71 के युद्ध के जांबाजों ने पराक्रम को नाम दिया 'बालनोई बटालियन'
वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में पूरब में मिली करारी हार की खीझ निकालने के लिए पाकिस्तानी सेना ने पश्चिम में जोर लगाकर हमला किया। हमले के लिए बालनोई में भारतीय सेना के फॉरवर्ड पोस्ट को निशाना बनाया। पाकिस्तानी सेना की ओर से बार-बार पूरा जोर लगाया गया।
मेरठ । वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में पूरब में मिली करारी हार की खीझ निकालने के लिए पाकिस्तानी सेना ने पश्चिम में जोर लगाकर हमला किया। हमले के लिए बालनोई में भारतीय सेना के फॉरवर्ड पोस्ट को निशाना बनाया। पाकिस्तानी सेना की ओर से बार-बार पूरा जोर लगाया गया। दुश्मन सेना आधे पोस्ट पर कब्जा करने की खुशी का एहसास भी नहीं कर सकी कि भारतीय जांबाजों ने देश की आन बचाने को सर्वस्व न्यौछावर करने के इरादे से प्रतिघात कर किया। तब कंपनी कमांडर रहे मेजर (अब ब्रिगेडियर) जितेंद्र कुमार तोमर ने अपने की पोस्ट पर गोले बरसाने का आदेश देकर दुश्मन को खाक कर दिया।
तीन दिसंबर की वह रात
120 इंफैंट्री ब्रिगेड के अंतर्गत नौवीं राजपुताना राइफल्स की दो कंपनियां केजी सेक्टर के 432 फील्ड में तैनात थीं जबकि एक कंपनी मेजर जेके तोमर की कमान में प्वाइंट 468 व 468 ए पर तैनात थी। तीन दिसंबर 1971 की रात करीब आठ बजे दुश्मन की ब्रिगेड ने पूरी तैयारी से हमला किया। प्रथम दो हमले में आगे बढ़ने में सफल नहीं हो पाने पर रात साढ़े 12 बजे के दुगनी ताकत के साथ दुश्मन लौटा। दुश्मन के भारी गोलीबारी में पोस्ट में रखे सेना के गोले-बारूद में आग लग गई। इसमें चार जवान मारे गए और 10 बुरी तरह झुलस गए थे। पोस्ट का एक हिस्सा दुश्मन के कब्जे में चला गया था।
बालनोई से बढ़ता दुश्मन तो कट जाता पूंछ
बालनोई पर कब्जा करने पर दुश्मन की सेना पूंछ को देश के संपर्क से काटने में सफल हो जाती। 45 लोगों में कुछ शहीद व कुछ जख्मी होने के बाद अन्य के जीवन के साथ ही दुश्मन को रोकने की हूंक भी उठ रही थी। उस लड़ाई में पाकिस्तानी सेना के 42 जवान व दो जेसीओ मारे गए और पाक सेना के 18 आजाद कश्मीर के नायक मो. हजूर को जिंदा भी पकड़ लिया गया था। इस युद्ध के बाद कंपनी कमांडर मेजर जेके तोमर को वीर चक्र और लांस नायक (बाद में सूबेदार मेजर व ऑनरेरी कैप्टन बनकर सेवानिवृत्त) राम पाल को सेना मेडल से नवाजा गया।
नाम मिला 'बालनोई बटालियन'
बटालियन के जांबाजों के पराक्रम को देखते हुए राजपुताना राइफल्स को पांच दिसंबर को युद्ध सम्मान 'बैटल डे बालनोई' के तौर पर मनाने की इजाजत मिली। बाद के दिनों में बटालियन को 'बालनोई बटालियन' ही कहा जाने लगा।
शब्दों में पिरोई युद्ध की दास्तां
ब्रिगेडियर जेके तोमर ने 'ब्रेविंग द ऑड्स' नामक किताब लिखी है जो एक महीने के भीतर प्रकाशित हो सकती है। इसमें उन्होंने 'द बैटल ऑफ बालनोई' में बालनोई के युद्ध को शब्दों में पिरोया है। युद्ध का मंजर शब्दों में साफ तौर पर देखा जा सकता है। इसके साथ ही उन्होंने सैन्य जीवन के दौरान वर्ष 1962 भारत-चीन, 1965 भारत-पाक, 1967 भारत-चीन नाथूला और 1971 भारत-पाक युद्ध के अपने अनुभवों और भारतीय सेना के साहसिक कारनामों को शामिल किया है।