सुरस सुबोधा विश्व मनोज्ञा, ललिता ह्रदया रमणीया, अतीव सरला मधुर मंजुला, नैवा क्लीष्टा न च कठिना
देववाणी को लोकवाणी बनाने की कोशिश पिछले एक सप्ताह से शहर के अलग-अलग हिस्सों में संस्कृत बोलना सिखाने के लिए विशेष कार्यशाला आयोजित की गई।
By Taruna TayalEdited By: Published: Sun, 18 Aug 2019 02:14 PM (IST)Updated: Sun, 18 Aug 2019 02:14 PM (IST)
मेरठ, जेएनएन। संस्कृत भारती की ओर से पिछले एक सप्ताह से शहर के अलग-अलग हिस्सों में संस्कृत बोलना सिखाने के लिए विशेष कार्यशाला आयोजित की गई। रविवार को इसका समापन डीएन इंटर कॉलेज में किया गया। इस अवसर पर संस्कृत के शब्दों को बताने के लिए एक विशेष प्रदर्शनी भी लगाई गई। जिसमें अलग अलग वस्तुओं के नाम संस्कृत में लिखकर दिखाए गए। समापन समारोह में छात्र-छात्राओं ने एकल नृत्य, गीत भी प्रस्तुत किए। सभी प्रस्तुति संस्कृत भाषा में हुई।
संस्कृत को आगे बढ़ाने का अनुकूल समय
कार्यक्रम में हरिद्वार से आए संस्कृत भारती के संगठन मंत्री प्रताप सिंह ने छात्रों को और छात्राओं को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि पूर्वजों ने बड़ी मेहनत से इस भाषा को एक स्वरूप दिया है, और आज भारत के सामने संस्कृत को आगे बढ़ाने के लिए अनुकूल समय है। बस आत्मविश्वास के साथ इसके क्रियान्वयन की आवश्यकता है। हमारे वेदों में यह कहा गया है की हमारे पास अच्छे विचार आने चाहिए। यह विचार किसी भी भाषा में हो सकते हैं। संस्कृत में उन सभी अच्छे विचारों का अनुवाद भी किया जाना जरूरी है।
संस्कृत बोलना कठिन नहीं है
कार्यक्रम में संस्कृत भारती के अन्य पदाधिकारियों ने प्रतिभागियों को प्रोत्साहित किया। उनका कहना था संस्कृत बोलना कठिन नहीं है। जितना की नई भाषा को सिखाने में कठिनाइयां आती हैं, क्योंकि सभी भारतीय भाषाओं में संस्कृत के ही अधिक शब्द पाए जाते हैं। भारतीय भाषाओं की वाक्य संरचना भी संस्कृत के ही समान है। भारतीयों को बचपन से ही संस्कृत सुनने का संस्कार है। इसलिए कहा जा सकता है कि संस्कृत का परोक्ष ज्ञान सभी को है। सभी लोग थोड़े से अभ्यास से संस्कृत में बातचीत कर सकते हैं।
संस्कृत को आगे बढ़ाने का अनुकूल समय
कार्यक्रम में हरिद्वार से आए संस्कृत भारती के संगठन मंत्री प्रताप सिंह ने छात्रों को और छात्राओं को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि पूर्वजों ने बड़ी मेहनत से इस भाषा को एक स्वरूप दिया है, और आज भारत के सामने संस्कृत को आगे बढ़ाने के लिए अनुकूल समय है। बस आत्मविश्वास के साथ इसके क्रियान्वयन की आवश्यकता है। हमारे वेदों में यह कहा गया है की हमारे पास अच्छे विचार आने चाहिए। यह विचार किसी भी भाषा में हो सकते हैं। संस्कृत में उन सभी अच्छे विचारों का अनुवाद भी किया जाना जरूरी है।
संस्कृत बोलना कठिन नहीं है
कार्यक्रम में संस्कृत भारती के अन्य पदाधिकारियों ने प्रतिभागियों को प्रोत्साहित किया। उनका कहना था संस्कृत बोलना कठिन नहीं है। जितना की नई भाषा को सिखाने में कठिनाइयां आती हैं, क्योंकि सभी भारतीय भाषाओं में संस्कृत के ही अधिक शब्द पाए जाते हैं। भारतीय भाषाओं की वाक्य संरचना भी संस्कृत के ही समान है। भारतीयों को बचपन से ही संस्कृत सुनने का संस्कार है। इसलिए कहा जा सकता है कि संस्कृत का परोक्ष ज्ञान सभी को है। सभी लोग थोड़े से अभ्यास से संस्कृत में बातचीत कर सकते हैं।
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