अब डीएनए बार कोड पकड़ लेगा बीज में मिलावट
मेरठ में बनेगा प्रदेश का पहला सीड डीएनए बार कोडिंग सेंटर। एग्रीकल्चर विवि के कॉलेज ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के डिपार्टमेंट ऑफ फिंगर प्रिंटिंग ने आइसीआर को भेजा प्रस्ताव।
By Taruna TayalEdited By: Published: Mon, 14 Jan 2019 04:53 PM (IST)Updated: Mon, 14 Jan 2019 04:53 PM (IST)
मेरठ, [संदीप शर्मा]। किसानों को मिलावटी बीज बेचने वालों को अब सलाखों के पीछे जाना होगा। सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि में अब प्रदेश का पहला सीड डीएनए बार कोडिंग सेंटर स्थापित किया जाएगा। विवि के कॉलेज ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के डिपार्टमेंट ऑफ फिंगर प्रिटिंग ने आइसीआर दिल्ली को सेंटर स्थापित करने प्रस्ताव भेजा है।
ऐसे होगी बार कोडिंग
सीड बार कोडिंग से बीज के डीएनए से उसके मिलावट या नकली होने का पता चल जाएगा। पहले चरण में कृषि विवि खुद के तैयार बीजों को ही बार कोडिंग के दायरे में लाएगा। इसके बाद कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से किसानों को भी इसकी सेवाएं दी जाएंगी। बार कोडिंग से कृषि विवि मेरठ की विकसित की गई बासमती, हल्दी, सब्जियों की बार कोडिंग की जाएगी।
इस तरह से विशेष होगा बार कोडिंग सेंटर
एग्रीकल्चर विवि के कॉलेज ऑफ बॉयोटेक्नोलॉजी के डिपार्टमेंट ऑफ फिंगर प्रिंटिंग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. श्वेता मिश्रा ने बताया कि किसी फसल को उगाने के लिए किसान जी तोड़ मेहनत करते हैं, लेकिन बीज खरीदते वक्त किसानों में बीज की प्रामाणिकता को लेकर संशय बना रहता है। सीड डीएनए बार कोडिंग से किसान पूरी तरह बीज पर भरोसा कर सकते हैं। पुणे, चेन्नई और बिहार के बाद यह देश का चौथा सेंटर होगा।
इन्होंने बताया
अगर किसान बीज के सत्यापन को लेकर सीड बार कोडिंग सेंटर आएंगे तो उन्हें मिलावट का पता चल जाएगा।
डॉ. श्वेता मिश्रा ने बताया कि हम अपने विभाग के डीन के नेतृत्व में वीसी प्रो. गया प्रसाद से मिले थे, जिन्होंने बार कोडिंग सेंटर को स्थापित करने के लिए आइसीआर को प्रस्ताव भेज दिया है। यह प्रदेश का पहला और देश का चौथा बार कोडिंग सेंटर होगा। अगर सत्यापित बीज में अन्य बीज मिलाया जाता है तो डीएनए बार कोडिंग से पता चल जाएगा। खास बात यह है कि मिलावटी बीज से तैयार फसल को डीएनए बार कोडिंग से पता चल जाएगा। कृषि विवि के डायरेक्टर रिसर्च प्रो. अनिल सिरोही ने बताया कि प्रस्ताव भेजा जा चुका है। उम्मीद है कि आइसीआर स्वीकृति दे देगा, क्योंकि सीड डीएनए बार कोडिंग के लिए जरूरी संसाधन विवि के पास हैं।
ऐसे होगी बार कोडिंग
सीड बार कोडिंग से बीज के डीएनए से उसके मिलावट या नकली होने का पता चल जाएगा। पहले चरण में कृषि विवि खुद के तैयार बीजों को ही बार कोडिंग के दायरे में लाएगा। इसके बाद कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से किसानों को भी इसकी सेवाएं दी जाएंगी। बार कोडिंग से कृषि विवि मेरठ की विकसित की गई बासमती, हल्दी, सब्जियों की बार कोडिंग की जाएगी।
इस तरह से विशेष होगा बार कोडिंग सेंटर
एग्रीकल्चर विवि के कॉलेज ऑफ बॉयोटेक्नोलॉजी के डिपार्टमेंट ऑफ फिंगर प्रिंटिंग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. श्वेता मिश्रा ने बताया कि किसी फसल को उगाने के लिए किसान जी तोड़ मेहनत करते हैं, लेकिन बीज खरीदते वक्त किसानों में बीज की प्रामाणिकता को लेकर संशय बना रहता है। सीड डीएनए बार कोडिंग से किसान पूरी तरह बीज पर भरोसा कर सकते हैं। पुणे, चेन्नई और बिहार के बाद यह देश का चौथा सेंटर होगा।
इन्होंने बताया
अगर किसान बीज के सत्यापन को लेकर सीड बार कोडिंग सेंटर आएंगे तो उन्हें मिलावट का पता चल जाएगा।
डॉ. श्वेता मिश्रा ने बताया कि हम अपने विभाग के डीन के नेतृत्व में वीसी प्रो. गया प्रसाद से मिले थे, जिन्होंने बार कोडिंग सेंटर को स्थापित करने के लिए आइसीआर को प्रस्ताव भेज दिया है। यह प्रदेश का पहला और देश का चौथा बार कोडिंग सेंटर होगा। अगर सत्यापित बीज में अन्य बीज मिलाया जाता है तो डीएनए बार कोडिंग से पता चल जाएगा। खास बात यह है कि मिलावटी बीज से तैयार फसल को डीएनए बार कोडिंग से पता चल जाएगा। कृषि विवि के डायरेक्टर रिसर्च प्रो. अनिल सिरोही ने बताया कि प्रस्ताव भेजा जा चुका है। उम्मीद है कि आइसीआर स्वीकृति दे देगा, क्योंकि सीड डीएनए बार कोडिंग के लिए जरूरी संसाधन विवि के पास हैं।
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