Yogi Cabinet Expansion: पश्चिम को सियासी पावर हाउस बनाने की रणनीति Meerut News
योगी मंत्रिमंडल में पश्चिम उत्तर प्रदेश को खास तवज्जो मिली है। 2018 में मेरठ में प्रदेश कार्यकारिणी होने के बाद पश्चिम पर पार्टी का फोकस बढ़ा।
By Taruna TayalEdited By: Published: Thu, 22 Aug 2019 03:08 PM (IST)Updated: Thu, 22 Aug 2019 03:08 PM (IST)
मेरठ, [संतोष शुक्ल]। योगी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में अरसे बाद पश्चिमी उप्र का राजनीतिक ओहदा बढ़ा है। क्षेत्रीय और जातिगत समीकरण के बहाने पश्चिम यूपी को सियासी पावरहाउस बनाने का प्रयास किया गया है। 2013 के दंगों के लिए चर्चा में रहा मुजफ्फरनगर सियासी केंद्र बनकर उभरा है। पश्चिम से दो चेहरों को कैबिनेट में प्रमोट करने के भी बड़े मायने हैं। एक-एक वैश्य, कश्यप, गुर्जर व ब्राह्मण चेहरे को शामिल कर जातीय समीकरण साधा गया। वर्ष 2018 में मेरठ में प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक हुई थी, जिसके बाद पार्टी ने पश्चिम पर फोकस बढ़ाया।
सियासी केंद्र में रहा है मुजफ्फरनगर
मंत्रिमंडल के लिहाज से पश्चिमी उप्र में मुजफ्फरनगर और आसपास का रुतबा बुलंद रहा है। अगर केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान और हाल में अलग जिला बने शामली को भी जोड़ लें तो चार मंत्री सिर्फ मुजफ्फरनगर व आसपास से हैं। चौ. चरण सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में मुजफ्फरनगर के गुर्जर नेता नारायण सिंह डिप्टी सीएम रहे। यहीं से वैश्य नेता विद्याभूषण भी कद्दावर मंत्री रहे। हालांकि गुर्जरों को ज्यादा मौका मिला है। कैराना से बाबू हुकुम सिंह, और कांधला के चौ. वीरेंद्र सिंह भी कद्दावर मंत्री रहे हैं। सहारनपुर से चौ. यशपाल सिंह और मायावती सरकार में सिकंदराबाद के वेदराम भाटी अलग-अलग सरकारों में मंत्री रहे।
किसान नेता की डगर पर राणा
कैराना लोकसभा क्षेत्र के थाना भवन सीट से विधायक सुरेश राणा को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। 1992 में मुजफ्फरनगर के युवा मोर्चा जिलाध्यक्ष बने राणा को 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों में जेल भी हुई, किंतु सियासत के गलियारे में फायर ब्रांड नेता के रूप में चर्चा में आए। 2017 में गन्ना मंत्री बनाया गया। राणा के कार्यकाल में सरकार ने गन्ना बकाया का रिकार्ड भुगतान किया। पिछले साल गन्ना किसानों को प्रधानमंत्री मोदी से मिलाने से लेकर अमित शाह, सीएम योगी और संघ का आशीर्वाद पाने में भी सफल हुए। विवादों से दो चार होते हुए वो पश्चिमी उप्र में क्षत्रिय नेता के रूप में उभरे हैं।
अनुशासन से बढ़े भूपेंद्र
पंचायती राज मंत्री रहे जाट चेहरा चौ. भूपेंद्र सिंह को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। वो पश्चिमी क्षेत्र के चार बार क्षेत्रीय अध्यक्ष रहे हैं। हाल में हरियाणा के सहप्रभारी बनाए गए भूपेंद्र सिंह संगठन की गहरी समझ भी बनाए गए हैं। उनकी अध्यक्षता में 2014 लोकसभा चुनावों में पार्टी ने पश्चिमी उप्र की सभी 14 सीटों पर जीत दर्ज की थी। 2017 विस चुनावों में पार्टी को रिकार्ड जीत मिली। लो प्रोफाइल में रहने वाले भूपेंद्र सिंह को संगठन की गहरी समझ है, जिसकी वजह से उनका नाम प्रदेश अध्यक्ष की रेस में भी चला था। सरल स्वभाव के भूपेंद्र का कार्यकाल विवादों से दूर रहा और वो संघ के भी करीबी माने जाते हैं।
आखिरकार कटारिया पर ही भरोसा
पश्चिमी उप्र से गुर्जर चेहरों को तकरीबन हर सरकारों में बड़ा ओहदा मिला, किंतु टीम योगी में कोई गुर्जर चेहरा नहीं था। प्रदेश महामंत्री अशोक कटारिया की दावेदारी लंबे समय से बनी हुई थी। उन्हें संगठन का चेहरा होने के साथ ही तेज तर्रार नेता माना जाता है। पार्टी बाबू हुकुम सिंह के विकल्प में रूप में गुर्जर चेहरा तय नहीं कर पा रही है, और इस अवसर को अशोक कटारिया भुना सकते हैं। अशोक युवा मोर्चा प्रदेश प्रभारी हैं। 31 साल में प्रदेश अध्यक्ष बनकर सियासत की सीढ़ियां तेजी से चढ़े। उन्हें राज्यमंत्री, स्वतंत्र प्रभार का दर्जा मिला है, और इसी बहाने पार्टी ने गुर्जर कार्ड भी साधा है।
सियासी केंद्र में रहा है मुजफ्फरनगर
मंत्रिमंडल के लिहाज से पश्चिमी उप्र में मुजफ्फरनगर और आसपास का रुतबा बुलंद रहा है। अगर केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान और हाल में अलग जिला बने शामली को भी जोड़ लें तो चार मंत्री सिर्फ मुजफ्फरनगर व आसपास से हैं। चौ. चरण सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में मुजफ्फरनगर के गुर्जर नेता नारायण सिंह डिप्टी सीएम रहे। यहीं से वैश्य नेता विद्याभूषण भी कद्दावर मंत्री रहे। हालांकि गुर्जरों को ज्यादा मौका मिला है। कैराना से बाबू हुकुम सिंह, और कांधला के चौ. वीरेंद्र सिंह भी कद्दावर मंत्री रहे हैं। सहारनपुर से चौ. यशपाल सिंह और मायावती सरकार में सिकंदराबाद के वेदराम भाटी अलग-अलग सरकारों में मंत्री रहे।
किसान नेता की डगर पर राणा
कैराना लोकसभा क्षेत्र के थाना भवन सीट से विधायक सुरेश राणा को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। 1992 में मुजफ्फरनगर के युवा मोर्चा जिलाध्यक्ष बने राणा को 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों में जेल भी हुई, किंतु सियासत के गलियारे में फायर ब्रांड नेता के रूप में चर्चा में आए। 2017 में गन्ना मंत्री बनाया गया। राणा के कार्यकाल में सरकार ने गन्ना बकाया का रिकार्ड भुगतान किया। पिछले साल गन्ना किसानों को प्रधानमंत्री मोदी से मिलाने से लेकर अमित शाह, सीएम योगी और संघ का आशीर्वाद पाने में भी सफल हुए। विवादों से दो चार होते हुए वो पश्चिमी उप्र में क्षत्रिय नेता के रूप में उभरे हैं।
अनुशासन से बढ़े भूपेंद्र
पंचायती राज मंत्री रहे जाट चेहरा चौ. भूपेंद्र सिंह को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। वो पश्चिमी क्षेत्र के चार बार क्षेत्रीय अध्यक्ष रहे हैं। हाल में हरियाणा के सहप्रभारी बनाए गए भूपेंद्र सिंह संगठन की गहरी समझ भी बनाए गए हैं। उनकी अध्यक्षता में 2014 लोकसभा चुनावों में पार्टी ने पश्चिमी उप्र की सभी 14 सीटों पर जीत दर्ज की थी। 2017 विस चुनावों में पार्टी को रिकार्ड जीत मिली। लो प्रोफाइल में रहने वाले भूपेंद्र सिंह को संगठन की गहरी समझ है, जिसकी वजह से उनका नाम प्रदेश अध्यक्ष की रेस में भी चला था। सरल स्वभाव के भूपेंद्र का कार्यकाल विवादों से दूर रहा और वो संघ के भी करीबी माने जाते हैं।
आखिरकार कटारिया पर ही भरोसा
पश्चिमी उप्र से गुर्जर चेहरों को तकरीबन हर सरकारों में बड़ा ओहदा मिला, किंतु टीम योगी में कोई गुर्जर चेहरा नहीं था। प्रदेश महामंत्री अशोक कटारिया की दावेदारी लंबे समय से बनी हुई थी। उन्हें संगठन का चेहरा होने के साथ ही तेज तर्रार नेता माना जाता है। पार्टी बाबू हुकुम सिंह के विकल्प में रूप में गुर्जर चेहरा तय नहीं कर पा रही है, और इस अवसर को अशोक कटारिया भुना सकते हैं। अशोक युवा मोर्चा प्रदेश प्रभारी हैं। 31 साल में प्रदेश अध्यक्ष बनकर सियासत की सीढ़ियां तेजी से चढ़े। उन्हें राज्यमंत्री, स्वतंत्र प्रभार का दर्जा मिला है, और इसी बहाने पार्टी ने गुर्जर कार्ड भी साधा है।
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