विश्व में खाद्यान का प्रमुख स्रोत बन गया है गेहूं : डा. विक्रम सिंह गिल
विश्व में गेहूं खाद्यान का एक प्रमुख स्रोत बन गया है। इस प्रजाति को इस तरह से विकसित करने की जरूरत है जिससे उसमें किसी भी तरह का रोग न लगे और उसकी उपज को भी बढ़ाया जा सके। चौ. चरण ंिसंह विवि के अनुवांशिकी और पादक प्रजनन विभाग की ओर से आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी में यह बात वक्ताओं ने कही।
मेरठ। विश्व में गेहूं खाद्यान का एक प्रमुख स्रोत बन गया है। इस प्रजाति को इस तरह से विकसित करने की जरूरत है जिससे उसमें किसी भी तरह का रोग न लगे और उसकी उपज को भी बढ़ाया जा सके। चौ. चरण ंिसंह विवि के अनुवांशिकी और पादक प्रजनन विभाग की ओर से आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी में यह बात वक्ताओं ने कही।
हंड्रेड इयर्स आफ व्हीट साइटोजेनेटिक्स- इट्स इंपैक्ट आन क्राप इंप्रूवमेंट विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि कैनसेस स्टेट यूनिवर्सिटी अमेरिका के डा. विक्रम सिंह गिल ने साइट्रोजेनेटिक्स विज्ञान के उद्भव और विकास पर चर्चा की। उन्होंने लैमार्क और डार्विन के सिद्धांत को साइट्रोजेनेटिक्स विषय से जोड़ा। वर्तमान में गेहूं को और अधिक बेहतर कैसे बनाए उसके विषय में बताया। उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए वैश्विक तरीकों को अपनाने पर जोर दिया। सीसीएसयू के कुलपति प्रो. एनके तनेजा ने अध्यक्षीय संबोधन में जीनोम रिसर्च, इनफार्मेशन कम्युनिकेशन तकनीकी को साथ लेते हुए शोध को समाजहित में करने का सुझाव दिया। उन्होंने संगोष्ठी में होने वाले व्याख्यानों को संकलित कर उत्तर प्रदेश और भारत सरकार को भेजने के लिए प्रेरित किया। प्रो. पीके शर्मा ने सिम्पोजियम और साइटोजेटिक्स की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। प्रो. पीके गुप्ता ने मुख्य वक्ता प्रो. विक्रम सिंह गिल का परिचय दिया। विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र गौरव स्वागत किया। शोधार्थी ज्ञानिका शुक्ला ने मंच का संचालन किया। संगोष्ठी में प्रतिकुलपति प्रो. एचएस सिंह, प्रो. वाई विमला, प्रो. दिनेश कुमार, प्रो. बीरपाल सिंह आदि उपस्थित रहे। रविवार का संगोष्ठी में हंगरी से डा. इस्वान मोलनर, डा. इकटेरिना बडेबा, डा. वोजटेक पोलवस्की, डा. प्रवीन चुनेजा, डा. मनोज प्रसाद, डा. संदीप शर्मा रविवार को तकनीकी सत्र में अपना शोध प्रस्तुत करेंगे।
अनुसंधान का शताब्दी वर्ष
सिम्पोजियम की आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रो. पीके शर्मा ने कहा कि वर्ष 1918 में जापानी वैज्ञानिक डा. साकामूरा ने गेहूं में गुणसूत्रों की संख्या की खोज की। इसलिए 2018 गेहूं में साइटोजीमिक्स अनुसंधान का शताब्दी वर्ष है। साइटोजीमिक्स की वजह से गेहूं और अन्य फसलों का पैदावार और गुणवत्ता में सुधार होगा। जिससे भविष्य में बढ़ती जनसंख्या को खाद्यान की कमी नहीं होगी।