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कांवड़ यात्रा : शिव ने भरी झोली, भक्तों ने जेब खोली Meerut News

शिव ने भक्तों की झोली भरी तो भक्तों ने भी आराध्य को खुश करने के लिए जेब खोलने में कोई संकोच नहीं किया। शिव के इन भक्तों के लिए कांवड़ केवल साधना ही नहीं बल्कि उत्सव भी है।

By Edited By: Published: Mon, 29 Jul 2019 05:00 AM (IST)Updated: Mon, 29 Jul 2019 05:00 AM (IST)
कांवड़ यात्रा : शिव ने भरी झोली, भक्तों ने जेब खोली  Meerut News
कांवड़ यात्रा : शिव ने भरी झोली, भक्तों ने जेब खोली Meerut News

मेरठ, [प्रदीप द्विवेदी] । शिव ने भक्तों की झोली भरी तो भक्तों ने भी आराध्य को खुश करने के लिए जेब खोलने में कोई संकोच नहीं किया। शिव के इन भक्तों के लिए कांवड़ केवल साधना ही नहीं बल्कि उत्सव भी है। भगवान आशुतोष अपने भक्तों की झोली भर रहे हैं तो कांवड़िये भी इस एतिहासिक यात्रा पर हजारों नहीं लाखों रुपये खर्च करने से जरा भी संकोच नहीं कर रहे हैं।
ढाई हजार से सात लाख रुपये तक खर्च
150 से 550 किमी तक की विश्व की इस सबसे लंबी धार्मिक यात्रा पर ढाई हजार से सात लाख रुपये तक खर्च हो रहे हैं। यही नहीं शिवभक्तों के लिए लगे सेवा शिविरों में तीन दिनों में पांच लाख रुपये तक खर्च हो रहे हैं। सामान्य कांवड़ पर खर्च ढाई हजार कंधे पर सजी-धजी एक कांवड़ और दोनों तरफ गंगाजल की बोतल को सामान्य कांवड़ कहा जाता है। इसकी कीमत करीब 250 रुपये है। 500 से 600 रुपये इसे सजाने पर खर्च होते हैं। हरिद्वार से दिल्ली लौटने में छह दिन लग जाते हैं।
औसत बजट दो से ढाई हजार रुपये
रास्ते में खानपान में भी पैसे खर्च होते हैं। कुछ कांवड़िये शिविरों में खाना नहीं खाते। एक कांवड़िया का औसत बजट दो से ढाई हजार रुपये होता है। कलश कांवड़ पर खर्च पांच हजार कलश कांवड़ लाने वालों के आने-जाने में औसतन पांच हजार रुपये खर्च होते हैं। दोनों तरफ के कलशों की कीमत 1200 से लेकर 2000 रुपये तक होती है। 1.50 से 7.0 लाख रुपये में तैयार होती है डीजे कांवड़ ट्रैक्टर-ट्रॉली के साथ लाई जाने वाली सबसे छोटी कांवड़ में कम से कम डेढ़ लाख रुपये खर्च होते हैं। ट्रैक्टर पर सिर्फ जेनरेटर, डीजे व सामान होते हैं कावड़ अलग होती है। हरिद्वार से मेरठ शहर के अंदर होते हुए दिल्ली तक पहुंचने में डीजे कावंड़ को 10 दिन लगते हैं।
लाइट वाली कांवड़ पर 40 हजार से अधिक खर्च
ट्रैक्टर ट्रॉली वाली डीजे कांवड़ ले जाने वाले ग्रुप में शाहदरा निवासी जटाधारी कांवड़ संघ के मयूर व उनके सात छात्र हैं। उनके अनुसार ट्रैक्टर-ट्रॉली किराया 18 हजार, जेनरेटर किराया 25 हजार, डीजे 20 हजार, ट्रैक्टर पर अब तक डीजल पर खर्च 10 हजार, जेनरेटर पर डीजल खर्च छह हजार। भोले की लाइट वाली कांवड़ पर 40 हजार से अधिक खर्च हुए हैं। साथियों के खाने-पीने का खर्च अलग। कुल बजट करीब डेढ़ लाख रुपये है। ये सभी छात्र हैं। उन्होंने परिजनों से पैसे लिए हैं। मयंक व मोहित के 15 साथियों का दल गुरुग्राम कांवड़ लेकर जा रहा है। इनका बजट करीब सात लाख रुपये पहुंच जाएगा।
किराया ही एक लाख रुपये
सभी साधनों का 10 दिन का किराया देना होता है। इनके डीजे में तमाम तरह की लाइटें हैं और स्पीकर की झंकार ऐसी है, जिससे आसपास की बिल्डिंग कांपती है। इसका किराया ही एक लाख रुपये है। इसे डीसीएम पर सेट किया जाता है। इनमें एक डीसीएम, एक ट्रैक्टर-ट्रॉली व एक कांवड़ वाहन है। जेनरेटर का किराया 1.25 लाख रुपये है। तीनों वाहनों व जेनरेटर के डीजल का खर्च भी है। ट्रैक्टर-ट्रॉली पर नृत्य करते हुए भोले-शंकर की टोली है तो वहीं दूसरे वाहन पर भोलेनाथ की विशाल मूर्ति लगाकर कांवड़ सजाई गई है। इसमें डेढ़ लाख रुपये खर्च हुए हैं।
तीन दिन के भंडारे पर पांच लाख खर्च 
डीजे व जेनरेटर का मैकेनिक भी साथ है। उसका भी मेहनताना है। मूर्ति को वह मंदिर में स्थापित करेंगे। वह व्यापार करते हैं और साल में यही सबसे बड़ा धार्मिक प्रयोजन करते हैं। तीन दिन के भंडारे पर पांच लाख खर्च कांवड़ियों की सेवा के लिए कम से कम तीन दिन का शिविर लगाया जाता है। दिल्ली रोड पर विजया बैंक के सामने लगे शिविर के सहयोगी नरेंद्र सिंह के अनुसार इनमें डीजे भी होता है। तीन दिन का किराया 20 हजार व हलवाई की टीम का मेहनताना भी छूट के बाद 20 हजार होता है।
खुद इस खर्च को वहन करते है
लाइट, टेंट, कुर्सी, जलपान, फल आदि सभी मिलाकर करीब पांच लाख रुपये खर्च हो जाते हैं। वह खुद इस खर्च को वहन करते हैं। कुछ लोग अपने दोस्तों से चंदा लेकर शिविर लगाते हैं। चंदा लेकर शिविर चलाने वाले लोग कम ही हैं। कांवड़ यात्रा की पैदल दूरी हरिद्वार से मेरठ 150 किमी हरिद्वार से दिल्ली 210 किमी हरिद्वार से गुरुग्राम 245 किमी हरिद्वार से श्रीगंगानगर 505 किमी है। 

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