Swatantrata Ke Sarthi: संस्कृति के पालने में निखर रहा विद्यार्थी जीवन, शास्त्रीय गीत और संगीत के प्रति बढ़ता रुझान
देखा जाए तो यह शास्त्रीय गीत संगीत और वाद्ययंत्रों के प्रति बढ़ते रुझान का ही नतीजा है कि स्कूलों में संगीत को विषय के तौर पर लेने वाले छात्रों की संख्या बढ़ रही है।
मेरठ, [अमित तिवारी]। डिस्को, ब्रेक डांस, हिप हॉप आदि के बढ़ते आकर्षण के बीच युवा पीढ़ी में भारतीय सांस्कृतिक विरासत की तरफ झुकाव भी साफ दिख रहा है। शास्त्रीय गीत, संगीत और वाद्ययंत्रों के प्रति बढ़ते रुझान का ही नतीजा है कि स्कूलों में संगीत को विषय के तौर पर लेने वाले छात्रों की संख्या बढ़ रही है। विद्यार्थी महज अंकों की दौड़ में बने रहने के लिए ही नहीं, बल्कि कला के प्रति अपनी इस रुचि को करियर के तौर पर भी देख रहे हैं। इसके पीछे स्पिक मैके का विशेष योगदान है। स्पिक मैके द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में छात्रों को अपने देश की कला से रूबरू होने और कलाकारों से सीधे जुडऩे का अवसर मिल रहा है।
हर साल बढ़ रहा स्कूलों का जुड़ाव
मेरठ में स्पिक मैके (सोसाइटी फॉर प्रमोशन ऑफ इंडियन क्लासिकल म्यूजिक एंड कल्चर अमंगस्ट यूथ) कार्यक्रमों की शुरुआत साल 2000 से जुई। सबसे पहले दीवान पब्लिक स्कूल के पूर्व प्रधानाचार्य एचएम राउत ने असेंबली और वर्कशॉप के जरिए बच्चों को जागरूक किया और उसके बाद कार्यक्रमों में देश के जाने-माने कलाकारों के आगमन से अन्य स्कूलों का रुझान भी बढऩे लगा। अब हर साल मेरठ और आस-पास के जिलों में 20 से अधिक स्पिक मैके कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इनमें हजारों बच्चे हिस्सा लेते हैं। कथक, भरतनाट्यम सहित समस्त प्रदेशों की संस्कृति दिखाने वाले नृत्य, वाद्ययंत्र, गायन के अलावा नाट्य कलाओं से बच्चों को परिचित कराया जाता है।
आश्रम की जीवनशैली में गुरुकुल दर्शन
स्पिक मैके हर साल देश के किसी एक आइआइटी में अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन आयोजित करता है। इस साल जून में आइआइटी कानपुर में कार्यक्रम होना था जिसे कोरोना के कारण अनुभव नामक वर्चुअल सीरीज के रूप में आयोजित किया गया। इसमें हर साल जिले के बच्चे स्पिक मैके के मेरठ चैप्टर टीम का हिस्सा बनकर जाते हैं। यहां एक सप्ताह से 10 दिन तक आश्रम की जीवनशैली और गुरुकुल पद्धति में रहना होता है। यहां गायन, नृत्य, वाद्ययंत्र के अलावा क्राफ्ट, पपेट्री, शिल्प कला, योग आदि में दुनियाभर से आए बच्चों को ढाला जाता है।
हमारी धरोहर, हमारी जिम्मेदारी
विदेश में स्पिक मैके का कार्यक्रम देखने के बाद मैं भारत लौटने पर इसकी शुरुआत करना चाहता था। मौका मिला तो आगे बढ़ा जिसका असर अब दिख रहा है। नई पीढ़ी को भारतीय कला व संस्कृति के महत्व को समझाने और उसे अपनाने को प्रेरित करना हमारी जिम्मेदारी भी है।
- एचएम राउत, पूर्व राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, स्पिक मैके
बच्चों को बदलते देखा
कन्वेंशन के लिए बच्चों को तैयारी करने और वहां से लौटने तक बच्चों में बड़ा बदलाव होते मैंने करीब से देखा है। भारतीय समाज की गुरु-शिष्य परंपरा की झलक वर्तमान में केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत व कला में ही देखने को मिलती है। बच्चे क्षमा, दया, दान, समर्पण की भावना को जीते हैं, जिसका असर उनके व्यक्तित्व पर दिखता है।
- सुचेता सहगल, को-आर्डिनेटर, मेरठ चैप्टर, स्पिक मैके|
पढ़ाई और करियर दोनों
मैं कथक में विशारद कर रही हूं और यह मेरा छठा वर्ष है। 12वीं में कुछ अंक कम भी रह जाएं तो इसका लाभ दिल्ली विश्वविद्यालय में मिलता है। इससे अच्छे कॉलेज में दाखिला मिलता है। वैसे तो अपनी संस्कृति से जुड़ाव अपनी रुचि पर निर्भर करता है लेकिन स्पिक मैके कार्यक्रमों से जागरूकता बढ़ी है। इस कला में व्यापक करियर और सम्मान भी है।
- तुलिका शर्मा, कक्षा 12वीं, दयावती मोदी एकेडमी