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Svatantrata ke Saarathi: सामाजिक उपेक्षा को चुनौती देकर जीवटता की दी मिसाल, जीवन जीने की जगा रहे ललक Meerut News

समाज को अस्पृश्यता से मुक्ति दिलाना ही असल संवैधानिक स्वतंत्रता है। इस आजादी को पाने के लिए विवेकानंद कुष्ठ आश्रम के अध्यक्ष डमरू दंता भी लंबा संघर्ष करते आ रहे हैंं।

By Prem BhattEdited By: Published: Sat, 15 Aug 2020 08:30 AM (IST)Updated: Sat, 15 Aug 2020 08:30 AM (IST)
Svatantrata ke Saarathi: सामाजिक उपेक्षा को चुनौती देकर जीवटता की दी मिसाल, जीवन जीने की जगा रहे ललक Meerut News
Svatantrata ke Saarathi: सामाजिक उपेक्षा को चुनौती देकर जीवटता की दी मिसाल, जीवन जीने की जगा रहे ललक Meerut News

मेरठ, जेएनएन। Svatantrata ke Saarathi आजादी के करीब सात दशक बीत जाने के बाद भी रुढि़वादी सोच से समाज मुक्त नहीं हो सका। इसी वजह से अस्पृश्यता (छुआछूत) जैसी कुरीति आज तक समाज का हिस्सा है। संविधान के अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता असंवैधानिक व इसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध होने का उल्लेख है। यानी समाज को अस्पृश्यता से मुक्ति दिलाना ही असल संवैधानिक स्वतंत्रता है। इस आजादी को पाने के लिए दिल्ली रोड स्थित विवेकानंद कुष्ठ आश्रम के अध्यक्ष डमरू दंता भी लंबा संघर्ष करते आ रहे हैं। वे स्वयं कुष्ठ रोग से ग्रसित हैं लेकिन, तमाम उपेक्षा झेलने के बाद भी इस बुराई का डटकर मुकाबला कर रहे हैं। कुष्ठ आश्रम में न सिर्फ अपने जैसों का हर सुख-दुख में साथ देते हैं, बल्कि सारथी बनकर उनमें जीवन जीने की ललक जगा रहे हैं।

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घर वालों ने छोड़ा साथ पर नहीं मानी हार

डमरू दंता मूल रूप से उड़ीसा के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया, जब उनको कुष्ठ रोग हुआ तो आसपास के लोग हीन नजर से देखने लगे। उन्होंने कभी भी लोगों का विरोध नहीं किया और न ही जीवन से हार मानी। लेकिन, जब घर वालों ने भी उनसे कतराना शुरू कर दिया तो उन्हें गहरा धक्का लगा। उन्होंने घर त्याग दिया। वह जगह-जगह की यात्रा करते हुए मेरठ आ पहुंचे। यहां वे 25 वर्षों से रह रहे हैैं और उम्र के 65वें पायदान पर भी दूसरे कुष्ठ पीडि़तों की मदद के लिए मजबूती से खड़े हैं।

उपेक्षा के दलदल से 20 कुष्ठ पीडि़तों को कराया मुक्त

डमरू दंता इस रोग से पीडि़त दूसरे लोगों के दर्द को बखूबी समझते हैं। उन्होंने बताया कि कई लोग अलग-अलग आश्रम और ऐसी जगह में थे जहां उनके रहने लायक पर्याप्त जगह नहीं थी और लोग भी उनके साथ हीन व्यवहार करते थे। उन्हें उस कुचक्र से निकालकर डमरू दंता ने सहारा दिया। जहां वे उनसे जीवन जीने की इच्छाशक्ति और सकारात्मक ढंग से जीने का गुर ले रहे हैं।


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