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सावधान हो जाएं प्रदूषण का कहर आपका शुगर लेवल भी बढ़ा रहा है, रखें इन बातों का ख्‍याल

हवा में पीएम 2.5 ने लोगों का एंडोक्राइन सिस्टम बिगाड़ दिया है। इससे हार्मोन्स ग्रंथियों का सिग्नल गड़बड़ा गया है। 90 फीसद लोगों में विटामिन-डी की कमी और इंसुलिन उत्सर्जन भी बिगड़ा

By Taruna TayalEdited By: Published: Wed, 13 Nov 2019 12:57 PM (IST)Updated: Wed, 13 Nov 2019 12:57 PM (IST)
सावधान हो जाएं प्रदूषण का कहर आपका शुगर लेवल भी बढ़ा रहा है, रखें इन बातों का ख्‍याल
सावधान हो जाएं प्रदूषण का कहर आपका शुगर लेवल भी बढ़ा रहा है, रखें इन बातों का ख्‍याल

मेरठ, [संतोष शुक्ल]। शुगर की वजह सिर्फ लाइफस्टाइल नहीं, बल्कि प्रदूषण भी है। रासायनिक प्रदूषण से एंड्रोक्राइन सिस्टम डिस्टर्ब हो रहा है। पैंक्रियाज से उत्सर्जित इंसुलिन की प्रक्रिया बिगड़ रही है। हवा में सूक्ष्म कण पीएम 2.5 रक्त नलिकाओं में पहुंचकर न सिर्फ रक्तचाप, बीएमआइ व स्ट्रोक बढ़ाते हैं, बल्कि थायरायड ग्रंथि को भी प्रभावित करते हैं। एम्स ने माना है कि एनसीआर में मोटापा व शुगर में प्रदूषण बड़ी वजह है।

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इंडियन मेडिकल रिसर्च काउंसिल की रिपोर्ट के मुताबिक नाइट्रोजन डाई आक्साइड, पीएम 2.5 व पीएम 10 बीएमआइ-बॉडी मॉस इंडेक्स को बढ़ाती हैं। हेवी मेटल, क्रोमियम, कैडमियम, पारा और लेड भी एंडोक्राइन सिस्टम बिगाड़ते हैं, जिससे शुगर, मोटापा और कैंसर हो सकता है। मुख्य सड़कों से सौ मीटर आसपास तक रहने वालों में प्रदूषण से शुगर का रिस्क बढ़ा है। वायु प्रदूषण से एस्ट्रोजन, एंड्रोजन एवं थायरायड की सिग्नलिंग प्रणाली डिस्टर्ब हो सकती है।

टेफ्लान भी घातक

मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डा. तुंगवीर आर्य कहते हैं कि टाइप-2 शुगर बढऩे के पीछे प्रदूषण को अहम फैक्टर माना जा रहा है। डायबिटीज के मामलों को लेकर 2017 की रिपोर्ट बताती है कि हवा के सूक्ष्म रासायनिक कणों, कीटनाशकों एवं उर्वरकों के साथ ही इलेक्ट्रिकल कारोबार में प्रयोग टेफ्लॉन से हार्मोन्स बिगड़ता है। उर्वरकों में प्रयोग परकोलरेट थियोसायनेट को बड़ा हार्मोन्स बाधक पाया गया है।

धूप नहीं तो विटामिन-डी कहां से मिले

विटामिन डी की कमी से हायपोथायरोडिज्म का रिस्क बढ़ता है। विटामिन डी इंसुलिन उत्सर्जन को रेगुलेट करने के साथ ब्लड शुगर भी नियंत्रित करता है। एनसीआर-मेरठ में 90 फीसद लोगों में विटामिन-डी की कमी है। इससे हड्डियों में कैल्शियम अवशोषण की क्षमता घटी, वहीं शुगर का रिस्क तेजी से बढ़ा।

यह कहते हैं विशेषज्ञ

बच्चों में इंडोर केमिकल एक्सपोजर से भी उनका एंडोक्राइन सिस्टम बिगड़ रहा। इससे मोटापा व शुगर का रिस्क बढ़ता है। बच्चों में टाइप-1 शुगर तो जन्मजात है, लेकिन 15 साल की उम्र में टाइप-2 भी मिलने लगा है।

- डा. विजय जायसवाल, बाल रोग विभागाध्यक्ष, मेडिकल कॉलेज

प्रदूषण में पीएम 2.5 के कण लंग्स के जरिए रक्त में पहुंचकर हार्मोन्स ग्रंथियों को डिस्टर्ब करते हैं। बीएमआइ बिगड़ती है। बीपी बढ़ने से कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ता है। यह शुगर का बड़ा कारण है। हवा में प्रदूषण के बीच मॉर्निंग वाक की जगह घर में प्राणायाम, कपालभाति, अनुलोम-विलोम व सूर्य नमस्कार करें।

- डा. मनमोहन शर्मा, हार्मोन्स रोग विशेषज्ञ।

शुगर का पहले दिन से ही गुर्दे पर असर पडऩे लगता है। पेशाब ज्यादा बनती है, जिसे साफ करने पर गुर्दे पर लोड बढ़ता है। लापरवाही करने पर पांच साल में पेशाब में प्रोटीन, दस साल में क्रिटनिन ज्यादा हो जाती है। 15 साल में गुर्दा पूरी तरह खराब हो जाता है। एचबी1सी 6.5 तक रखें। मोटापा, बीपी व खानपान पर नियंत्रण रखें।

- डा. संदीप गर्ग, गुर्दा रोग विशेषज्ञ

मेथी का पानी पिएं...रामबाण है

शुगर रोग नहीं, एक अवस्था है। गैंगरीन जैसी बीमारियों से बचाव के लिए मेथी के दाने भिगोकर सुबह मुट्ठीभर खाएं या रातभर भिगोकर मेथी का पानी पिएं। सुबह करेला व जामुन का जूस भी कारगर है। मधुमेहनाशिनी चूर्ण एवं चंद्रप्रभा वटी का सेवन करें। 30 मिनट नियमित घूमें।

- डा. देवदत्त भादलीकर, प्राचार्य, महावीर आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज 


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