता है। उनमें भी खाद औैर कीटनाशकों का जहर घुलता जा रहा है। जैविक खेती इस जहर को दूर कर शुद्ध भोजन घरों तक पहुंचाने की मुहिम का नाम है। यह बेहिसाब रासायनिक खादों और कीटनाशकों का ही दुष्प्रभाव है कि पंजाब में हरित क्रांति से उत्पादन तो कई गुना बढ़ा, लेकिन रोजाना एक कैंसर स्पेशल ट्रेन भी मुंबई के लिए जाती है।
कैसे होती है जैविक खेती की शुरुआत
जैविक खेती शुरू करने के लिए कई किसान (कम से कम पांच) मिलकर एक ग्रुप बनाते हैं। इसके बाद राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र (एनसीओएफ) गाजियाबाद से संबद्ध रीजनल काउंसिल में रजिस्ट्रेशन कराया जाता है। वेस्ट यूपी का रीजनल सेंटर भी गाजियाबाद में ही है। रजिस्ट्रेशन के दौरान तीन फार्म भरे जाते हैं। इसमें पहला ग्रुप लीडर भरता है। दूसरा किसानों और तीसरा शपथ-पत्र भरा जाता है, जिसमें कीटनाशक और रासायनिक खाद का उपयोग नहीं करने की शपथ लेनी होती है। हर ग्रुप का एक नाम होता है, जिसे रीजनल सेंटर एक कोड देता है। कोड मिलते ही ग्रुप को पंजीकृत माना जाता है। रजिस्ट्रेशन के बाद क्षेत्र की रीजनल काउंसिल ट्रेनिंग किसानों को जैविक खेती की ट्रेनिंग देती है। इसमें किसानों को आम खेती और जैविक खेती का अंतर, खेती करने का तरीका, उत्पाद बेचने की मार्केर्टिंग, फसल चक्र बदलना, बहुफसली प्रशिक्षण आदि सिखाया जाता है।
पीजीएस के तहत लिखनी होती है हर प्रक्रिया
रजिस्ट्रेशन के बाद किसान को राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र (एनसीओएफ) के निर्धारित पीजीएस (पार्टिसिपेटरी गारंटी सिस्टम) की प्रक्रिया से गुजरना होता है। जैविक खेती शुरू करने के बाद बीज कहां से लिया, पानी कब दिया, जैविक खाद कब और कितना, सिंचाई का ब्योरा लिख जाता है। एक साल खेती करने के बाद इसका पहला सर्टिफिकेशन पीजीएस ग्रीन मिलता है। तीन साल के बाद फाइनल सर्टिफिकेट मिलता है, जिसे पीजीएस इंडिया ऑर्गेनिक कहते हैं। इसके बाद किसान को उत्पाद को जैविक के नाम पर बेचने की अनुमति मिल जाती है। यह समय-समय पर रीजनल काउंसिल को ऑनलाइन भेजना पड़ता है। जैविक खेती करने वाले हर ग्रुप को खेती के दौरान अपनाई गई हर प्रक्रिया को पीजीएस इंडिया की साइट पर अपडेट कराना होता है। इसमें जैविक खाद, पानी की मात्रा के वीडियो भी अपलोड किए जाते हैं। तीसरे साल के बाद खेती से उगाए गए उत्पाद जैविक उत्पाद की श्रेणी में आ जाते हैं। अगर जैविक के नाम पर बेचे गए उत्पाद सही नहीं मिलते तो रजिस्ट्रेशन कैंसिल होने के साथ ही अर्थदंड और सजा का भी प्रावधान है। किसान या उत्पाद जैविक है या नहीं इसकी जानकारी पीजीएस के पोर्टल से ली जा सकती है।
लोगों के पास पैसा खूब, लेकिन शुद्ध खाना नहीं
दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, बंगलुरु, हैदराबाद, पुणे, इंदौर, रांची, लखनऊ, कानपुर, मेरठ सहित देश में कई शहर र्आिर्थक दृष्टि से संपन्न तो हैं, लेकिन इनके पास शुद्ध भोजन नहीं है। बीस-तीस साल पहले तक बड़े उद्योगपति और धनाढ्य लोग अपनी जमीन खरीदकर बिना रासायनिक खाद और कीटनाशकों से तैयार अनाज, फल, सब्जियां, दूध आदि का उपयोग करते थे। लेकिन हर पैसे वाले के लिए यह लंबी और खर्चीली प्रक्रिया अपनाना संभव नहीं है। देश में ऑगेनिक सिस्टम आने के बाद लोग शुद्ध भोजन की व्यवस्था कर सकते हैं। सरकारें भी जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए शिक्षण, प्रशिक्षण, सब्सिडी दे रही हैं। डेढ़ या दोगुना कीमत ज्यादा चुकाकर शुद्धता से लबरेज जैविक उत्पादों को खरीदना लोग घाटे का सौदा नहीं मान रहे हैं।
महाराष्ट्र के बाद वेस्ट यूपी जैविक खेती के लिए बेस्ट
जैविक खेती का चलन देश में महाराष्ट्र के बाद वेस्ट यूपी में ही तेजी से बढ़ा है। आम किसान से लेकर आइटी, मैनेजमेंट तक की भारी भरकम पैकेज वाली नौकरियां छोडऩे वाले किसान जैविक खेती में हाथ आजमा रहे हैं। सरकार का प्रोत्साहन, जैविक खेती के बढ़ते बाजार से जैविक खेती करने वाले किसानों और इसके ग्राहकों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। बुलंदशहर जिला जैविक खेती में इस वक्त सबसे बुलंद है। साथ ही मेरठ, बागपत, मुजफ्फरनगर, शामली, बिजनौर, हापुड़ जैसे पश्चिम के जिलों में खूब जैविक खेती हो रही है। इन जिलों से रोजाना काफी संख्या में किसानों के ग्रुप रजिस्ट्रेशन करा रहे हैं।
जैविक खेती ने भारत भूषण को बनाया पद्मश्री
बुलंदशहर के स्याना क्षेत्र के बीहटा गांव निवासी भारत भूषण त्यागी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से 70 के दशक में बीएससी की थी। इसके बाद भारत भूषण त्यागी के पिता ने उन्हें पढ़-लिखकर नौकर नहीं, मालिक बनने की हिदायत दी थी। इसी पर अमल करते हुए त्यागी ने 1987 में जैविक खेती की विधिवत शुरुआत की। आज भारत भूषण से ट्रेनिंग लेकर देशभर के लाखों किसान जैविक खेती कर रहे हैं।
जैविक खेती ने छुड़वाया मल्टीनेशनल कंपनी का मोह
एक मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर के ओहदा से भी मवाना क्षेत्र के किसान केपी सिंह संतुष्ट नहीं थे। इसके बाद उन्होंने पुश्तैनी जमीन पर अलग तरह से खेती की सोची। ग्रुप बनाया और जैविक खेती शुरू कर दी। आज गेहूं, मक्का, धान जैसे अनाज उगाते हैैं। केपी सिंह की उगाई सब्जियां भी भारी डिमांड में है। मेरठ में साकेत, मंगलपांडे नगर, डिफेंस में सब्जियों के नियमित ग्राहक हैं।
समरपाल ने बिस्किट की शेप में गुड़ बनाया, खूब नाम कमाया
बिजनौर से करीब आठ किमी दूरी पर बसे लालपुर गांव के निवासी समरपाल सिंह जैविक ढंग से उगाए गन्नों से खुद के कोल्हू पर गुड़ तैयार कराते हैं। बिस्किट की शेप में बनाए गए इस गुड़ को वह दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, भोपाल, मेरठ, कानपुर जैसे शहरों में सप्लाई करते हैं। आम गुड़ से दोगुनी कीमत के बावजूद डिमांड इतनी है कि करीब एक महीना पहले ऑर्डर करना पड़ता है।
धैर्य के बाद ही मिलता है फल : दत्ता
जैविक खेती के विशेषज्ञ और भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान मोदीपुरम में वैज्ञानिक डॉ. देवाशीष दत्ता ने बताया कि शुरुआत दौर तीन वर्षों में बहुत धैर्य रखना पड़ता है। लेकिन चौथे साल से अच्छा खासा मुनाफा मिलने लगता है। जैविक खेती दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।
तीन साल में 20 गुणा बढ़ा व्यापार: अजय त्यागी
आइटी कंपनी से साफ्टवेयर इंजीनियर की अच्छी खासी पैकेज वाली नौकरी छोड़कर जैविक उत्पादों के व्यापार और खेती में आए अजय त्यागी ने बताया कि तीन साल में इसका व्यापार 20 गुणा तक बढ़ गया है।
धार्मिक संगठन बढ़ा रहे जैविक क्रांति को आगे
जैविक उत्पादों के उत्पादन, प्रचार-प्रसार और मार्केटिंग में धार्मिक संगठन विशेष भूमिका निभा रहे हैं। आर्ट ऑफ लिविंग, ब्रह्मकुमारी, विश्व जाग्रति मिशन, पतंजलि सहित कई धार्मिक संस्थान खुद के तैयार जैविक उत्पाद बेच रहे हैं। ये संस्थान किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित भी कर रहे हैं। सुधांशु जी महाराज की संस्था विश्व जाग्रति मिशन के मंडल प्रभारी मनोज शास्त्री ने बताया कि जैविक उत्पाद आज की जरूरत हैं। मिशन किसानों को जैविक खेती में मदद भी कर रहा है।
कैसे होती है जैविक खेती की शुरुआत
जैविक खेती शुरू करने के लिए कई किसान (कम से कम पांच) मिलकर एक ग्रुप बनाते हैं। इसके बाद राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र (एनसीओएफ) गाजियाबाद से संबद्ध रीजनल काउंसिल में रजिस्ट्रेशन कराया जाता है। वेस्ट यूपी का रीजनल सेंटर भी गाजियाबाद में ही है। रजिस्ट्रेशन के दौरान तीन फार्म भरे जाते हैं। इसमें पहला ग्रुप लीडर भरता है। दूसरा किसानों और तीसरा शपथ-पत्र भरा जाता है, जिसमें कीटनाशक और रासायनिक खाद का उपयोग नहीं करने की शपथ लेनी होती है। हर ग्रुप का एक नाम होता है, जिसे रीजनल सेंटर एक कोड देता है। कोड मिलते ही ग्रुप को पंजीकृत माना जाता है। रजिस्ट्रेशन के बाद क्षेत्र की रीजनल काउंसिल ट्रेनिंग किसानों को जैविक खेती की ट्रेनिंग देती है। इसमें किसानों को आम खेती और जैविक खेती का अंतर, खेती करने का तरीका, उत्पाद बेचने की मार्केर्टिंग, फसल चक्र बदलना, बहुफसली प्रशिक्षण आदि सिखाया जाता है।
पीजीएस के तहत लिखनी होती है हर प्रक्रिया
रजिस्ट्रेशन के बाद किसान को राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र (एनसीओएफ) के निर्धारित पीजीएस (पार्टिसिपेटरी गारंटी सिस्टम) की प्रक्रिया से गुजरना होता है। जैविक खेती शुरू करने के बाद बीज कहां से लिया, पानी कब दिया, जैविक खाद कब और कितना, सिंचाई का ब्योरा लिख जाता है। एक साल खेती करने के बाद इसका पहला सर्टिफिकेशन पीजीएस ग्रीन मिलता है। तीन साल के बाद फाइनल सर्टिफिकेट मिलता है, जिसे पीजीएस इंडिया ऑर्गेनिक कहते हैं। इसके बाद किसान को उत्पाद को जैविक के नाम पर बेचने की अनुमति मिल जाती है। यह समय-समय पर रीजनल काउंसिल को ऑनलाइन भेजना पड़ता है। जैविक खेती करने वाले हर ग्रुप को खेती के दौरान अपनाई गई हर प्रक्रिया को पीजीएस इंडिया की साइट पर अपडेट कराना होता है। इसमें जैविक खाद, पानी की मात्रा के वीडियो भी अपलोड किए जाते हैं। तीसरे साल के बाद खेती से उगाए गए उत्पाद जैविक उत्पाद की श्रेणी में आ जाते हैं। अगर जैविक के नाम पर बेचे गए उत्पाद सही नहीं मिलते तो रजिस्ट्रेशन कैंसिल होने के साथ ही अर्थदंड और सजा का भी प्रावधान है। किसान या उत्पाद जैविक है या नहीं इसकी जानकारी पीजीएस के पोर्टल से ली जा सकती है।
लोगों के पास पैसा खूब, लेकिन शुद्ध खाना नहीं
दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, बंगलुरु, हैदराबाद, पुणे, इंदौर, रांची, लखनऊ, कानपुर, मेरठ सहित देश में कई शहर र्आिर्थक दृष्टि से संपन्न तो हैं, लेकिन इनके पास शुद्ध भोजन नहीं है। बीस-तीस साल पहले तक बड़े उद्योगपति और धनाढ्य लोग अपनी जमीन खरीदकर बिना रासायनिक खाद और कीटनाशकों से तैयार अनाज, फल, सब्जियां, दूध आदि का उपयोग करते थे। लेकिन हर पैसे वाले के लिए यह लंबी और खर्चीली प्रक्रिया अपनाना संभव नहीं है। देश में ऑगेनिक सिस्टम आने के बाद लोग शुद्ध भोजन की व्यवस्था कर सकते हैं। सरकारें भी जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए शिक्षण, प्रशिक्षण, सब्सिडी दे रही हैं। डेढ़ या दोगुना कीमत ज्यादा चुकाकर शुद्धता से लबरेज जैविक उत्पादों को खरीदना लोग घाटे का सौदा नहीं मान रहे हैं।
महाराष्ट्र के बाद वेस्ट यूपी जैविक खेती के लिए बेस्ट
जैविक खेती का चलन देश में महाराष्ट्र के बाद वेस्ट यूपी में ही तेजी से बढ़ा है। आम किसान से लेकर आइटी, मैनेजमेंट तक की भारी भरकम पैकेज वाली नौकरियां छोडऩे वाले किसान जैविक खेती में हाथ आजमा रहे हैं। सरकार का प्रोत्साहन, जैविक खेती के बढ़ते बाजार से जैविक खेती करने वाले किसानों और इसके ग्राहकों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। बुलंदशहर जिला जैविक खेती में इस वक्त सबसे बुलंद है। साथ ही मेरठ, बागपत, मुजफ्फरनगर, शामली, बिजनौर, हापुड़ जैसे पश्चिम के जिलों में खूब जैविक खेती हो रही है। इन जिलों से रोजाना काफी संख्या में किसानों के ग्रुप रजिस्ट्रेशन करा रहे हैं।
जैविक खेती ने भारत भूषण को बनाया पद्मश्री
बुलंदशहर के स्याना क्षेत्र के बीहटा गांव निवासी भारत भूषण त्यागी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से 70 के दशक में बीएससी की थी। इसके बाद भारत भूषण त्यागी के पिता ने उन्हें पढ़-लिखकर नौकर नहीं, मालिक बनने की हिदायत दी थी। इसी पर अमल करते हुए त्यागी ने 1987 में जैविक खेती की विधिवत शुरुआत की। आज भारत भूषण से ट्रेनिंग लेकर देशभर के लाखों किसान जैविक खेती कर रहे हैं।
जैविक खेती ने छुड़वाया मल्टीनेशनल कंपनी का मोह
एक मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर के ओहदा से भी मवाना क्षेत्र के किसान केपी सिंह संतुष्ट नहीं थे। इसके बाद उन्होंने पुश्तैनी जमीन पर अलग तरह से खेती की सोची। ग्रुप बनाया और जैविक खेती शुरू कर दी। आज गेहूं, मक्का, धान जैसे अनाज उगाते हैैं। केपी सिंह की उगाई सब्जियां भी भारी डिमांड में है। मेरठ में साकेत, मंगलपांडे नगर, डिफेंस में सब्जियों के नियमित ग्राहक हैं।
समरपाल ने बिस्किट की शेप में गुड़ बनाया, खूब नाम कमाया
बिजनौर से करीब आठ किमी दूरी पर बसे लालपुर गांव के निवासी समरपाल सिंह जैविक ढंग से उगाए गन्नों से खुद के कोल्हू पर गुड़ तैयार कराते हैं। बिस्किट की शेप में बनाए गए इस गुड़ को वह दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, भोपाल, मेरठ, कानपुर जैसे शहरों में सप्लाई करते हैं। आम गुड़ से दोगुनी कीमत के बावजूद डिमांड इतनी है कि करीब एक महीना पहले ऑर्डर करना पड़ता है।
धैर्य के बाद ही मिलता है फल : दत्ता
जैविक खेती के विशेषज्ञ और भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान मोदीपुरम में वैज्ञानिक डॉ. देवाशीष दत्ता ने बताया कि शुरुआत दौर तीन वर्षों में बहुत धैर्य रखना पड़ता है। लेकिन चौथे साल से अच्छा खासा मुनाफा मिलने लगता है। जैविक खेती दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।
तीन साल में 20 गुणा बढ़ा व्यापार: अजय त्यागी
आइटी कंपनी से साफ्टवेयर इंजीनियर की अच्छी खासी पैकेज वाली नौकरी छोड़कर जैविक उत्पादों के व्यापार और खेती में आए अजय त्यागी ने बताया कि तीन साल में इसका व्यापार 20 गुणा तक बढ़ गया है।
धार्मिक संगठन बढ़ा रहे जैविक क्रांति को आगे
जैविक उत्पादों के उत्पादन, प्रचार-प्रसार और मार्केटिंग में धार्मिक संगठन विशेष भूमिका निभा रहे हैं। आर्ट ऑफ लिविंग, ब्रह्मकुमारी, विश्व जाग्रति मिशन, पतंजलि सहित कई धार्मिक संस्थान खुद के तैयार जैविक उत्पाद बेच रहे हैं। ये संस्थान किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित भी कर रहे हैं। सुधांशु जी महाराज की संस्था विश्व जाग्रति मिशन के मंडल प्रभारी मनोज शास्त्री ने बताया कि जैविक उत्पाद आज की जरूरत हैं। मिशन किसानों को जैविक खेती में मदद भी कर रहा है।
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