वेस्ट एंड रोड बना था अंग्रेजों के लिए सेफ पैसेज
1857 की क्रांति की उस शाम जब सदर स्ट्रीट में बागवत की ज्वाला धधकने लगी थी और अंग्रेजों पर हमले शुरू हो गए, उस वक्त वेस्ट एंड रोड उनकेलिए सेफ पैसेज बना। वेस्ट एंड रोड के किनारों पर ही अंग्रेज अफसरों के बंगले भी थे।
मेरठ । 1857 की क्रांति की उस शाम जब सदर स्ट्रीट में बागवत की ज्वाला धधकने लगी थी और अंग्रेजों पर हमले शुरू हो गए, उस वक्त वेस्ट एंड रोड उनकेलिए सेफ पैसेज बना। वेस्ट एंड रोड के किनारों पर ही अंग्रेज अफसरों के बंगले भी थे। एक आत्मकथा में उस शाम वेस्ट एंड रोड पर घटी पूरी घटना का विवरण भी है। आज वेस्ट एंड रोड के कई बंगले स्कूलों में तब्दील हो चुके हैं लेकिन उस जमाने की गलियां और कई इमारतें आज भी मिलती हैं। आइए..आज वेस्ट एंड रोड के सफर पर निकलते हैं.. 1857 में इस सड़क के दोनों किनारों पर भारतीय सिपाहियों के रेजीमेंट के अंग्रेज अफसरों के बंगले हुआ करते थे। जैसे आज बाजार से कई छोटी गलियां इस सड़क को जोड़ती है, यह तस्वीर लगभग उस समय भी ऐसी ही थी।
मई की भीषण गर्मी की वजह से चर्च सेवाएं बंद कर दी गई थीं, लिहाजा 10 मई, 1857 की शाम को मेरठ छावनी के दूसरे हिस्से, जहां केवल अंग्रेजी अफसरों की बसावट थी वहां के लोग भी वेस्ट एंड रोड पर घूमने-फिरने के लिए निकले थे। तभी शाम को सदर बाजार में बगावत की चिंगारी फूटी और बड़ी संख्या में अंग्रेज परिवार क्रांतिकारियों की चपेट में आ गए।
आत्मकथा में बयां किया वह मंजर
कई लोग जो उस शाम सदर बाजार और आसपास के इलाकों में फंस गए थे, उनमें से दो महिलाओं ने आंखों देखा हाल बयां किया है। एक तीसरी भारतीय अश्वारोही सेना के अंग्रेज अफसर कैप्टन क्रेगी की पत्नी और दूसरी लेफ्टिनेंट मैकेंजी की बहन थी। वे लिखती हैं कि जैसे ही माहौल बदला हुआ समझ में आया तो उनके कोचवान ने उनकी बग्गी उनके बंगले की ओर मोड़ा जो कि वेस्ट एंड रोड के दक्षिणी छोर पर था। इतने में उन्हें सदर बाजार की एक गली से दौड़ता हुआ ड्रैगून गार्ड का एक सैनिक भागता हुआ दिखा। महिलाओं ने यह देख अपने कोचवान को बग्गी धीमी करने के लिए कहा ताकि वह सैनिक भी चढ़ जाए और उसकी जान बच जाए। इतने में भीड़ भी इतनी करीब आ चुकी थी कि उनकी नंगी तलवारें गाड़ी की म्यान को भी काट सकती थीं।