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जिला अस्पताल में कुत्ते और मेडिकल में बंदर..शर्मनाक है

आवारा कुत्तों और बंदरों का शहर में आतंक है। जहां देखिए वहीं लोग इनके खौफ में जीने को मजबूर हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 18 Apr 2019 06:00 AM (IST)Updated: Thu, 18 Apr 2019 06:13 AM (IST)
जिला अस्पताल में कुत्ते और मेडिकल में बंदर..शर्मनाक है
जिला अस्पताल में कुत्ते और मेडिकल में बंदर..शर्मनाक है

मेरठ । आवारा कुत्तों और बंदरों का शहर में आतंक है। जहां देखिए, वहीं लोग इनके खौफ में जीने को मजबूर हैं। अस्पताल भी इनकी पहुंच से दूर नहीं हैं। बावजूद इसके परिसर में इनकी रोकथाम नहीं हो रही।

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मेडिकल कॉलेज परिसर में बंदर सुबह से शाम तक मरीजों, तीमारदारों और मेडिकल स्टॉफ के उछल-कूद करते रहते हैं। ओपीडी के बरामदे की जालियों पर निडर होकर बैठे रहते हैं। मरीजों को इसी रास्ते से ओटी ले जाया जाता है। अक्सर तीमारदारों के हाथ में सामान देखकर बंदर झपट्टा मारते हैं। पीडियाट्रिक वार्ड, मेडिकल वार्ड और इमरजेंसी के आसपास बंदरों के झुंड दिनभर घूमते रहते हैं। बंदरों से भयभीत मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने वन विभाग और नगर निगम को पत्र लिखकर निजात दिलाने की गुहार लगाई थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ।

उधर, जिला अस्पताल में बंदरों की उछलकूद थोड़ा कम हुई तो आवारा कुत्तों ने इमरजेंसी और बच्चा वार्ड में शरण ले ली है। आवारा कुत्ते मरीजों के बीच घूमते रहते हैं। यह हालात व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करते हैं। जहां लोग रैबीज का इंजेक्शन लगवाने के लिए आते हैं, वहीं पर उन्हें आवारा कुत्तों से रूबरू होना पड़ता है।

..जब वार्ड में घुस गए थे बंदर

अगस्त 2018 में बंदरों ने जिला अस्पताल में खूब आतंक मचाया था। बंदर पुरुष सर्जिकल वार्ड में घुस गए थे। वार्ड में लगी ऑक्सीजन पाइप खींच ले गए थे। अस्पताल प्रशासन को वार्ड ब्वॉय मरीजों की सुरक्षा में लगाने पड़े थे। इन्होंने कहा--

बंदर बहुत हैं। सुरक्षा के लिए वार्डो की टूटी खिड़कियों में जाली लगवा रहे हैं। पर, खतरे से इंकार नहीं किया जा सकता है। बंदर रैबीज संक्रमण का प्रमुख कारण हैं। यह जानते हुए भी इनकी रोकथाम संभव नहीं हो पा रही है। नगर निगम और वन विभाग से मदद मांगी गई थी, लेकिन अभी तक हुआ कुछ नहीं। लंगूर बुलाकर भगाने की कोशिश करते हैं।

डॉ. धीरज बालियान, सीएमएस, मेडिकल कॉलेज बंदरों और आवारा कुत्तों के आतंक को अस्पताल परिसर में रोक ने के लिए नगर निगम और वन विभाग से मदद मांगी थी। नगर निगम ने आवारा कुत्तों को पकड़ा भी था, लेकिन पशु क्रूरता अधिनियम के चलते आगे कार्रवाई नहीं की गई। सुरक्षा की दृष्टि से अस्पताल में वार्ड ब्वॉय को लाठी दी गई थी। पर, यह स्थायी समाधान नहीं है।

डॉ. पीके बंसल, प्रमुख अधीक्षक, जिला अस्पताल आवारा कुत्तों की नसबंदी कराई जा रही है। एनिमल केयर सोसायटी को जिम्मा दिया गया है। रही बात बंदरों की तो अभी इनके लिए कोई प्लान नहीं बनाया गया है। यह बात सही है कि बंदरों का आतंक भी शहर में बढ़ गया है। लोगों पर हमला कर रहे हैं। इस पर निर्णय लेने की जरूरत है।

डॉ. गजेंद्र सिंह, नगर स्वास्थ्य अधिकारी


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