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अच्छे अंकों की मोहताज नहीं सफलता

काउंसलर की सलाह, परिजन अपनी महत्वाकांक्षाओं को ब'चों के जरिए पूरी न करें

By JagranEdited By: Published: Sun, 20 May 2018 11:40 AM (IST)Updated: Sun, 20 May 2018 11:40 AM (IST)
अच्छे अंकों की मोहताज नहीं सफलता
अच्छे अंकों की मोहताज नहीं सफलता

मेरठ। बेहतर करियर के लिए भाग दौड़ भले ही स्कूल के बाद शुरू होती हो, लेकिन नींव यहीं से मजबूत होती है। इस दौरान सबसे अधिक महत्वपूर्ण ज्ञान को आत्मसात करना होता है, जबकि वर्तमान शिक्षा पद्धति में न चाहते हुए भी बच्चे अंकों की दौड़ में शामिल हो जाते हैं। इसी क्रम में वे किताबी जानकार तो बन जाते हैं, लेकिन विषय की व्यापक जानकारी में कमी रह जाती है। अच्छे अंक जरूरी हैं, लेकिन यही सफलता की गारंटी नहीं होते हैं। बच्चों व परिजनों को यही बात दैनिक जागरण के सिरीज लेखन 'मा‌र्क्स से ज्यादा प्यारे हैं वो' के तहत करियर काउंसलर व सीबीएसई काउंसलर बताने व समझाने की कोशिश कर रही हैं। रोजगार के साढ़े तीन हजार अवसर व्याप्त हैं

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करियर काउंसलर ऋतु कौशिक ने कहा कि प्रतिस्पर्धा के युग में छोटे-बड़े सब आगे निकलने की दौड़ में शामिल होते हैं। छात्रों व परिजनों के लिए अब परीक्षा व परिणाम दोनों ही तनावपूर्ण हो गए हैं। छात्र की योग्यता, बुद्धि एवं ज्ञान का आंकलन 10वीं एवं 12वीं के प्राप्तांक निर्धारित करने लगे हैं, जिनके अंक अधिक वहीं सफल घोषित किए जाते हैं। अब वह समय है, जब माता-पिता को यह जानना व स्वीकार करना आवश्यक है कि समय के साथ कार्य क्षेत्र में भी तेजी से विस्तार हुआ है। आज साढ़े तीन हजार से अधिक रोजगार के अवसर हैं एवं उससे संबंधित हजारों अध्ययन कोर्स उपलब्ध हैं। जरूरी यह है कि हर छात्र को अपने विशेष रुचि, अभिरुचि को जानने में माता-पिता व शिक्षकों का पूर्ण सहयोग मिले। इससे वे उसी जानकारी के अनुरूप अपने अध्ययन व करियर की दिशा चुन सकें। कार्य क्षेत्र में परिणाम, गुणवत्ता एवं नवीनीकरण ही व्यक्ति को सफल या असफल बनाता है। बदलते समय में बहुमुखी प्रतिभाएं विकसित हुई हैं। यदि बच्चा अपनी विशेष क्षमताओं के अनुरूप अध्ययन की दिशा का चुनाव करेगा तो न उसे नंबर का भय होगा और न ही साथियों से पिछड़ने की ग्लानि। बच्चे परिजनों का सपना टूटने के डर से गणित व विज्ञान जैसे विषयों के प्रति अपने डर को बयां नहीं कर पाते हैं। परिजन बच्चों को अपना लक्ष्य स्वयं निर्धारण करने के लिए प्रेरित करें। बच्चों को व्यापक रोजगार संभावनाओं के बारे में बताएं। प्रतिस्पर्धा दूसरों से नहीं बल्कि स्वयं से करने के लिए प्रेरित करें। बच्चों को यह समझाएं कि तीन घंटे की परीक्षा उनकी प्रतिभा का पूरा मूल्यांकन नहीं बल्कि एक अंश मात्र है। हर स्ट्रीम में मिलता है बराबरी का करियर अवसर

सीबीएसई काउंसलर पूनम देवदत्त ने बताया कि अंकों का भविष्य की सफलता से कोई सीधा नाता नहीं होता है। अच्छे अंक पाने वाले ही सफल हों, यह जरूरी नहीं। औसत या औसत से कम अंक पाने वाले भी जीवन में सफलता के नए आयाम लिखते हैं। हमारे आसपास ऐसे तमाम उदाहरण मौजूद होते हैं। हालांकि कुछ परिजन ऐसा भी मानते हैं कि विज्ञान वर्ग से पढ़ने वाले बच्चों के सामने ही अधिक विकल्प होते हैं। ऐसा भी नही है। विज्ञान के अलावा कॉमर्स और मानविकी वर्ग से भी पढ़ने वाले बच्चों को समान करियर ऑप्शन मिलते हैं। ट्रेवल एंड टूरिज्म, होटल मैनेजमेंट, डिजाइन, एनीमेशन आदि ऐसे क्षेत्र हैं, जहां किताबी ज्ञान को नहीं, बल्कि प्रैक्टिकल जानकारी को अधिक प्रमुखता दी जाती है। अक्सर ऐसा भी देखने को मिलता है कि परिजन अपनी अधूरी इच्छाओं को बच्चों के जरिए पूरी करने की कोशिश करते हैं। यहीं पर दो पीढि़यों का टकराव भी उत्पन्न होता है। उन्हें लगता है कि बच्चे ने यदि आइआइटी से नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं कर सकेगा। डाक्टर या इंजीनियर नहीं बना तो जीवन में सफल नहीं होगा। परिजनों को इससे बचना चाहिए। माता-पिता बच्चों की योग्यता को दखते हुए उन्हें उनकी पसंद के करियर चुनाव में मदद करें। उन्हें बताएं कि जो करियर वे चुन रहें हैं उसमें उनके सामने किस प्रकार की चुनौतियां आएंगी। इससे बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ता है और वह बेहतर तैयारी के साथ आगे बढ़ सकते हैं। यह धारणा पूरी तरह से गलत है कि विज्ञान वर्ग से पढ़ने वाले बच्चे बुद्धिमान और मानविकी वर्ग से पढ़ने वाले बच्चे कम पढ़ने-लिखने वाले होते हैं।


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